प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के २० वें अंक मे स्वागत है.
राऊंड दो के दसवें अंक की पहेली का सही जवाब है सेल्युलर जेल अंडमान निकोबार. जिसके बारे मे हमेशा की तरह आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
अभी कुछ दिन पहले ही अपनी छुट्टियां वहां बिता कर आये श्री काजल कुमार जो की इस अंक के अतिथी संपादक भी हैं, ने वहां के अपने अनुभवों को हमसे साझा किया है और उनके द्वारा बनाई एक विडियो फ़िल्म भी आप इस अंक मे अतिथि संपादक की पोस्ट मे पढिये और देखिये.
बीते सप्ताह ३० अप्रेल को हमारी छोटी प्रिंसेस लवि ने अपना जन्मदिन मनाया. लवि को ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल की तरफ़ से बहुत ढेर सारी बधाईयां और प्यार.
और इसी के साथ साथ २ मई को प्रिंस आदि यानि की ताऊ के दोस्त पल्टू ने भी अपना जन्मदिन मनाया. आदि को भी ताउ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल की तरफ़ से ढेर सी बधाईयां और प्यार.
और साथ ही आदि के चाचाजी और चाची जी को शादी की बधाई और शुभकामनाएं.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
अब हम पहेली राउंड २ के अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचे हैं और आप को लिए चलते हैं दूर...भारत के केन्द्र शासित प्रदेश में जो लगभग छोटे बडे ५७२ द्वीपों का एक समूह है और उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तार में लगभग 800 किलोमीटर की दूरी में फैला है -जी हाँ ,यह है अंडमान और निकोबार द्वीप समूह. हिंद महासागर में स्थित इस द्वीप का नाम भगवान् हनुमान के नाम का परिवर्तित रूप है.[क्योंकि अंदमान मलय भाषा के हन्दुमान शब्द से आया माना जाता है].इस प्रदेश की राजधानी पोर्ट ब्लयेर है.इस प्रदेश के सुन्दर साफ़ समुद्री तट ,और प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है.इस प्रदेश की अधिकारिक साईट पर इसे धरती पर स्वर्ग कहा गया है.
यूँ तो अंतरजाल में इस जगह के बारे में बहुत अधिक जानकारी है इस लिए प्रयास किया है कि संक्षेप में मगर अधिक से अधिक जानकारी दे सकूँ.२६ दिसंबर २००४ को सुनामी लहरों के कहर का यहां सर्वाधिक असर समुद्र तल से कम ऊंचाई वाले सपाट क्षेत्र को झेलना पड़ा था, जिनमें लिटिल अंडमान का निकोबार ग्रेट निकोबार सहित कई अन्य द्वीप शामिल हैं।
अंडमान कैसे पहुँचें?
निकटतम हवाई अड्डा --चेन्नई, कोलकाता, जल मार्ग - चेन्नई ,कोलकाता तथा विशाखा पटनम से जहाज उपलब्ध [50-60 hrs journey]
अंडमान में कहाँ ठहरें?
समस्त सुविधाओं से युक्त कमरे वाले डीलक्स पाँच सितारे होटलों से लेकर मध्यम श्रेणी वाले होटलों तथा गेस्ट हाउसों की श्रृंखला उपलब्ध है .
अंडमान एवं निकोबार में कब जायें? - वर्षपर्यंत
यह द्वीप समूह १८ वीं शताब्दी के शुरू तक बाकी दुनिया से कटा रहा. पहले ब्रितानी उसके बाद जापानियों ने यहाँ अपने कदम जमाने की कोशिश की. पुर्तगाली भी कभी यहाँ रहे होंगे क्योंकि निकोबारियों की भाषा में पुर्तगाली भाषा के शब्द मिलते हैं.
पर्यटकों के लिए विशेष अधिकारिक सूचना--
१-विदेशियों को यहाँ घूमने और रहने के लिए इंडियन मिशन ओवरसीज़ के दफ्तर से अनुमति लेनी होती है .
