सोचता हूं
जीवन को मंजिल तक ले जाए
ऐसी राह कोई नजर आती नही
एक नज़र पीछे भी देखा तो सिर्फ़
मुरझाये फ़ूळ, झरे हुये पत्ते
कांटे से भरी राहें अनगिनत और
एक लंबी सुनसान रात के बाद
सामने छटपटाती सी एक सुबाह
सोचता हुं.....
रोज रोज की जलन से अच्छा है
सौ सुनार की और एक लुहार की
कहावत को ही मै सार्थक कर लुं
और इस शरीर रूपी ताबुत मे
रात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
जीवन को मंजिल तक ले जाए
ऐसी राह कोई नजर आती नही
एक नज़र पीछे भी देखा तो सिर्फ़
मुरझाये फ़ूळ, झरे हुये पत्ते
कांटे से भरी राहें अनगिनत और
एक लंबी सुनसान रात के बाद
सामने छटपटाती सी एक सुबाह
सोचता हुं.....
रोज रोज की जलन से अच्छा है
सौ सुनार की और एक लुहार की
कहावत को ही मै सार्थक कर लुं
और इस शरीर रूपी ताबुत मे
रात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
"जीवन को मंजिल तक ले जाए
ReplyDeleteऐसी राह कोई नजर आती नही .......
सौ सुनार की और एक लुहार की......
शरीर रूपी ताबुत मे
रात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं।"
सुश्री सीमा गुप्ता जी।
सत्य को उजागर करती हुई कविता।
कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने।
ताऊ घणी राम-राम।
हे ताऊ ई तो खतरनाक चिंतन है भाई -देखो कुछ ऐसा वैसा न कर गुजरना .ताई वाई का ध्यान रहे ! और हमारा भी !
ReplyDeleteऔर सीमा जी से शिकायत कैसे इसे उन्होंने अनुमोदित किया !
जीवन को मंजिल तक ले जाने की चाह ही इस सारी छटपटाहट की वजह है । क्या निरन्तर गति जीवन नहीं?
ReplyDeleteजीवन को जीवन के घटते हुए सातत्य में निरखना और उससे एकमेक हो जाना ही जीवन के लक्ष्य तक जाने की राह है ।
और इस शरीर रूपी ताबुत मे
ReplyDeleteरात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं
अक्सर जीवन में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं और यही बीज की पीडा है. आप इस वेदना को व्यक्त करने मे सफ़ल रहे हैं.
जीवन का यथार्थ या कहें अंतिम सत्य.
ReplyDeleteवाकई परम सत्य. पर ताऊश्री आप इतनी गहरी पीडा क्यों व्यक्त कर रहे हैं? आप तो अभी सबसे ज्यादा कमाऊ (टिपणियां) ब्लागर हो?:)
ReplyDeleteआपकी भाषा मे ही रामराम
बहुत गहरी बात कही.
ReplyDeleteएक लंबी सुनसान रात के बाद
ReplyDeleteसामने छटपटाती सी एक सुबाह
सोचता हुं.....
" जीवन के कुछ ऐसे पल जब जब सब निरर्थक लगे .....उन पालो की सोच को ताऊ जी आपके इन शब्दों ने यथार्त रूप प्रदान किया है......जीवन के एक कडवे सच को सार्थक करते शब्द ...ये भी जीवन का एक हिस्सा है.."
regards
धन्यवाद सीमा जी को .
ReplyDeleteअच्छी लिखी गई है पर काहे इतनी निराशा।
ReplyDelete'रात को दफ़न करने के पहले
ReplyDeleteम्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं'
..
अक्सर होता है ..आशा निराशा के बन्धनों से दूर उस दुनिया में जाने की चाह होती है,जहाँ सिर्फ परम सत्य से परिचय होता है.
मन की गहन वेदना से उपजे शब्द ,अभिव्यक्ति की सफल प्रस्तुति कर रहे हैं.
एक अच्छी रचना ...जीवन को कहती
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
यह सोचना सचमुच खतरनाक है.
ReplyDeleteरात को दफ़न करने के पहले
ReplyDeleteक्यों न एक और सवेरा देख लूँ. :)
क्या वाह-वाह लगा रखी है सबने ?
ReplyDeleteयह कविता नहीं सुसाईड नोट प्रतीत हो रहा है !
