अटपटी सी ही बात सही
दुसरे के घर की आग को
बडे आराम से देख कर निकल जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर वो आग
मेरा भी तो घर जला सकती है
पडोसी के रुदन को अनदेखा कर
अपने मे मस्त रहना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये एक दिन
मेरे घर मे भी हो सकता है.
रास्ते मे दुर्घटना मे कराहते लोगों को
अनदेखा कर तेजी से गाडी बढा ले जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर इसकी जरुरत
कभी मुझे भी तो पड सकती है
मजबूरी में रक्तदान करते समय
नजरें बचाकर मौका देख गायब हो जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर जिस दोस्त ने कभी
मुझे खून दिया हो उसे ही....
भिखारी द्वारा खाली कटोरा आगे किये जाने पर
जेब मे टटोलकर, छुट्टा नही है का बहाना बनाना,
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की
ये इसकी मजबूरी है ...
जरुरत मंद दोस्त द्वारा मदद मांगे जाने पर
कसम खाकर कहना..मैं खुद भी बडा परेशानी मे हूँ
अटपटी सी ही बात सही..
मगर कभी मेरी जरुरत पर
उसी ने तो साथ दिया था
पानी की बूंद बूंद की किल्लत के बावजूद भी
बाथ टब मे नहाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ऐसे वक़्त जब जनता को
पीने का पानी भी मुहैया नही
ताई का डिनर पर इंतजार करते रहने पर भी
बस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की
ये उसका लगाया रोग नही है.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
दुसरे के घर की आग को
बडे आराम से देख कर निकल जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर वो आग
मेरा भी तो घर जला सकती है
पडोसी के रुदन को अनदेखा कर
अपने मे मस्त रहना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये एक दिन
मेरे घर मे भी हो सकता है.
रास्ते मे दुर्घटना मे कराहते लोगों को
अनदेखा कर तेजी से गाडी बढा ले जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर इसकी जरुरत
कभी मुझे भी तो पड सकती है
मजबूरी में रक्तदान करते समय
नजरें बचाकर मौका देख गायब हो जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर जिस दोस्त ने कभी
मुझे खून दिया हो उसे ही....
भिखारी द्वारा खाली कटोरा आगे किये जाने पर
जेब मे टटोलकर, छुट्टा नही है का बहाना बनाना,
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की
ये इसकी मजबूरी है ...
जरुरत मंद दोस्त द्वारा मदद मांगे जाने पर
कसम खाकर कहना..मैं खुद भी बडा परेशानी मे हूँ
अटपटी सी ही बात सही..
मगर कभी मेरी जरुरत पर
उसी ने तो साथ दिया था
पानी की बूंद बूंद की किल्लत के बावजूद भी
बाथ टब मे नहाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ऐसे वक़्त जब जनता को
पीने का पानी भी मुहैया नही
ताई का डिनर पर इंतजार करते रहने पर भी
बस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की
ये उसका लगाया रोग नही है.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
"होती हैं राहें 'नीरज' पुरपेच मोहब्बत की
गर लौटने का मन हो मत पाँव बढाओ"
मिलिये एक शायर और खुशमिजाज इंसान से….गुरुवार…तारीख १४ मई २००९
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बेहद मौजूँ किस्म की जानबूझकर होने वाली अन्मयस्कता का सुन्दर चित्र । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकाशा!! लोग यह समझ पाते, तो दुनिया की तस्वीर दूसरी न हो जाती!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
बहुत अच्छी कविता ताऊ ! शीर्षक अटपटी सी बात ही काफी है !
ReplyDeleteताई का डिनर पर इंतजार करते रहने पर भी
ReplyDeleteबस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की ये उसका लगाया रोग नही है.
ताऊ इससे यह बात सिद्ध होती है कि ताऊ कभी कभी सच भी बोल देते हैं.:)
बहुत सटीक कविता.
एक सटीक और आत्मबोध करवाती कविता.
ReplyDeleteताऊ आप कभी कभी बिल्कुल चौंका देते हैं. ये कविता पढकर लगता ही नही कि आप ताऊ हो? बहुत गहरी बात कही आपने.
ReplyDeleteऐसी कितनी अटपटी बातों के हम शिकार हैं! काश हम सुधर जाते.
ReplyDeleteशायद यह सभी की मनोदशा है. अक्सर हम ऐसा ही करते हैं, बहुत गहरी बात उजागर करदी.
ReplyDeleteमज़ेदार। नीचे से दोनों पैरा आज की सबसे गंभीर समस्या हैं।
ReplyDeleteताई का डिनर पर इंतजार करते रहने पर भीdinner
ReplyDeleteबस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये जानते हुए भी की
ये उसका लगाया रोग नही है.
बहुत सही .सही रचना ,धन्यवाद सीमा जी को .
सीधा निशाने पर तीर मारा है...
ReplyDelete"समझना और समझाना" ये आ जाये तो सा्रे मसले हल हो जाये...
