बन्दर बडी अकड मे चश्मा वश्मा लगाके. और शूट बूट पहन कर, हाथ में छाता लिये हुये बडे तैश मे मदारी के केबिन मे घुस गया.
मदारी अपने आफ़िस में बैठा अगला मजमा लगाने की प्लानिंग कर रहा था. डमरू पर घुग्घी कबूतर बैठ कर बता रहा था कि वह खेल के दौरान कैसे डमरू पर से ऐसे गायब हो जायेगा जैसे ताऊ के तबेले से भैंस. वहीं कडकनाथ मुर्गा जी अपनी प्लानिंग बता रहे थे कि अंडे कैसे गायब करने हैं? पास में ही रामप्यारी सारी प्लानिंग को ध्यान से चौकन्नी होकर सुन रही थी जिससे खेल में कोई कमी ना रह जाये. यानि पूरा स्टाफ़ अपने काम में लगा हुआ था.
मदारी ताऊ मजमा लगाने की तैयारी करता हुआ!
अचानक बन्दर को घुसते हुये देखा तो मदारी बोला - आ भई बन्दर आ ! भई घणै दिन मे दिख्या ? कित का सैर सपाटा कर आया ?
बन्दर वहीं रामप्यारी के पास डरता डरता सा एक मुड्डा (बैठने का छोटा स्टूल) खींचकर उस पर बैठते हुये बोला --सैर सपाटा काहे का ? खाने के ठिकाने नही, पर तुम्हारी तो मस्ती है । बन्दर मरे या जिये, तुम्हारी बला से.
मदारी ने सोचा- बन्दर कुछ नाराज सा है.. चलो इसको बीडी वीडी पिला पिलूकर चलता करते हैं.
मदारी - क्युं भई बन्दर बीडी पिवैगा ?
बन्दर - ना जी ना ? थारी बीडी थमनै मुबारक.
मदारी - के बात सै, भई बन्दर आज तो तू बडा उखडा उखडा सा दिखै सै ?
बन्दर - थानै मालूम सै की मैं सिर्फ़ डनहिल या 555 किंग साईज सिगरेट ही पीता हूं. फ़िर बीडी के लिये पूछ्ने का मतलब ? और वो भी थारै केबिन में आगया तो?
मदारी ने देखा कि आज बन्दर का मूड खराब दिख रहा है सो तुरन्त डनहिल सिगरेट निकाल कर बन्दर के सामने पेश की और पास ही एक जमुरा बैठा था, उससे कहा... जमुरे...
जमुरा - हुक्म मेरे आका ?
मदारी - जमुरे... जरा बन्दर साहब आये हैं इन के लिये नाश्ता पानी तो बुलवावो.
इतने मे बन्दर बोला नही नही मुझे नही करना तुम्हारा नाश्ता पानी । मैं तो जा रहा हूं ।
मदारी को लगा आज कुछ गड बड है. यह बंदर सच में कहीं भग गया तो खेल कौन दिखायेगा? सो बडे शातिर अंदाज में बोला - अरे यार बैठो भी बन्दर साब. ऐसी गर्मी में कहां जावोगे? कहीं लू वू लग गई तो....
बन्दर बात काट कर बोला - अच्छा तो हम साब कब से हो गये ? हम जिये या मरे तुमको उससे क्या ? आज तक भी कभी पूछा कि यार बन्दर भाई, तुम जिन्दा हो या मर गये? बन्दर जिये या मरे...तुमने कभी पूछा भी? कभी नही. अरे तुम्हारी बात छोड भी दूं, तब भी तुम्हारे जमुरे भी मेरी नही सुनते. मैं दिन भर धूप में तमाशा दिखाता हूं. पर तुम्हारे जमुरे मेरा फोन भी नही उठाते. और तो और मुझको लिमिट भी नही देते... फ़िर मैं खेल किस तरह दिखाऊं ? जितनी लिमिट मिलती है उतने खेल से कुछ कमाई होती नही. मतलब ये कि हमको तो पागल समझ रखा है. तुम्हारे जमुरे चाहे जब माल काट देते हैं...ठीक है मैं तो जा रहा हूं...ये भी साली कोई तमीज हुयी? बन्दर पुरी तरह तैश मे आ चुका था.
