प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली - 61 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है रणकपुर जैन मंदिर (राजस्थान).
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर-:
राजस्थान में पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन समुदाय के पाँच पवित्र स्थानों में से एक है.जहाँ आज हम आप को ले कर आये हैं .
यह स्थान उदयपुर से ९६ किलोमीटर दूर है मगर अधिकतर लोग इसे उदयपुर की ही धरोहर मानते हैं.
इसका निर्माण कार्य राणा कुम्भा के शासन काल में ,1446 विक्रम संवत में शुरू होकर 50 वर्षों से अधिक समय तक चला.
निर्माण में लागत आई---उस समय का लगभग 99 लाख रुपये.
मंदिर की विशेषताओं पर एक नज़र---
१ - मेवाड़ से मारवाड़ के रास्ते अरावली की पहाड़ियों की घाटियों के बीच चारों तरफ से जंगलों से घिरे ,48000 वर्ग फुट[according to indian official site] में बने इस मंदिर में 29 कमरे व 1,444 खम्भे हैं.ये खम्बे इस तरह से बने हैं कि दर्शन में कहीं कोई बाधा नहीं आती.
रणकपुर जैन मंदिर
२ -चार कलात्मक प्रवेश द्वार ,संगमरमर बने पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्न,76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, चार बड़े प्रार्थना कक्ष तथा चार बड़े पूजन स्थल हैं.जो कि मनुष्य को जीवन-मृत्यु के चक्करों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं.
३-मंडपो में चौबीस तीर्थंकरों की बेहद कुशलता से तराशी हुई मूर्तियां हैं.गलियारे के प्रत्येक मंडप में मंदिर के चारों ओर एक शिखर है जिसके ऊपर छोटी छोटी घंटियां लगी हैं जब कभी हवाएं चलती हैं ये घंटियाँ बज उठती हैं और बेहद मनभावन स्वर्गिक अनुभूति देने वाला संगीत गूँजने लगता है.
४-यह मंदिर तीन मंजिला है ,कहते हैं इसे नौ मंजिला बनाने की योजना थी.
५-420 स्तम्भों से टिकी 80 मीनारों वाले मंदिर के चार छोटे मंदिर और भी हैं.
६-कहरूवा पत्थर में की गयी सुन्दर नक्काशी और अनूठी स्थापत्य कला दर्शाते हुए यह मंदिर अपने आप में कला की अद्भुत मिसाल है.
७-इन्हीं मंदिरों में तहखाने भी बने हैं जो निर्माणकर्ताओं की दूरदर्शिता का परिचायक हैं.
८-इसे चतुर्मुख मंदिर क्यों कहा जाता है ?
मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी लगभग ७२ इंच ऊँची चार विशाल मूर्तियाँ हैं जो चार अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं,इसी कारण इसे चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है.
मुख्य मंदिर के सम्मुख बने दो अन्य दो मंदिर जैन संतों पार्श्र्वनाथ व जेनीनाथ के हैं जिनमें खुजुराहो जैसी
कारीगरी देखी जा सकती है.और साथ ही बना सूर्य मंदिर भी देखना न भूलें जहाँ सैनिकों और भव्य रथों पर सवार सूर्य देवातओं के नक्काशीदार चित्रों से अलंकृत बहुमुखी दीवारें हैं.
कैसे जाएँ-
उदयपुर से सड़क मार्ग से टेक्सी या बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है.
देश के सभी मुख्य शहरों से राजस्थान का उदयपुर शहर सड़क या वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है.
विशेष -:राजस्थान में बने ये विस्मयकारी अद्भुत जैन मंदिर हमारी धरोहर हैं लेकिन दुःख सिर्फ इस बात का है कि ताजमहल जैसा प्रचार रणकपुर ,माउंट आबू और दिलवाड़ा के विख्यात जैन मंदिरों को नहीं मिला अन्यथा इनकी भव्यता और सुन्दरता ताजमहल से कहीं भी कम नहीं है.
आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" की नमस्ते!
प्यारे बहनों और भाईयो, मैं आचार्य हीरामन “अंकशाश्त्री” ताऊ पहेली के रिजल्ट के साथ आपकी सेवा मे हाजिर हूं. उत्तर जिस क्रम मे मुझे प्राप्त हुये हैं उसी क्रम मे मैं आपको जवाब दे रहा हूं. एवम तदनुसार ही नम्बर दिये गये हैं. सभी को हार्दिक बधाई!
अब आईये आपको उन लोगों से मिलवाता हूं जिन्होने इस पहेली अंक मे भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया. आप सभी का बहुत बहुत आभार.
श्री विवेक रस्तोगी
श्री काजलकुमार,
सुश्री निर्मला कपिला
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
श्री अंतर सोहिल
श्री अनिल पूसदकर
सुश्री प्रेमलता पांडे
श्री दिलीप कवठेकर
श्री राज भाटिया
सुश्री वंदना
डॉ. मनोज मिश्र
श्री दीपक "तिवारी साहब"
श्री लालों के लाल..इंदौरीलाल
श्री मकरंद,
श्री स्मार्ट इंडियन
सुश्री बबली
सभी का आभार!
आयोजकों की तरफ़ से सभी प्रतिभागियों का इस प्रतियोगिता मे उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. !
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
आप सभी को मेरा नमस्कार,
पहेली में पूछे गये स्थान के विषय में संक्षिप्त और सारगर्भीत जानकारी देने का यह एक लघु प्रयास है.
आशा है, आप को यह प्रयास पसन्द आ रहा होगा,अपने सुझाव और राय से हमें अवगत अवश्य कराएँ.
रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर-:
राजस्थान में पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन समुदाय के पाँच पवित्र स्थानों में से एक है.जहाँ आज हम आप को ले कर आये हैं .
यह स्थान उदयपुर से ९६ किलोमीटर दूर है मगर अधिकतर लोग इसे उदयपुर की ही धरोहर मानते हैं.
इसका निर्माण कार्य राणा कुम्भा के शासन काल में ,1446 विक्रम संवत में शुरू होकर 50 वर्षों से अधिक समय तक चला.
निर्माण में लागत आई---उस समय का लगभग 99 लाख रुपये.
मंदिर की विशेषताओं पर एक नज़र---
१ - मेवाड़ से मारवाड़ के रास्ते अरावली की पहाड़ियों की घाटियों के बीच चारों तरफ से जंगलों से घिरे ,48000 वर्ग फुट[according to indian official site] में बने इस मंदिर में 29 कमरे व 1,444 खम्भे हैं.ये खम्बे इस तरह से बने हैं कि दर्शन में कहीं कोई बाधा नहीं आती.
२ -चार कलात्मक प्रवेश द्वार ,संगमरमर बने पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्न,76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, चार बड़े प्रार्थना कक्ष तथा चार बड़े पूजन स्थल हैं.जो कि मनुष्य को जीवन-मृत्यु के चक्करों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं.
३-मंडपो में चौबीस तीर्थंकरों की बेहद कुशलता से तराशी हुई मूर्तियां हैं.गलियारे के प्रत्येक मंडप में मंदिर के चारों ओर एक शिखर है जिसके ऊपर छोटी छोटी घंटियां लगी हैं जब कभी हवाएं चलती हैं ये घंटियाँ बज उठती हैं और बेहद मनभावन स्वर्गिक अनुभूति देने वाला संगीत गूँजने लगता है.
४-यह मंदिर तीन मंजिला है ,कहते हैं इसे नौ मंजिला बनाने की योजना थी.
५-420 स्तम्भों से टिकी 80 मीनारों वाले मंदिर के चार छोटे मंदिर और भी हैं.
६-कहरूवा पत्थर में की गयी सुन्दर नक्काशी और अनूठी स्थापत्य कला दर्शाते हुए यह मंदिर अपने आप में कला की अद्भुत मिसाल है.