२-भारतियों को अंडमान घुमने के लिए अनुमति नहीं चाहिये मगर निकोबार और कुछ आदिवासी इलाकों पर घूमने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होगी. अनुमति हेतु जारी निर्धारित एक आवेदन पत्र Deputy Commissioner, Andaman District, Port Blair. को दाखिल करना होता है. 3-'बैरन द्वीप 'पर किसी को भी उतरने की अनुमति नहीं है वह जहाज़ में बैठे ही देखना होगा.
४-किसी भी राष्ट्रिय पार्क में बिना अनुमति दाखिल न हों. ५-किसी भी स्थान की विडियो या फोटो लेने से पहले अगर अनुमति लेनी आवश्यक है तो जरुर लें.
६-संरक्षित वनों के आस पास आग न जलाएं. ७- आदिवासी इलाकों के आस पास फोटो न खींचें.
निकोबार में देखने की जगहें-
[यह जगह विदेशियों के लिए प्रतिबंधित है मगर भारतियों को घूमने के लिए विशेष अनुमति चाहिये.] निकोबार २८ द्वीपों का समूह है. यहाँ -कत्चल ,कार निकोबार,ग्रेट निकोबार द्वीप देख सकते हैं. -----------------------------------------------------------------
अंडमान में पोर्ट ब्लेयर और उस के आस पास की देखने लायक जगहें -
-महात्मा गाँधी मैरीन नेशनल पार्क ,-ऐतिहासिक सेल्यूलर कारागार,-गाँधी पार्क -सिप्पिघाटी फार्म -चिडिया टापू . इन के अलावा कोल्लिनपुर , मधुबन ,माउंट हर्रिएत ,मिनी चिडियाघर ,मरीना पार्क, अंडमान वाटर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, फिशरीज म्यूजियम, समुद्रिका म्यूजियम, एंथ्रोपोलॉजिकल म्यूजियम, फॉरेस्ट म्यूजियम आदि।
कार्बिन कोव्स बीच,डिगलीपुर, रॉस द्वीप,वाइपर द्वीप,सिंक व रेडस्किन द्वीप भी देखने लायक जगहें हैं ,
पर्यटन विभाग की तरफ से साल के दिसम्बर और जनवरी के महीने में यहाँ फेस्टिवल आयोजित होते हैं. सुभाष मेला ,विवेकानंद मेला - ब्लाक मेला - भी जनवरी के महीने में आयोजित होते हैं अब बात करते हैं ऐतिहासिक सेल्यूलर कारागार की-
यह जेल अंडमान -निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है.काला पानी के नाम से कुख्यात यह जेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए अंग्रेजों ने बनाई गई थी. इस का निर्माण कार्य १९०६ में पूरा हुआ. सात इमारतें [जो तीन मंजिला थीं ] को मिला कर यह जेल बनी.
इन भवनों के केंद्र में एक टावर था. और ६९४ कोठरियां थीं. वर्तमान में सिर्फ तीन ही इमारतें शेष हैं. कारागार की दीवारों पर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहाँ लाइट एंड साऊंड शो में यह इतिहास चलचित्र द्वारा बताया जाता है. शहीद वीर सावरकर को यहाँ १९११ में लाया गया था ..वह यहाँ करीब १० साल तक रहे. अंग्रेजों द्वारा इन कैदियों से बहुत ही बुरा वर्ताव किया जाता था. कोडे लगाना,आम बात थी. कोल्हू चलवाना , बंजर ज़मीन जोतवाना आदि कठिन कार्य करवाए जाते थे. उनके जुल्मों की कहानी यह इमारतें अपने भीतर छुपाये हुए हैं. दुसरे विश्व युद्ध के बाद जापानियों ने अंडमान पर कब्ज़ा किया तब ३० दिसम्बर १९४३ को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने यहाँ कैदियों से मुलाक़ात की और भारतीय झंडा फहराया. यहीं एक संग्रहालय भी है जहाँ अंग्रेजों के शस्त्र, सुभाष जी के दौरे की तस्वीरें आदि सुरक्षित हैं. सुभाष जी [नेता जी] की याद में यहाँ हर साल जनवरी में एक मेले का भी आयोजन होता है.
इस सेल्यूलर कारागार की अधिकारिक साईट यहाँ है.