मदारी भी पूरा घुटा हुआ घाघ था सो हंसते हुये बोला - अमां यार बंदर भाई..आप तो बहुत जल्दी जमूरों की बात का भी बुरा मान जाते हैं. अरे हमारा और आपका तो चोली दामन का साथ है. अब बैठो जरा ...
बन्दर खीज कर बोला - मैं तो जा रहा हूं, नया मदारी खोजने....खोजने क्या , तुम्हारे पुराने जमुरे ने ही मदारी की दूकान खोली है अब मैं तो उसके साथ ही खेल दिखाऊंगा.
मदारी भी खेला खाया था । इसके जैसे कई बन्दर पाल के छोड चुका था. और इससे भी बडे बन्दर तो क्या लाल और काले मूंह के लंगूर उसने अब भी पाल रखे थे । सो बिल्कुल शातिर अन्दाज में बोला- अरे यार बन्दर साब आप तो बिल्कुल ही नाराज हो गये. अब ऐसी मदारी बदलने वाली कौन सी बात हो गयी ?
बन्दर : - क्युं आपने कभी मेरे राशन पानी का इन्तजाम किया ? कभी व्हिस्की सोढा के लिये पूछा कि इस महिने
तुमने खाया पीया या नही. दो महिने से तो गला भी तर नही किया...तुमसे अच्छा तो पुराना मदारी ही था जो महीने के राशन पानी और खम्बे का इन्तजाम बिना कहे ही कर देता था । अब उसकी कीमत मालूम पड रही है । उसके यहां रहते तो मैने कभी उसकी कद्र ही नही की ....पर अब मालूम पडा की वो ही ठीक था. और हमारे साथ का एक ताऊ बन्दर सही ही कहता है कि "नाचै कुदै बान्दरी और खीर मदारी खाय" तो अब ऐसा नही चलेगा...खीर मे से एक दो किलो नही तो एक दो कटोरी तो हमको भी मिलनी चाहिये । पर तुमको तो पुरी खीर का भगोना ही पीने की आदत पड गयी है. अब अपने को ये बिल्कुल भी मन्जूर नही है.
बन्दर अब तक काफ़ी तैश मे आकर मदारी को उसकी खरी खोटी करतूते सुना रहा था.
बीच मे मदारी ने टोका.... अरे बन्दर भाई सुनो तो ..पर बन्दर सुनने को तैय्यार ही नही हो रहा था. बंदर फ़िर आगे बोल पडा.. बोल तो क्या पडा .. बस फ़ट ही पडा...बोला - और तुम्हारे जमुरों से कहो कि मेरा फोन रिसीव करें और मेरी रस्सी जो तुमने 5 फ़ीट की कर रखी है उसको खेल दिखाते समय कम से कम 20 फ़ीट की करवावो. और दारु पानी खंबे का इन्तजाम समय से करवावो. तो कुछ विचार करूं.... बन्दर एक सांस मे ही ये सारी बातें कह गया.
मदारी भी घुटा हुवा था-- ठन्डे छींटे मारते हुये बोला - अरे यार बन्दर भाई आपके लिये तो मेरी जान हाजिर है....जहां तक आपकी रस्सी का सवाल है तो आप खातिरी रखो....कल से ही खेल दिखाते समय आपकी रस्सी मैं ही थामुंगा. और 20 फ़ीट तो क्या आपको रस्सी मे जितनी छूट (लिमिट) चाहिये उतनी मैं दूंगा. और जहां तक दारु पानी और खर्चे का सवाल है तो मुझे आप थोडा सा समय दो मैं ऊपर मेरे बाजीगर (बास) से बात करके नक्की करवा दूंगा ...इमान से...आप तसल्ली रखो...नाराज मत होवो यार बंदर भाई. आप चिन्ता मत करो. आप तो पब्लिक को बढिया खेल दिखाते रहो. यानि पब्लिक का सारा माल अपनी जेब में होना चाहिये... बाकी मै सम्भाल लूगा.