अवसाद और निराशा में डूबी इस रचना का
बायकाट करना चाहिए !
"रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
काँटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के "
[ बेहतर होगा आप गुरू रवि शंकर के
'आर्ट आफ लिविंग' कार्यक्रम में हो आईये ]
कहावत को ही मै सार्थक कर लुं
ReplyDeleteऔर इस शरीर रूपी ताबुत मे
रात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं
itana gehra dard samaya hai rachana mein,sach jeevan ka ujagar ho gaya,aakhari satya wahi hai,padhnewalon ke dil mein aisi tis paida ki hai ke laga saara jeevan nirarrthak sa hai,yahi is kavita ki kamyaabi.badhai.
ताऊ ये तो घनी चोखी बात लिख डाली...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखी है...
मीत
एक लंबी सुनसान रात के बाद
ReplyDeleteसामने छटपटाती सी एक सुबाह
bahut gahan pida ke bhav hai.
गहन अभिव्यक्ति. कभी कभी ऐसा होना भी स्वाभाविक है.
ReplyDeleteताऊ आपके मूंह से ऐसी गहन वेदना की कविता सुनकर आश्चर्य होता है. आपतो हमेशा हंसते हंसाते रहते हो. आज क्या बात है? सब खैर तो है?
ReplyDeleteकहीं ताई ने ज्यादा लठ्ठ वठ्ठ तो नही मार दिये.
:)
ताऊ आपके मूंह से ऐसी गहन वेदना की कविता सुनकर आश्चर्य होता है. आपतो हमेशा हंसते हंसाते रहते हो. आज क्या बात है? सब खैर तो है?
ReplyDeleteकहीं ताई ने ज्यादा लठ्ठ वठ्ठ तो नही मार दिये.
:)
ताऊ जी राम-राम।
ReplyDeleteब्लॉग खोलते ही लगा मैने किसी और का ब्लॉग खोल दिया आज क्या बात हो गई जो ताऊ जी इतनी वेदनापूंर्ण रचना लिखने लगे।
आप हसंते हंसता अच्छे लगते हो, हमें वही ताऊ जी चाहिए। लेकिन आपने लिखा बहुत अच्छा है। आप हमेशा मुस्कुराते रहें यही दुआ करती हूं।
Sunder kavita
ReplyDeleteएक लंबी सुनसान रात के बाद
ReplyDeleteसामने छटपटाती सी एक सुबाह
सोचता हुं.....
मन के गहन अंधकार से निकले ये पीडादायक शब्द शायद जीवन वेदना की उपज हैं.
और इस शरीर रूपी ताबुत मे
ReplyDeleteरात को दफ़न करने के पहले
म्रत्यु रूपी आखिरी कील ठोक दूं
--बहुत सही.
बहुत ही गहन रचना.
ReplyDeleteबहुत ही गहन रचना.
ReplyDeleteगहरी वेदना छलक रही है.
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव लिए है यह रचना ..पर इतनी निराशा क्यों ? किस लिए ? उम्मीद और आशा का दीप जलाए रखना चाहिए ..
ReplyDeleteबिल्कुल नहीं जी। ऐसा खतरनाक काम न करियेगा। वैसे भी सेनसेक्स तो चढ़ने लगा है।
ReplyDeleteजीवन और मंजिल तो मेरे हिसाब से दो अलग अलग चीजों का नाम है, जीवन जहाँ चलता रहता है , मंजिल वहीँ थमी होती है . और यदि पीछे मुड़ने पर मुरझाएं हुए फूल, झरे हुए पत्ते नज़र आयें तो ये ख़ुशी कि बात है कि अब मौसम बदलने वाला है .
ReplyDeleteमन में पीडा हुई के इस कविता में जीवन से ऊबने जैसे विचार तो आते हैं पर इस तरह जीवन का अंत का विचार क्यों ?
सौ सुनार की और एक लुहार की
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कविता पसँद आई सीमा जी और मुहावरे का प्रयोग
इसे अनूठा बना रहा है
स स्नेह,
- लावण्या
मेरे गुरू जी कहा करते हैं कि कविता में पलायनवादिता नहीं होनी चाहिये...
ReplyDeleteअरे क्यों डिप्रेस करते हैं :-)
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