यह दूसरा राऊंड इसी के साथ समाप्त हो गया. अब अगले भाग मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये अलविदा. -विशेष संपादक : अल्पना वर्मा |
कभी-कभी कबाड़ से भी बड़े काम की चीज बनाई जा सकती है। चीन के इन बुजुर्ग महाशय को ही लीजिए। ये अपनी बीवी के जोड़ों में दर्द की तकलीफ से काफी दुखी थे। इन्होंने घर में रखे कबाड़े को इस तरह से उपयोग में लिया कि इससे मालिश करने वाली शानदार कुर्सी तैयार हो गई।
78 साल के लिन शुसेंग बीजिंग में कार रिपेयरिंग का काम करते थे और चीजों को उपयोगी तरीके से जोड़ना उन्होंने वहीं से सीखा। वे इस कुर्सी पर पिछले आठ साल से मेहनत कर रहे थे। सबसे पहले उन्होंने इसे गर्दन की मालिश करने वाली कुर्सी के रूप में तैयार किया था और अब तो इसमें इतने तामझाम जोड़ दिए हैं कि इससे पूरे शरीर की मालिश मुमकिन है। हाल ही उन्होंने कुर्सी के नीचे की ओर इलेक्ट्रिक पॉट जोड़ा है, जिससे कुर्सी थोड़ी गर्म भी हो जाती है। अब लिन के आविष्कार को देखते हुए उनके पास कुछ बड़ी कंपनियां आ रही हैं, जो इस कुर्सी के डिजाइन को पेटेंट कराना चाहती हैं। चलते-चलते आपका ध्यान एक वीडियो की ओर दिलाना चाहूंगा, जो आजकल यूट्यूब पर धूम मचा रहा है। इसे अभी तक 23 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा है। इसमें दिखाया गया है कि संगीत सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि एक तोते को भी नचा सकता है। देखिए यह वीडियो- |
एक बार एक आदमी अपनी नई नई खरीदी गई कार को चमकाने में व्यस्त था, तभी उसके चार वर्षीय बेटे ने पत्थर उठाया और कार पर बाल सुलभ भाव से कुछ खरोंचने लगा.
यह देखते ही उस आदमी को बडा जोर से गुसा आया. गुस्से में वह आदमी इतना पगला गया कि वो यह भी भूल गया कि उसके हाथ मे लोहे का रेंच है. उसने बच्चे के हाथ को पकडा और उसे उसी लोहे के औजार से बहुत मारा.
इतनी बेदर्दी से बच्चे के हाथों पर लोहे की रेंच से की गई चोट से उसके हाथों की तीन चार उंगलियां बुरी तरह टूट चुकी थी. शायद कई तो वापस जुडने की हालत मे भी नही थी.
बच्चा अस्पताल मे दर्द के मारे बुरी तरह चीख रहा था. जब बच्चे ने वहां अपने पिता को देखा तो उसने बडी दर्दनाक आवाज मे अपने पिता से पूछा - 'पिताजी मेरी उँगलियाँ कब वापस आएँगी ? यह पूछते समय बच्चे की आंखों से पीडा साफ़ झलक रही थी.
बेटे की बात सुन कर उसको दिल पर गहरी चोट लगी और वो बदहवाश होकर वापस आया और कार पर कई लाते मारी.
अपने गुस्से के कारण उसने बेटे का जीवन तबाह कर दिया था ...... अफ़सोस करते हुए उसने देखा कि गाड़ी के उपर बेटे ने पत्थर से खरोंच कर लिखा था " I LOVE YOU DAD"
गुस्से और प्यार की कोई सीमा नहीं होती. अच्छी और प्यारी जिन्दगी के लिए दोनों का चयन सोच समझ कर करना चाहिए . वस्तुए इस्तेमाल के लिए बनाई गयी है और इंसान प्यार करने के लिए. प्यार या गुस्से में आप खोना मतलब तबाही को दावत देना.
अच्छा अब अगले अंक तक के लिये अलविदा.