बन्दर भी अब थोडा ठन्ढा पड चुका था. बन्दर ने भी सोचा चलो घुडकी का कुछ तो असर होगा. और सोचा की ये मदारी यों ही छोडने वाला भी नही है अगर इसने 5 फ़ीट की रस्सी को छोडने के बजाये और घुटने के पास बांध लिया तो और दम घुट जायेगा. सो बन्दर भी खींसे निपोरता हुवा मदारी के केबिन से निकल लिया और मदारी ने अपने जमुरे से गहन विचार विमर्श शुरु कर दिया । .........(क्रमश:)
मदारी अपने आफ़िस में बैठा अगला मजमा लगाने की प्लानिंग कर रहा था. डमरू पर घुग्घी कबूतर बैठ कर बता रहा था कि वह खेल के दौरान कैसे डमरू पर से ऐसे गायब हो जायेगा जैसे ताऊ के तबेले से भैंस. वहीं कडकनाथ मुर्गा जी अपनी प्लानिंग बता रहे थे कि अंडे कैसे गायब करने हैं? पास में ही रामप्यारी सारी प्लानिंग को ध्यान से चौकन्नी होकर सुन रही थी जिससे खेल में कोई कमी ना रह जाये. यानि पूरा स्टाफ़ अपने काम में लगा हुआ था.
अचानक बन्दर को घुसते हुये देखा तो मदारी बोला - आ भई बन्दर आ ! भई घणै दिन मे दिख्या ? कित का सैर सपाटा कर आया ?
बन्दर वहीं रामप्यारी के पास डरता डरता सा एक मुड्डा (बैठने का छोटा स्टूल) खींचकर उस पर बैठते हुये बोला --सैर सपाटा काहे का ? खाने के ठिकाने नही, पर तुम्हारी तो मस्ती है । बन्दर मरे या जिये, तुम्हारी बला से.
मदारी ने सोचा- बन्दर कुछ नाराज सा है.. चलो इसको बीडी वीडी पिला पिलूकर चलता करते हैं.
मदारी - क्युं भई बन्दर बीडी पिवैगा ?
बन्दर - ना जी ना ? थारी बीडी थमनै मुबारक.
मदारी - के बात सै, भई बन्दर आज तो तू बडा उखडा उखडा सा दिखै सै ?
बन्दर - थानै मालूम सै की मैं सिर्फ़ डनहिल या 555 किंग साईज सिगरेट ही पीता हूं. फ़िर बीडी के लिये पूछ्ने का मतलब ? और वो भी थारै केबिन में आगया तो?
मदारी ने देखा कि आज बन्दर का मूड खराब दिख रहा है सो तुरन्त डनहिल सिगरेट निकाल कर बन्दर के सामने पेश की और पास ही एक जमुरा बैठा था, उससे कहा... जमुरे...
जमुरा - हुक्म मेरे आका ?
मदारी - जमुरे... जरा बन्दर साहब आये हैं इन के लिये नाश्ता पानी तो बुलवावो.
इतने मे बन्दर बोला नही नही मुझे नही करना तुम्हारा नाश्ता पानी । मैं तो जा रहा हूं ।
मदारी को लगा आज कुछ गड बड है. यह बंदर सच में कहीं भग गया तो खेल कौन दिखायेगा? सो बडे शातिर अंदाज में बोला - अरे यार बैठो भी बन्दर साब. ऐसी गर्मी में कहां जावोगे? कहीं लू वू लग गई तो....
बन्दर बात काट कर बोला - अच्छा तो हम साब कब से हो गये ? हम जिये या मरे तुमको उससे क्या ? आज तक भी कभी पूछा कि यार बन्दर भाई, तुम जिन्दा हो या मर गये? बन्दर जिये या मरे...तुमने कभी पूछा भी? कभी नही. अरे तुम्हारी बात छोड भी दूं, तब भी तुम्हारे जमुरे भी मेरी नही सुनते. मैं दिन भर धूप में तमाशा दिखाता हूं. पर तुम्हारे जमुरे मेरा फोन भी नही उठाते. और तो और मुझको लिमिट भी नही देते... फ़िर मैं खेल किस तरह दिखाऊं ? जितनी लिमिट मिलती है उतने खेल से कुछ कमाई होती नही. मतलब ये कि हमको तो पागल समझ रखा है. तुम्हारे जमुरे चाहे जब माल काट देते हैं...ठीक है मैं तो जा रहा हूं...ये भी साली कोई तमीज हुयी? बन्दर पुरी तरह तैश मे आ चुका था.
