"बिणजारी ए हंस हंस बोल.."
धरती पर आग बरसाता
जेठ का सूरज
धधकती जमीन, प्यासे कंठ
बंजारे का काफ़िला
हरियाली की खोज मे
बहुत दूर निकल आया
मंजिल के नजदीक आते ही
सामने हरी भरी कोंपलें
रंगबिरंगे फ़ूलों का दृश्य
काफ़िले के पशुओं के मन भाया
बंजारा भी लगा ऊंघने ओढ
घने बरगद की कोमल छाया
=============================================
मग्गाबाबा का चिट्ठाआश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
धरती पर आग बरसाता
जेठ का सूरज
धधकती जमीन, प्यासे कंठ
बंजारे का काफ़िला
हरियाली की खोज मे
बहुत दूर निकल आया
मंजिल के नजदीक आते ही
सामने हरी भरी कोंपलें
रंगबिरंगे फ़ूलों का दृश्य
काफ़िले के पशुओं के मन भाया
बंजारा भी लगा ऊंघने ओढ
घने बरगद की कोमल छाया
अचानक मौसम ने अंगडाई ली
वर्षा रानी के आने की आहट सुन
धधकता सूरज भी शरमाया
पलों मे आसमान का रंग बदला
काली घटाओं से वो घिर आया
झर झर बूंदों ने मोती
का झरना खूब बरसाया
प्यासी धरती तृप्त हो गई
फ़ूल पत्तियों का मन भरआया
हवाओं की सौंधी महक से
डाली डाली का तन लहराया
अवर्षा से चिंतित और उदास
बंजारे का मन भी ऐसे में हर्षाया
थाम लिया हाथों मे जंतर (दिलरुबा)
कांधे पे जा उसे टिकाया
और अपने मीठे कंठ से छेड तान
कुछ ऐसे गुनगुनाया .........
बिणजारी ए हंस हंस बोल..
टांडो लद ज्यासी....
वर्षा रानी के आने की आहट सुन
धधकता सूरज भी शरमाया
पलों मे आसमान का रंग बदला
काली घटाओं से वो घिर आया
झर झर बूंदों ने मोती
का झरना खूब बरसाया
प्यासी धरती तृप्त हो गई
फ़ूल पत्तियों का मन भरआया
हवाओं की सौंधी महक से
डाली डाली का तन लहराया
अवर्षा से चिंतित और उदास
बंजारे का मन भी ऐसे में हर्षाया
थाम लिया हाथों मे जंतर (दिलरुबा)
कांधे पे जा उसे टिकाया
और अपने मीठे कंठ से छेड तान
कुछ ऐसे गुनगुनाया .........
बिणजारी ए हंस हंस बोल..
टांडो लद ज्यासी....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
=============================================
मग्गाबाबा का चिट्ठाआश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊ जी बुरा मत मानना , मुझे आपके कवि होने का भ्रम हो रहा है :)
ReplyDeleteवाह सीमाजी आपके लिखने भर की देर थी कि हमरे शह्र मे भी बादल छा गये हैं आभार्
ReplyDeleteमुझे बहुत पसंद आई
ReplyDeleteम्हारे तरफ तो बिणजारी बोल ही न रही!
ReplyDelete"बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी...."
कृपया व्याख्या की जाए.
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteअनुज अनुरागजी, यह सूफ़ी बंजारा है, अपने इंद्रिय रुपी पशुओं को इसने तपा डाला..कुछ नही मिला और चलते चलते आखिर उस परमात्मा की कृपा हो ही गई..और मस्ती मे पुकार उठा अपनी प्रेयसी को. यहां प्रेयसी बंजारण परमात्मा को कहा गया है. सूफ़ी फ़कीर ईश्वर को स्त्रीरुप मे पुकारते आये हैं.
बिणजारी ए हंस हंस बोल ..टांडो लद ज्यासी...मतलब अब ज्यादा समय नही बचा है. बस हंस गा कर पुकार ले उस ईश्वर को...यह फ़कीरों का बहुत प्रिय गीत है..कभी मौका लगे तो उनके मुख से यह पूरा गीत सुनना बहुत आनंद दायक लगेगा.
मेरे भाव इस कविता के लिये ऐसे ही हैं बाकी तो यह शब्द हैं इनके अनेकानेक अर्थ निकलेंगे..जैसा भी निकालना चाहें.
रामराम.
"बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी...."..
इसका भावार्थ बता कर आपने आनंद ला दिया.
bahut sundar kavita
ReplyDeleteस्वागत वर्षारानी का. बहुत बढिया .
ReplyDeleteबहुत मीठी कविता. बस बारिश मे भीग गया तन मन.
ReplyDeleteबहुत मीठी कविता. बस बारिश मे भीग गया तन मन.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव. सुंदर लगी यह रचना
ReplyDeleteताऊजी आपकी व्याख्या पसंद आयी. बहुत सुंदर दृष्टिकोण आपका.
ReplyDeleteताऊजी आपकी व्याख्या पसंद आयी. बहुत सुंदर दृष्टिकोण आपका.