-संपादक (प्रबंधन) |
अल्मोड़ा से 34 किमी. दूर स्थित जागेश्वर धाम है जो अपने मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। जागेश्वर में जो मंदिर हैं ये 8वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं। जागेश्वर के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों का निर्माण चन्द और कत्यूर वंश के राजाओं के द्वारा किया गया है। जागेश्वर धाम 124 मंदिरों का समूह है जिसमें हर आकार के मंदिर हैं। कुछ बहुत बड़े तो कुछ बहुत छोटे।
जागेश्वर में कई देवी-देवताओं की बेहद आकर्षक मूर्तियां हैं। शिव-पार्वती और विष्णु भगवान की मूर्तियां विशेष रूप से आकर्षक हैं। महामृत्युंजय और जागेश्वर भगवान के मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर माने जाते हैं। जागेश्वर धाम से से पहले दंडेश्वर मंदिर पड़ता है। यहां पर काफी विशाल मंदिर हैं। इन मंदिरों की उंचाई लगभग 100 फुट तक है। इन मंदिरों के उपरी भाग में छत जैसी बनी हुई हैं जिनमें कलश रखे गये हैं। महामृत्युंजय मंदिर में धातु का तांत्रिक यंत्र भी है।
जागेश्वर धाम को भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक माना जाता है। इन मंदिरों में पुष्टिदेवी, नवग्रह, सूर्य भगवान आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं। मंदिरों की बाहरी दिवारों में कुछ शिलालेख भी लिखे हैं पर इन्हें अभी तक भी पढ़ा नहीं जा सका है।
कहते हैं कि एक बार भगवान शिव यहां जागेश्वर आये तो यहां की रमणीयता मे खोकर समाधि में लीन हो गये. उनको खोजते खोजते मां पार्वती आई और उन्होने शिवजी को समाधि लगाये देखा तो खुद भी आंखे बंद कर समाधि मे लीन हो गई.
इसी प्रकार बहुत सा समय दोनों की समाधि मे बीत गया तब तैतींस करोड देवता यहां आये और उन्होने इनको जगाना चाहा. तब भगवान शंकर और मां पार्वती यहां लिंग रुप मे प्रकट हुये. और तभी से यह स्थान जागेश्वर के नाम से जाना जाता है और लिंग रुप मे पूजा भी होती है.
जोगेश्वर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की पत्थर की प्रतिमा पुजित होती है . यह मंदिर भगवान शंकर का पश्चिम मुख है. इसमे उनका लिंग दो भागों मे बंटा है जिसमे बडा भाग शिवजी का और छोटा भाग पार्वती जी का है. शिव-पार्वती का यह श्रद्धानारीश्वर लिंग संसार मे सबसे अनूठा लिंग है.
जोगेश्वर को कई नामों से जाना जाता है जैसे बाल जगन्नाथ, यागेश, जागेश और यहां देवदार वृक्षों के नीचे हरे लाल पीले सांप बहुतायत मे पाये जाने के कारण इसे नागेश भी कहा जाता है.
सावन के माह में यहां पर शिवजी की विशेष पूजा पार्थी पूजा कराने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं। पूरा माह शिव की पूजा की जाती है। इस दौरान एक छोटा सा बाजार भी मंदिर के बाहर लगाया जाता है। जागेश्वर मंदिरों से लगा हुआ एक शमशान घाट भी है। यहां के लोगों का मानना है कि इसमें दाह संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इन्हीं मंदिरों से थोड़ी दूरी पर एक पुरात्व विभाग द्वारा संग्रहालय बनाया गया है जिसमें कई प्राचीन मूर्तियों का संरक्षण किया गया है।
संस्कृति संपादक
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आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
मैं हूं हीरामन
सभी भाईयों और बहनों को नमस्कार. आज के तीन विदुषक खिताब इस प्रकार हैं.
आज का पहला दिलचस्प टिपणी का खिताब जाता है श्री मीत को…आईये देखिये उन्होने क्या कहा?
पहले नंबर पर गले में रामप्यारी जैसा पत्ता लटकाए अगाथा संगमा..
अब कानिमौझी क्यों पीछे रहे नीचे बैठी रामप्यारी को पुचकार रहीं हैं... वाह! रामप्यारी तुम्हारे तो मज़े हैं..
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और दूसरे नम्बर पर हैं. श्री काजलकुमार….आईये उनकी भी सुनिये….क्या फ़रमाते हैं?