७-इन्हीं मंदिरों में तहखाने भी बने हैं जो निर्माणकर्ताओं की दूरदर्शिता का परिचायक हैं.
८-इसे चतुर्मुख मंदिर क्यों कहा जाता है ?
मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी लगभग ७२ इंच ऊँची चार विशाल मूर्तियाँ हैं जो चार अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं,इसी कारण इसे चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है.
मुख्य मंदिर के सम्मुख बने दो अन्य दो मंदिर जैन संतों पार्श्र्वनाथ व जेनीनाथ के हैं जिनमें खुजुराहो जैसी
कारीगरी देखी जा सकती है.और साथ ही बना सूर्य मंदिर भी देखना न भूलें जहाँ सैनिकों और भव्य रथों पर सवार सूर्य देवातओं के नक्काशीदार चित्रों से अलंकृत बहुमुखी दीवारें हैं.
कैसे जाएँ-
उदयपुर से सड़क मार्ग से टेक्सी या बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है.
देश के सभी मुख्य शहरों से राजस्थान का उदयपुर शहर सड़क या वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है.
विशेष -:राजस्थान में बने ये विस्मयकारी अद्भुत जैन मंदिर हमारी धरोहर हैं लेकिन दुःख सिर्फ इस बात का है कि ताजमहल जैसा प्रचार रणकपुर ,माउंट आबू और दिलवाड़ा के विख्यात जैन मंदिरों को नहीं मिला अन्यथा इनकी भव्यता और सुन्दरता ताजमहल से कहीं भी कम नहीं है.
अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।
आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" की नमस्ते!
प्यारे बहनों और भाईयो, मैं आचार्य हीरामन “अंकशाश्त्री” ताऊ पहेली के रिजल्ट के साथ आपकी सेवा मे हाजिर हूं. उत्तर जिस क्रम मे मुझे प्राप्त हुये हैं उसी क्रम मे मैं आपको जवाब दे रहा हूं. एवम तदनुसार ही नम्बर दिये गये हैं. सभी को हार्दिक बधाई!
श्री प्रकाश गोविंद अंक 101 |
सुश्री सीमा गुप्ता अंक 100 |
श्री रजनीश परिहार अंक 99 |
श्री रंजन अंक 98 |
सुश्री RaniVishal अंक 97 |
श्री दिनेशराय द्विवेदी अंक 96 |
प.श्री डी.के. शर्मा "वत्स" अंक 95 |
श्री संजय बेंगाणी अंक 94 |
श्री जीतेंद्र अंक 93 |
सुश्री रेखा प्रहलाद अंक 92 |
श्री दिगम्बर नासवा अंक 91 |
श्री नीरज गोस्वामी अंक 90 |
श्री रतनसिंह शेखावत अंक 89 |
सुश्री हीरल अंक 88 |
श्री उडनतश्तरी अंक 87 |
अब आईये आपको उन लोगों से मिलवाता हूं जिन्होने इस पहेली अंक मे भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया. आप सभी का बहुत बहुत आभार.
श्री विवेक रस्तोगी
श्री काजलकुमार,
सुश्री निर्मला कपिला
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
श्री अंतर सोहिल
श्री अनिल पूसदकर
सुश्री प्रेमलता पांडे
श्री दिलीप कवठेकर
श्री राज भाटिया
सुश्री वंदना
डॉ. मनोज मिश्र
श्री दीपक "तिवारी साहब"
श्री लालों के लाल..इंदौरीलाल
श्री मकरंद,
श्री स्मार्ट इंडियन
सुश्री बबली
सभी का आभार!
अब अगली पहेली का जवाब लेकर अगले सोमवार फ़िर आपकी सेवा मे हाजिर होऊंगा, तब तक के लिये आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये. नमस्कार!
आयोजकों की तरफ़ से सभी प्रतिभागियों का इस प्रतियोगिता मे उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. !