मदारी भी पूरा घुटा हुआ घाघ था सो हंसते हुये बोला - अमां यार बंदर भाई..आप तो बहुत जल्दी जमूरों की बात का भी बुरा मान जाते हैं. अरे हमारा और आपका तो चोली दामन का साथ है. अब बैठो जरा ...
बन्दर खीज कर बोला - मैं तो जा रहा हूं, नया मदारी खोजने....खोजने क्या , तुम्हारे पुराने जमुरे ने ही मदारी की दूकान खोली है अब मैं तो उसके साथ ही खेल दिखाऊंगा.
मदारी भी खेला खाया था । इसके जैसे कई बन्दर पाल के छोड चुका था. और इससे भी बडे बन्दर तो क्या लाल और काले मूंह के लंगूर उसने अब भी पाल रखे थे । सो बिल्कुल शातिर अन्दाज में बोला- अरे यार बन्दर साब आप तो बिल्कुल ही नाराज हो गये. अब ऐसी मदारी बदलने वाली कौन सी बात हो गयी ?
बन्दर : - क्युं आपने कभी मेरे राशन पानी का इन्तजाम किया ? कभी व्हिस्की सोढा के लिये पूछा कि इस महिने
तुमने खाया पीया या नही. दो महिने से तो गला भी तर नही किया...तुमसे अच्छा तो पुराना मदारी ही था जो महीने के राशन पानी और खम्बे का इन्तजाम बिना कहे ही कर देता था । अब उसकी कीमत मालूम पड रही है । उसके यहां रहते तो मैने कभी उसकी कद्र ही नही की ....पर अब मालूम पडा की वो ही ठीक था. और हमारे साथ का एक ताऊ बन्दर सही ही कहता है कि "नाचै कुदै बान्दरी और खीर मदारी खाय" तो अब ऐसा नही चलेगा...खीर मे से एक दो किलो नही तो एक दो कटोरी तो हमको भी मिलनी चाहिये । पर तुमको तो पुरी खीर का भगोना ही पीने की आदत पड गयी है. अब अपने को ये बिल्कुल भी मन्जूर नही है.
बन्दर अब तक काफ़ी तैश मे आकर मदारी को उसकी खरी खोटी करतूते सुना रहा था.
बीच मे मदारी ने टोका.... अरे बन्दर भाई सुनो तो ..पर बन्दर सुनने को तैय्यार ही नही हो रहा था. बंदर फ़िर आगे बोल पडा.. बोल तो क्या पडा .. बस फ़ट ही पडा...बोला - और तुम्हारे जमुरों से कहो कि मेरा फोन रिसीव करें और मेरी रस्सी जो तुमने 5 फ़ीट की कर रखी है उसको खेल दिखाते समय कम से कम 20 फ़ीट की करवावो. और दारु पानी खंबे का इन्तजाम समय से करवावो. तो कुछ विचार करूं.... बन्दर एक सांस मे ही ये सारी बातें कह गया.
मदारी भी घुटा हुवा था-- ठन्डे छींटे मारते हुये बोला - अरे यार बन्दर भाई आपके लिये तो मेरी जान हाजिर है....जहां तक आपकी रस्सी का सवाल है तो आप खातिरी रखो....कल से ही खेल दिखाते समय आपकी रस्सी मैं ही थामुंगा. और 20 फ़ीट तो क्या आपको रस्सी मे जितनी छूट (लिमिट) चाहिये उतनी मैं दूंगा. और जहां तक दारु पानी और खर्चे का सवाल है तो मुझे आप थोडा सा समय दो मैं ऊपर मेरे बाजीगर (बास) से बात करके नक्की करवा दूंगा ...इमान से...आप तसल्ली रखो...नाराज मत होवो यार बंदर भाई. आप चिन्ता मत करो. आप तो पब्लिक को बढिया खेल दिखाते रहो. यानि पब्लिक का सारा माल अपनी जेब में होना चाहिये... बाकी मै सम्भाल लूगा.