देखो भई बेटा रामप्यारी,
और दूसरी बात यूं है बेटा रामप्यारी, तूने इन्हें पहचानने की बात कही थी, ये नहीं कहा था कि नाम भी बताओ, तो देख मैंने पहचान बता दी है...नाम नहीं बता रहा हूँ...वो इसलिए भी, कि इनके नाम इस लायक अभी हैं भी नहीं कि बताये जाएँ...दरअसल अपना नाम बनाने के लिए इन्हें अभी बहुत मेहनत कि ज़रुरत है.
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और तीसरे स्थान पर हैं श्री शाश्त्री …..सुनिये आपकी भी…
देखने में तो एकदम अंदमान के जेल के अंदर का हिस्सा लगता है, लेकिन कालेपानी का नाम लेने वाली टिप्पणियों को आप ने छाप दिया है अत: इस चित्र में में जरूर कुछ पोल है. ढोल में पोल नहीं, जेल में पोल मालूम पडता है.
अब हीरामन को इजाजत दिजिये. अगले सप्ताह आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये अलविदा. |
आम भारतीयों के बीच कालापानी के नाम से जाना जाने वाला ये भारतीय क्षेत्र, स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वालों की कर्मभूमि रहा है. भारत की, स्वतंत्रता की लड़ाई की तीर्थस्थली 'सेल्युलर जेल' यहीं, पोर्ट-ब्लेयर में स्थित है. १८५७ की लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने अंडमान और निकोबार के खूबसूरत टापुओं को सज़ायफ़्ता भारतीयों के लिए जेल के रूप में बदल दिया.
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 572 द्वीप हैं. इनमें से कई टापू निर्जन हैं . ये टापू बंगाल की खाड़ी में, उत्तर से दक्षिण की ओर एक लड़ी में, 800 किलोमीटर तक फैले हुए हैं. इनका कुल क्षेत्रफल सवा आठ हज़ार किलोमीटर है, जिसमें से एक चौथाई निकोबार का क्षेत्र है. यहाँ की कुल आबादी साढ़े तीन लाख के करीब है. यहाँ प्रायः छोटे-मोटे भूकंप आते ही रहते हैं, ये भारत का सर्वाधिक भूकंप प्रभावित क्षेत्र है.
यह केंद्र शासित क्षेत्र है. इसे अंडमान और निकोबार नामक, दो जिलों में बांटा गया है. समुद्र के अतिरिक्त यहाँ वायुमार्ग से भी पहुंचा जा सकता है, यहाँ पोर्ट ब्लेयर में हवाई अड्डा है जहां चेन्नई और कलकत्ता से नियमित उड़ानें हैं. यहाँ हिंदी के अतिरिक्त, मुख्य रूप से तमिल, बांग्ला भाषियों की बहुलता है. यहाँ की मुख्य पैदावार नारियल और मसालों इत्यादि की है, कुछ हस्तशिल्प समुद्र उत्पाद से भी सम्बंधित हैं.
अंडमान क्षेत्र मुख्यतः पर्यटन आधारित है. यहाँ की प्रायः सभी वस्तुएं चेन्नई या कलकत्ता से मंगाई जाती हैं. निकोबार, भारतीय वायुसेना एवं नौसेना का मुख्य क्षेत्र है. वास्तव में यह क्षेत्र भारत की मुख्य भूमि की अपेक्षा बर्मा, थाईलैंड और मलेशिया के अधिक पास पड़ता है. यह क्षेत्र सुदूर-पूर्व अन्तराष्ट्रीय जलमार्ग के बहुत पास होने के कारण भारत के लिए अत्यधिक व्यापारिक और सामरिक महत्त्व का है. यह दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत का प्रभाव-क्षेत्र भी निश्चित करता है.
यहाँ का पानी एक दम साफ़ है, इतना साफ़ कि गाढ़ा नीला होने के कारण काला दिखता है, इसीलिए इसे कालापानी का नाम भी दिया गया था. यहाँ के कई टापू, मूंगा टापू ( coral ) हैं. यहाँ से coral ले जाना एक दंडनीय अपराध है.
यहाँ हर प्रकार की पर्यटन सुविधायें उपलब्ध हैं. जिनमें, water-surfing, snorkeling, scuba diving, trekking और camping शामिल हैं. यहाँ कुछ म्यूज़ियम भी हैं, जहाँ कई जानकारियां आपको एक ही जगह मिल जाती हैं.