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.
भई प्रकाश गोविंद जी ज़रूर आपको उस प्रेस का पता चल गया है जिसमें ताऊ यूनिवर्सिटी के शनिवार की पहेली वाले पर्चे छपते हैं (मुझे भी बता दो, मैं किसी को नहीं बताताऊंगा,कसम से)। :-)
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको व दूसरे सह-विजताओं को भी.
हम लेट लतीफ रहे। विजेताओं को बधाइयाँ।
ReplyDeleteप्रकाश गोविन्द जी को बहुत बधाई
ReplyDeleteअन्य विजेताओं को भी बधाई.
९४-८७=७ अंक..ठीक है आगे देख लूँगा कभी.
जरा तबीयत ठीक न थी तो देर से पहुँचा. ७ अंक बहुत नहीं होते खास तब, जब तबीयत खराब हो. :)
सभी को बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteसभी विजेताओं को बधाई | आयोजको का आभार ज्ञान वर्धन करने के लिए |
ReplyDeleteअब इतने सारे सही जवाब आये हैं तो फिर सवाल आसान ही रहा होगा. विजेताओं को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteहा हा हा इस बार अच्छी लीड रही. :)
ReplyDeletesabhi vijetaon ko hardik badhayi
ReplyDeleteएक खासियत और है इस मंदिर में जो 1440 खम्बे हैं उनमें की गयी नक्काशी एक दुसरे से मेल नहीं खाती याने हर खम्बे की नक्काशी अलग है जो किसी अजूबे से कम बात नहीं...वर्षों तक ये मंदिर चोर डाकुओं की शरण स्थली रही...क्यूँ की ये जगह बहुत अलग थलग है और जंगल में है...बाद में इसे खोजा गया और इसे प्रकाश में लाया गया...फालना क्यूँ की देल्ली अहमदाबाद रेल मार्ग पर है इसलिए यहाँ जाना बहुत कठिन नहीं लेकिन सिर्फ एक इस मंदिर के दर्शन के लिए कोई यहाँ आना नहीं चाहेगा. इस मंदिर को उदयपुर और माउंट आबू की यात्रा के दौरान देखा जा सकता है.
ReplyDeleteनीरज
सबको बधाई.
ReplyDeleteसभी जीतने वालों को बधाई ... इस बार हमारा नंबर भी है .....
ReplyDeleteसभी विजेताओं को घणी बधाई.......
ReplyDeleteप्रकाश गोविन्द जी को बहुत बधाई
ReplyDeleteबधाई....
ReplyDeleteअगली बार समीर भाई.. पहले से दवा खा कर बैठेगें..
Sabhee pratibhagiyon ko bahut badhaii!!
ReplyDeletetaauji se kshama (bahut dino se aana nahi ho paya yahan par) kee saath sabheee mitron ko bhee NAMASKAAR
श्री प्रकाश गोविंद
ReplyDeleteसुश्री सीमा गुप्ता
श्री रजनीश परिहार
श्री रंजन
सुश्री RaniVishal
श्री दिनेशराय द्विवेदी
प.श्री डी.के. शर्मा "वत्स"
श्री संजय बेंगाणी
श्री जीतेंद्र
सुश्री रेखा प्रहलाद
श्री दिगम्बर नासवा
श्री नीरज गोस्वामी
श्री रतनसिंह शेखावत
सुश्री हीरल
श्री उडनतश्तरी
उपरोक्त सभी पहेली विजेताओं को
हार्दिक बधाईयाँ और शुभ कामनाएं
अत्यंत सुन्दर और विस्तृत जानकारी देने के लिए
अल्पना जी का आभार व अभिनन्दन
प्रकाश गोविन्द जी को बहुत बधाई
ReplyDeleteबाकी विजेताओं को भी बधाई.ओर आप को भी बधाई, राम प्यारी को भी बधाई
प्रकाश गोविन्द जी एवं अन्य सभी को बहुत बधाई!
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