रास्ते मे दुर्घटना मे कराहते लोगों को
ReplyDeleteअनदेखा कर तेजी से गाडी बढा ले जाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर इसकी जरुरत
कभी मुझे भी तो पड सकती है
" अटपटी मगर बहुत ही महत्वपूर्ण द्र्श्यो को पेश करते ये शब्द जिन्दगी का एक ऐसा रुख प्रदर्शित कर रहे हैं जो कभी कभी न किसी के भी साथ हो जाता है ...और फिर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं.."
regards
सच है हम जब दूसरों को तकलीफ में देखते हैं तब ये नहीं सोचते की इस दशा में कभी हम भी हो सकते हैं क्यूँ की वक्त कब पलटी मार दे...बहुत अच्छी रचना...सीमा जी को लिखने पर बधाई...और आपको प्रकाशित करने पर...
ReplyDeleteनीरज
जग में छाये हुए, दानवी राग हैं।
ReplyDeleteकिन्तु सीमा के हर छन्द में आग है।
पत्थरों का चमन, संग-ए-दिल है सुमन,
पत्थरों के भवन, पत्थरों को नमन,
इनमें करुणा, धर्म अटपटी बात है।
ताऊ और ताई की चटपटी बात है।
अंतिम पंक्तियों में मजा आया, तबियत हरी हो गई :)
ReplyDeleteताई का डिनर पर इंतजार करते रहने पर भी
ReplyDeleteबस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना अटपटी सी ही बात सही.. लगता है ताई जी को लठ्ठ की याद दिलानी पडेगी?:)
बहुत सटीक कविता. सोचने को बाध्य करती है.
ReplyDeleteताई को वेट कराना.. ये अच्छी बात नहीं है
ReplyDeletesahi hum kitne swarthi hote hai,jab khud pe biti to pata chale,vaise tau ji tai ji ko intazaar nahi karwanachahiye,ye to tai ji hi hai jo itane saalon se seh rahi hai:)
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDeleteअगर हर कोई ऐसा सोच ले तो हर मुसीबत से टकरा सकते हैं...
पडोसी के रुदन को अनदेखा कर
अपने मे मस्त रहना अटपटी सी ही बात सही..
मगर ये एक दिन मेरे घर मे भी हो सकता है.
सुंदर.. प्रेरणास्पद--
मीत
हिमांशु जी ने मन की बात कह दी.......
ReplyDeleteवास्तव में हम लोग समाज सुधार की बडी बडी बातें करने और दूसरों को नसीहत देने में सबसे आगे हैं, किन्तु अपने अन्दर झांक कर देखने की कौशिश भी नहीं करते कि इन सब के लिए हम कितने दोषी हैं.
ReplyDeleteताऊ जी और सीमा जी, आप दोनों का इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार.........
बस आया...फ़िर भी ब्लागिंग करते रहना अटपटी सी ही बात सही..
ReplyDeleteमगर ये जानते हुए भी की ये उसका लगाया रोग नही है.
सुश्री सीमा गुप्ताजी उपर वाली लाईनो ने हमारा भी मन मोह लिया। पुरी कविता सुन्दर प्रेणास्पद लगी । आपका आभार।
जरुरत मंद दोस्त द्वारा मदद मांगे जाने पर
ReplyDeleteकसम खाकर कहना..मैं खुद भी बडा परेशानी मे हूँ
अटपटी सी ही बात सही..
मगर कभी मेरी जरुरत पर
उसी ने तो साथ दिया था
Sunder Kavita...
कविता बहुत पसंद आई ...कहने का अंदाज़ अच्छा है ..
ReplyDeleteएक सामाजिक विचार की कविता।
ReplyDeletetau ji , namaskar
ReplyDeletebahut hi sundar aur bhaavpoorn kavita ...
meri dil se badhai sweekar kariyenga.
vijay
वाह ताऊ
ReplyDeleteकितनी संजीदा बात................कितने रोचक अंदाज़ में...............मज़ा आ गे
लाजवाब
बिक्लुल ताऊ जी। हम पाकिस्तान की मुश्किलें देख खिलखिला रहे हैं पर यही लपटें हम तक आते देर न लगेगी!
ReplyDeleteये अटपटी बातें आत्मविश्लेषण के लिए मजबूर करती हैं।
ReplyDeleteजरा सी सोच आदमियत को इंसानियत में बदल दे।
ReplyDeleteरचना पढकर ना जाने क्यों शिव खेड़ा जी के लिखे की याद आ गई। बहुत उम्दा।
ReplyDeleteदुसरे के घर की आग को
ReplyDeleteबडे आराम से देख कर निकल जाना
अटपटी सी ही बात सही..
... करारी चोट है ताऊ ..
अटपटी नहीं
ReplyDeleteखटपटी और
चटपटी है यह।
काश कि हम सब ही यह समझ जाएं तो दुनिया का रूप दूसरा ही हो जाएगा। बहुत ही सटीक कविता है।
ReplyDeleteपानी की बूंद बूंद की किल्लत के बावजूद भी
बाथ टब मे नहाना
अटपटी सी ही बात सही..
मगर ऐसे वक़्त जब जनता को
पीने का पानी भी मुहैया नही
बहुत सुंदर।
महावीर शर्मा
इस अटपटी सी बातों वाली कविता ने मन मोह लिया ताऊ...
ReplyDeleteनीरज जी से मुलाकात का इंतजार है
आज की आप की कविता एक सन्देश लिए हुए है..हर किसी को यह बातें समझनी चाहिये..दूसरो की मुसीबत में साथ /सहायता देना ही एक इंसान होने के नाते पहला धरम है.
ReplyDeleteगंभीर सन्देश देते देते कविता का अंत रोचक है..
सुन्दर रचना.