यहाँ आप जितने अधिक दिनों की छुटियाँ लेकर जायेंगे उतने ही और दूर के टापू देख पायेंगे. पास के टापुओं तक लाने ले जाने के लिए स्टीमर नाव प्रयोग होती हैं, जबकि दूर-पार के टापुओं की यात्रा के लिए मध्यम आकर के जलयानों और ferry का प्रयोग होता है.
यहाँ उन आने वालों को निराशा हो सकती है जिनका उद्देश्य बस कुछ न कुछ देखना ही होता है. क्योंकि अंडमान और निकोबार देखने की जगह नहीं है, यह प्रकृति के साथ आत्मसात होकर आराम से समय बिताने की जगह है. शहरों की आपा-धापा के विपरीत, यहाँ जीवन शांत वेग से बहता है. यहाँ से लौटने के बाद हर भारतीय को गर्व होता है कि भारत में ऐसा एक और स्वर्ग भी है.
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ट्रेलर : - पढिये : श्री समीरलाल "समीर" उडनतश्तरी से अंतरंग बातचीत
कुछ अंश उडनतश्तरी से ताऊ की अंतरंग बातचीत के…….
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
समीर जी : फ़िर वही हुआ जो नही होना चाहिये था. पीछे से आवाज आई, नहीं, उसका नहीं तुम्हारा बाप जलायेगा!!! एकाएक लाईट आ गई. ऊँगलियों के बीच में बिन जलाई सिगरेट लिए मैं..सामने मेरा दोस्त हाथ में माचिस लिए..और उसके पीछे सीढ़ी पर पिता जी. सोचिये, क्या हाल हुए होंगे!! बस, मैं ही जानता हूँ कि उस वक्त हमारी क्या स्थिति हुई - बताने योग्य तो कतई नहीं.
ताऊ : वाह ..फ़िर तो आराम से शादी हो गई होगी?
समीर जी : अजी आराम से कहां हुई? घर वालों का विरोध तो ऐसा कि जाने कित्ती बार हम टंकी पर चढे.. और जब कोई उतारने ही नही आया तो खुद ही उतर भी गये..
ताऊ : अजी समीर जी आप भाभीजी से क्युं डर रहे हैं? हम बैठे हैं ना यहां वो कुछ नही कहेंगी? आप तो बताईये बिंदास. आपके अंदाज में.
समीर जी : ताऊ, मैं बहुत शर्मीला हूँ.
…… और भी बहुत कुछ धमाकेदार बातें…..पहली बार..खुद ..समीर जी की जबानी… |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
ताऊ जी !
ReplyDeleteआज की पोस्ट पढ़ कर तो दिल बाग-बाग हो गया।
जानकारियों से भरा ताऊनामा बहुत मनभावन रहा।
बधायी स्वीकार करें।
ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक भी कमाल का रहा। एक से एक रोचक और ज्ञानवर्धक बातें। कार और बच्चे वाली बात मन को छू गयी। बच्चे तो बच्चे होते हैं, शैतानियां वे नहीं करेंगे तो बूढ़े तो करने से रहे।
ReplyDeleteसमीर भाई और ताऊ की जुगलबंदी का इंतजार है। राम-राम।
साप्ताहिक पत्रिका का ये रंग भी पसंद आया। समीर जी से मुलाकात का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteअल्पनाजी, विनीताजी,और आशीष जी ने बढिया जानकारी दी, सीमाजी की पोस्ट बहुत कुछ सोचने को बाध्य करती है.और काजल कुमार जी के अनुभव बडे सुंदर लगे. पूरे संपादक मंडल का आभार.
ReplyDeleteकाजल जी का भी आभार. उनका अतिथी संपादक के रुप मे आना अच्छा लगा पत्रिका अब पत्रिका जैसा स्वरुप लेती जारही है.
बहुत बेहतरीन पत्रिका. जानकारियों से भरपुर है. धन्यवाद.
ReplyDeleteरोचक अंक. सीमा जी की पोस्ट मे बच्चों के साथ उपेक्षा भाव क्या रुप ले सकता है? इस पर अभिभावकों को सोचना पडॆगा. बच्चों की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिये.