ReplyDeleteअति सुंदर कविता.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह.. भाव विभोर करती हुई रचना. आनंद आया..और आपकी व्याख्या से हमे अब समझ आई है, बहुत ऊंची बात है जो हमारे दिमाग मे अब घुसी है. वर्ना हम तो सीधी साधी वर्षा की कविता समझ रहे थे.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह.. भाव विभोर करती हुई रचना. आनंद आया..और आपकी व्याख्या से हमे अब समझ आई है, बहुत ऊंची बात है जो हमारे दिमाग मे अब घुसी है. वर्ना हम तो सीधी साधी वर्षा की कविता समझ रहे थे.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह.. भाव विभोर करती हुई रचना. आनंद आया..और आपकी व्याख्या से हमे अब समझ आई है, बहुत ऊंची बात है जो हमारे दिमाग मे अब घुसी है. वर्ना हम तो सीधी साधी वर्षा की कविता समझ रहे थे.
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteताऊ जी आज तो आप की कविता नए रंग में है..'भाषा के कारण जहाँ कविता समझ नहीं आई थी वहां आप की प्रति टिप्पणी पढ़ कर समझ आ गयी.
बहुत चोखी लिखी है...
[अवर्षा-?-यह शब्द नया सुना..]
बस बारिश आने वाली है
ReplyDeleteराजधानी दिल्ली में
जरा मेट्रो ने जो बिखरा दिया है
सिमट जाए ढंग से
वरना सब कीचड़ हो जाएगा।
सुंदर कविता.
ReplyDeleteलेखिका को बधाई
आभार/मगलभावो के साथ
मुम्बई टाइगर
हे प्रभु तेरापन्थ खान
बहुत उम्दा जी। आनंद आ गया।
ReplyDeleteदेश, काल, परिस्थिता के अनुरूप
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
आभार!
देश, काल, परिस्थिता के अनुरूप
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
आभार!
टांडो लद ज्यासी.... मुझे समझ नहीं आया तो आपको पूछने ही वाला था कि आपने यहां स्मार्ट इंडियन के द्वारा पूछे इसी प्रश्न का उत्तर दे दिया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
मजेदार..
ReplyDelete"बिणजारी लटका खायेगी रे.........."
बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी....
वाह्! भावार्थ जानकर कविता का आनन्द दूना हो गया।
बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी....
-मधुर!! आनन्द आ गया इस मिठास का.
कविता मुग्ध कर रही है । कविता के विवरणात्मक चित्र खूबसूरत हैं । आभार ।
ReplyDelete"बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी...."..
ताऊ जी यह गीत सुने तो बहुत दिन हो गए यदि रिकॉर्डिंग हो तो कृपया ब्लॉग पर लगाएँ अति कृपा होगी |
मिट्टी की सोंधी महक थी इस कविता में।
ReplyDeleteताऊ आप की यह कविता बहुत सुंदर लगी, यह हरियाण्वई से मिलती जुलती है, क्योकि रोहतक साईड मै भाषा इस से थोडी अलग है.
ReplyDeleteKya mausam ke hisab se kavita lagayi apne...maza aa gay...
ReplyDeleteकाली घटाओं से वो घिर आया
ReplyDeleteझर झर बूंदों ने मोती
का झरना खूब बरसाया
प्यासी धरती तृप्त हो गई
फ़ूल पत्तियों का मन भरआया
हवाओं की सौंधी महक से
डाली डाली का तन लहराया
अवर्षा से चिंतित और उदास
बंजारे का मन भी ऐसे में हर्षाया
bahut hi khubsurtise manbhav barse hai,aisa laga banjare ke saath apna bhi man harshit ho gaya,sunder rachana
क्या बात है ताऊ !!!
ReplyDeleteबिणजारी ए हंस हंस बोल ..टांडो लद ज्यासी...मतलब अब ज्यादा समय नही बचा है. बस हंस गा कर पुकार ले उस ईश्वर को...
ReplyDeleteकविता फिर से पढी. अर्थ जानने के बाद कविता का आनंद सौगुना बढ़ गया.
धन्यवाद!
ताऊ जी आपकी ये ख़ूबसूरत कविता मुझे बहुत पसंद आया!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब प्यासे मन पे फुहार "बणजारी ए हंस हंस बोल बातां रह ज्यासी
ReplyDeleteसुंदर चित्रण।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी...."..
Vaah Taau..........pyase ko kya chahiye.......PAANI aur mujh jaise rasik ko prem, moh, pyaar neh...... sabkuch mil gayaa in do laaino mein
ताऊ, यह बहुत पुराना राजस्थानी लोक गीत है । जिसका सम्बन्ध सीधा आत्मा से है । आज तो दूर की बात ले आये ।
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने ताऊ जी और देखो यहाँ भी बरखा रानी आ ही गयी....
ReplyDeleteregards
ताऊ रामपुरिया जी
ReplyDeleteबिणजारी ए हंस हंस बोल..
टांडो लद ज्यासी....
गीत काफी पहले गांव में सुना करते थे लेकिन कभी इसकी गहराई में नहीं गए | आपके इस गीत के दो बोल व उनकी व्याख्या यहाँ लिखने के बाद ही इस गीत का असली भाव समझ आया है | अब इस गीत को सुनने में बहुत आनंद आता है आपकी व्याख्या नहीं पढ़ते तो शायद इस आनंद से हमेशा वंचित रहते |
नरेश सिंह जी का धन्यवाद जो उन्होंने इसका विडियो खोज निकाला |