बन्दर भी अब थोडा ठन्ढा पड चुका था. बन्दर ने भी सोचा चलो घुडकी का कुछ तो असर होगा. और सोचा की ये मदारी यों ही छोडने वाला भी नही है अगर इसने 5 फ़ीट की रस्सी को छोडने के बजाये और घुटने के पास बांध लिया तो और दम घुट जायेगा. सो बन्दर भी खींसे निपोरता हुवा मदारी के केबिन से निकल लिया और मदारी ने अपने जमुरे से गहन विचार विमर्श शुरु कर दिया । .........(क्रमश:)
नोट : मदारी अब यह कंपनी छोडकर जा चुका है. और बंदर साहब का आकस्मिक निधन हो चुका है. मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि. बंदर की अब सिर्फ़ यादें ही शेष बची हैं.
श्रृद्धांजलि तो दे दी मगर मदारी को कहो, नया बंदर लाये या भालू का तमाशा शुर करे. ऐसे कैसे कम्पनी बंद हो सकती है भई. देखने वाले फिर मजा कैसे लूटेंगे. :)
ReplyDelete@नोट : मदारी अब यह कंपनी छोडकर जा चुका है. और बंदर साहब का आकस्मिक निधन हो चुका है. मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि. बंदर की अब सिर्फ़ यादें ही शेष बची हैं.
ReplyDeleteये सब कैसे हो गया ताऊ जी। मुझे तो बहुत चिता हो रही है।
राम राम
मस्त पोस्ट है.
ReplyDeleteबंदर यूँ चैतन्य हो गए तो इस देश के नेताओं का क्या होगा..! मेरा मतलब है मदारियों का क्या होगा !
अमां यार बंदर भाई..आप तो बहुत जल्दी जमूरों की बात का भी बुरा मान जाते हैं. अरे हमारा और आपका तो चोली दामन का साथ है. अब बैठो जरा ...
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा बहुत खूब ....
ठीक से समझने के लिए अगली कड़ी का इन्तजार करते हैं...
ReplyDeletebahut mazedar hai.
ReplyDeleteआखिरी लाईन पढकर एकदम से चिंता हो गई और दुख हुआ है।
ReplyDeleteहमारी भी श्रद्धांजली……………॥
RK के बारे में हमें भी कुछ बताईयेगा जी।
मदारी कम्पनी छोड कर क्यों गया?
"रूप बदल फिर बहरूपिया, जग को हंसाने आयेगा"
आज की पोस्ट कुछ उदास कर गई।
प्रणाम
baho0t khub
ReplyDeleteमदारी अब यह कंपनी छोडकर जा चुका है. और बंदर साहब का आकस्मिक निधन हो चुका है.
ReplyDelete-हमारी भी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.
------पूरी कहानी समझ आई नहीं ..अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
मस्त पोस्ट है.
ReplyDeleteमदारी अब यह कंपनी छोडकर जा चुका है. और बंदर साहब का आकस्मिक निधन हो चुका है.
ReplyDeleteताऊ जी
आ बात पल्ले कोनी पडी :(
ताऊ !
ReplyDeleteराम राम ..
एक एक लाइन ध्यान से पढी पर कुछ पल्ले नहीं पड़ा ! न मदारी को पहचान पाया और न बन्दर को ..ताऊ यार कुछ हम लल्लुओं को समझाने का उपाय भी करो आखिर प्रसंशक तो तेरे हम भी हैं ! कसम से अगर यहाँ आने का टिकट भी लगा देगा तब भी आयेंगे चाहे ब्लैक में क्यों न खरीदना पड़े !
बंदरों के बहाने आपने सांकेतिक रूप में बहुत कुछ कह दिया।
ReplyDelete…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
सिरीमान बंदर साहब के आकस्मिक निधन पर मेरी भी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteहम उनको भूल न पायेंगे... मौसम आयेंगे जायेंगे...
ब्लॉगवाणी के बाद के युग में लगता है कि अपने पसन्द के लेख पढ़ना भी एश्वर्य हो गया! आज आपने टिप्पणी की तो फटाफट आपके ब्लॉग तक पहुँची।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
sir aapki post hamesha gugudati hai :) :)
ReplyDeleteचकाचक ताऊ जी !
ReplyDeleteदेर हो गई आने में इसलिए मेरे श्रद्धा सुमन मत स्वीकार करना!
ReplyDelete--
क्योंकि
--
मैं तो केवल अपनी हाजिरी ही लगाने आया हूँ!
वाकई कई दिन बाद पढ़ने को मिली पोस्ट. अच्छा लगा.
ReplyDelete