ReplyDeleteसमीर जी की मुलाकात का ईंतजार है, ट्रेलर तो बडी धांसू फ़िल्म जैसा है. लगता है ताऊ अपने पुराने धंधे की तरफ़ लौटने वाला है.:)
ReplyDeleteबढिया अंक. बधाई.
बहुत लाजवाब अंक है जी. बधाई सभी को. और ट्रेलर बढिया लगा जी.
ReplyDeleteलास लगाती आस जगाती पत्रिका !
ReplyDeleteअरे बाबा ताऊ......!!यो सब के हो रयो सै अठ....थम लोग यो के खेल चला रया सो इत ब्लॉग का मैदान में.....महें तो दर्शक सां.....और मजो ले-ले-के थारी सारी "उठाईगिरी"देखा सां.....ठीक है ताऊ.....ठीक है.....कर लो-कर लो थम लोग अपनी अपनी मनमानी....लेकिन ताऊ मैं बताऊँ.....??ज्याद्दा मनमानी भी ठीक कोणी हुआ करै सै....ये बात थम अपनी गाँठ में बाँध लो.....और हाँ ताई नै भी समझा दो हाँ.....!!
ReplyDeleteरोचक पत्रिका का तो इंतज़ार सा होने लगता है.ज्ञानवर्धक,शिक्षाप्रद ,मनोरंजक सामग्रियों से भरपूर सुन्दर पत्रिका
ReplyDeleteअंडमान की यात्रा पढ़कर जाने की बेकरारी.....
I love u dad ,बहुत ही मार्मिक रचना ,बच्चों की शरारत के पीछे की मानसिकता क्यूँ नहीं समझ पाता इंसान ?? :((
जागेश्वर के बारे मैं उत्तम जानकारी..व एक और मशहूर बात ये है की वहाँ पर हिट फिल्म बॉर्डर (सन्नी देवोल )के भी कई सीन फिल्माए गये थे .....:))
बहुत शुक्रिया !!!
सीमाजी का आलेख हमेशा की तरह मगर दिल को छू गया.
ReplyDeleteजब हम किसी पर गुस्सा होतें है, तो
१. हम समझते हैं कि हम सही हैं, और वह गलत
२. हमारी कुंठायें, खीज या मोह हमें उद्वेलित कर देता है, और हम आपा खो बैठते हैं.
३. मानवीय संवेदना के बहाने से हम अपनी भडास निकाल कर अपना मन हल्का कर लेते हैं(शाय्द कभी कभी), मगर उसकी संवेदनाओं की परवाह किये बगैर उसके दिल में सुराग कर देते हैं.
मन एक घोडा है, जिसपर सवार हो आप दुनिया जीतने निकलते हैं, मगर यूं वह घोडा आप पर सवार हो जाता है.आप अपने ऊपर अपनी परेशानीयां, ज़िल्लत और ग़म के साथ साथ इस घोडे का भी वज़न ढोते हैं.
लाविजा और आदित्य आप दोनों को जन्मदिन की ढेर सारी बधाईयाँ !रामप्यारी भी आई थी क्या पार्टी में??
ReplyDeleteआज की साप्ताहिक पत्रिका का नया रूप बहुत ही अच्छा है.शायद पाठकों को भी पसंद आएगा kyonki सामग्री पढने के लिए पेज छोड़ कर जाने की आवश्यकता नहीं है.
आशीष जी-नाचते सफ़ेद तोते का विडियो वाकई बहुत मजेदार है.
विनीता जी और काजल जी को भी धन्यवाद.हीरामन के पुरस्कार के विजेताओं को बधाई.
सीमा जी , कथा मार्मिक है.सन्देश पहुँचता है कि अपने क्रोध पर आवेश पर काबू रखना चाहिये.
समीर जी के interview का इंतज़ार रहेगा.
सेल्युलर जेल वास्तव में भारतीयों के लिए तीर्थ समान है. इसे पहचानने में चुक नहीं हुई.
ReplyDeleteनेहरू इसे गीरा देना चाहते थे, ताकी कोई प्रमाण न रहे और इतिहास केवल कांग्रेस का रहे. मगर भारत माता के सपूतों की संघर्ष कथा सुरक्षित रही.
baadhai
ReplyDeleteबहुत उत्तम पत्रिका. बडी सटीक जानकारी मिलॊ सेल्लुलर जेल के बारे मे.
ReplyDeleteतोते के डांस का विडियो लाजवाब रहा. सभी सामग्री अति उत्तम है
ReplyDeleteऔर ट्रेलर तो बडा मस्त है, असली पूरी फ़िल्म का इंतजार करते हैं.
ReplyDeleteलाजवाब है जी आपकी पत्रिका. रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी से भरपूर.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी वाली पत्रिका .
ReplyDeleteताऊ राम राम
ReplyDeleteसभी कमाल का लिखते हैं भाई..........अपना अपना मोर्चा सभी ने ठीक से संभाल रखा है.......सीमा जी की सीख, अल्पना जी की जानकारी.............आशीष जी के तोते का नाच.............इब मज़ा आ गया भाई........
इस पत्रिका में हर एक योगदान अत्युत्तम है । लम्बी पोस्ट हो जाने की परेशानी के लिये ये स्क्रोल बार वाला विकल्प अच्छा है । धन्यवाद
ReplyDeleteताऊ आपका ब्लॉग क्या है जानकारियों का ऐसा खजाना है जो और कहीं नहीं दिखाई नहीं देता...भाई गज़ब ही है...सच्ची...थारी सों
ReplyDeleteनीरज
सभी को बहुत बधाई... नया रुप भी बहुत अच्छा है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ताऊ ! हम तो इस बार कलकत्ते में उलझ गए :-)
ReplyDeleteअल्पनाजी, विनीताजी,और आशीष जी ने बढिया जानकारी दी,
ReplyDeleteलाविजा और आदित्य आप दोनों को जन्मदिन की ढेर सारी बधाईयाँ
समीर जी की मुलाकात का ईंतजार है,
सभी को बहुत बधाई...
ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का ये अंक भी बहुत जोरदार रहा.......समीर जी के साक्षात्कार की प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteबहुत लाजवाब अंक,ज्ञानवर्धक जानकारी .
ReplyDeletebahut hi achcha laga tau ji...........
ReplyDeleteतबीयत मस्त हो गयी. आभार.
ReplyDeleteताऊ पत्रिका का यह अंक भी हमेशा की तरह लाजवाब. सारे स्तंभ ज्ञानवर्धक और रोचक है.
ReplyDelete..समीर जी से साक्षात्कार का इंतज़ार रहेगा.
पत्रिका का संयोजन अत्यंत आकर्षक है !
ReplyDeleteसेल्यूलर कारागार की अधिकारिक साईट देखकर
मन अभिभूत हो उठा !मेरे लिए तो इसे देखना चारों धाम के तुल्य है.!
बरबस माखन लाल चतुर्वेदी बचपन में पढ़ी
पंक्तियाँ याद आ गयीं ....
"चाह नहीं मैं सुरबाला के .....
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ देना तुम फ़ेंक मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक ..............."
सीमा जी की लघु-कथा दिल को छूती है और साथ ही आचरण में बदलाव लाने को प्रेरित करती है !
आशीष जी के तोते का डिस्को डांस पत्रिका को
और भी लुभावना बना रहा है !
सामूहिक प्रयास सराहनीय है !
ताऊ, पत्रिका का स्वरुप धांसू होता जा रहा है. आनन्द आ गया. सीमा जी की कथा मार्मिक है और अन्य सभी के उदबोधन उम्दा एवं ज्ञानवर्धक.
ReplyDeleteअब जब सब कर रहे हैं तो हम भी गुरुवार का इन्तजार कर लेते हैं. :)
सीमाजी का आलेख शिक्षाप्रद होते हुए भी बहुत दर्दनाक था.
ReplyDeleteताऊ साप्ताहिक पत्रिका का ये बदला और निखरा रूप मन को भा गया......सभी की मेहनत रंग ला रही है.......सभी पाठको का आभार जो दिन बा दिन प्रोत्साहन बडा रहे है और पत्रिका के इस रोचक स्वरूप मे अपना योगदान दे रहे हैं.
ReplyDeleteregards
हमेशा की तरह पठनीय पत्रिका.. समीरलाल जी इंटरव्यू का इंतजार रहेगा.. आभार
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