प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के 18 वें अंक मे स्वागत है.
राऊंड दो के आठवें अंक की पहेली का सही जवाब बडा इमामबाडा लखनऊ था. जिसके बारे मे आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
आजकल चुनाव का मौसम है. अधिकतर लोग चुनाव कार्य मे किसी ना किसी रुप मे व्यस्त हैं. हम भी इस लोकतंत्र के यज्ञ में अपने मताधिकार का अवश्य प्रयोग करें.
अक्सर ऐसा सोच लिया जाता है कि मेरे एक अकेले वोट से क्या होगा? तो यह मत भूलिये कि छोटी वस्तुओं का समूह भी कार्यसाधक हो सकता है जिस तरह तिनकों की बनी रस्सी से मतवाले हाथी भी बांध लिये जाते हैं.
खैर दोस्तों ..सब अपनी मर्जी के मालिक हैं पर याद रखिये कि सबको मर्जी का मालिक भी इसी लोकतंत्र ने ही बनाया है. अत: इसकी परम्पराओं और मर्यादाओं का पालन करना हमारी आजादी के लिये नितांत जरुरी है.
पानी की बडी किल्लत हो गई है. पर क्या किया जा सकता है? हमने ही जो वृक्ष काटने के गुनाह किये हैं उनका ही नतीजा है. आगे पीछे करनी का फ़ल तो भोगना ही पडता है.
नल में पानी की एक भी
बूंद नही आती थी
मजबूर प्रेमी प्रेमिका
आखिर जान से हाथ धो बैठे.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में जनसँख्या की हिसाब से सब से बड़ा प्रदेश है उत्तर प्रदेश.उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग ४००० वर्ष पुराना है,जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा तब वेदिक सभ्यता का उत्तर प्रदेश मे जन्म हुआ.इन्ही आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष पड़ा था.[भरत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे].
मथुरा शहर में जन्मे थे भगवान कृष्ण और भगवान राम" का प्राचीन राज्य कौशल इसी क्षेत्र में था.संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर भी यहीं है.
लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी, लखनऊ एक आधुनिक शहर है.गंगा नदी की सहायक नदी, गोमती के किनारे बसा लखनऊ शहर अपने उद्यानों, बागीचों और अनोखी वास्तुकलात्मक इमारतों के लिए जाना जाता है.यह नवाबों के शहर के नाम से भी मशहूर है .लखनऊ शहर में सांस्कृतिक और पाक कला के विभिन्न व्यंजनों से भी जाना जाता है.
यहाँ के लोग अपनी तहजीब ,खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत, के लिए भी प्रसिद्ध है.यहाँ की चिकन की कढाई वाले परिधान और चीनी - मिटटी के बर्तन तो आप सब ने सराहे ही हैं. यह बहु सांस्कृतिक शहर ऐतिहासिक रूप से 'अवध क्षेत्र 'के नाम से जाना जाता था. प्राचीन इतिहास अनुसार लखनऊ में प्राचीन कोशल राज्य का हिस्सा था. श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को दे दिया इसलिए इसे लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया,कुछ कहते हैं की इस शहर का नाम, 'लखन अहीर' जो कि 'लखन किले' के मुख्य कलाकार थे, के नाम पर रखा गया था.अंग्रेज कहते थे-Lucknow is--Luck-now- उन के लिए यह भाग्यशाली जगह रही थी. देखने के लिए जगह-: १-घंटाघर -यह भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। २-रूमी दरवाजा नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में रूमी दरवाजे का निर्माण भी अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। ३-सआदत अली और खुर्शीद जैदी का मकबरा -अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं. ४-रेज़ीडेंसी -लखनऊ रेजिडेन्सी सिपाही विद्रोह के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था. ५-जामी मस्जिद-इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया. ६-छोटा या हुसैनाबाद इमामबाड़ा-इसका निर्माण मोहम्मद अली शाह ने करवाया था. ७-बनारसी बाग--यह एक चिड़ियाघर है. ८-पिक्चर गैलरी -19वीं शताब्दी में बनी इस गैलरी में सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं.कुछ तस्वीरें ३डी हैं. ९-मोती महल -सआदत अली का बनवाई ,गोमती नदी के किनारे तीन इमारतों में मोती महल प्रमुख है. १०-शहीद स्मारक-गोमती की किनारे है. ११-निम्बू पार्क,हाथी पार्क आदि.- १२-बोटानिकल गार्डन. ,चाइना हट आदि. १३--और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाली सब से महत्वपूर्ण जगह है--बड़ा इमामबारा. बड़ा इमामबाड़ा:_-
इस इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसफउद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था,यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 16 मीटर ऊंचा है। इसके संकल्पना कार थे किफायत - उल्ला, जो ताजमहल के वास्तुकार के संबंधी कह जाते हैं.इस संरचना में गोथिक प्रभाव के साथ राजपूत और मुगल वास्तुकलाओं का मिश्रण दिखाई देता है।
बाड़ा इमामबाड़ा एक रोचक भवन है। यह न तो मस्जिद है और न ही मकबरा, किन्तु इस विशाल भवन में कई मनोरंजक तत्व अंदर निर्मित हैं। कक्षों का निर्माण और वॉल्ट के उपयोग में सशक्त इस्लामी प्रभाव दिखाई देता है। यह हॉल लकड़ी, लोहे या पत्थर के बीम के बाहरी सहारे के बिना खड़ी विश्व की अपने आप में सबसे बड़ी रचना है।
इसकी छत को किसी बीम या गर्डर के उपयोग के बिना ईंटों को आपस में जोड़ कर खड़ा किया गया है। अत: इसे वास्तुकला की एक अद्भुत उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। इस भवन में तीन विशाल कक्ष हैं, इसकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्बे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट मोटी हैं। यह घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है, इसमें 1000 से अधिक छोटे छोटे रास्तों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ प्रपाती बूंदों में समाप्त होते हैं, जबकि कुछ अन्य प्रवेश या बाहर निकलने के बिन्दुओं पर समाप्त होते हैं।
इस भूल भुलय्या में जाने के लिए एक अनुमोदित मार्गदर्शक की सहायता लेनी चाहिये| इस इमामबाडे में 5 मंजिला एक गहरी बावली भी है,जो गोमती नदी से जुड़ी है.इसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिलें हैं, शेष तल पानी के अंदर पूरे साल डूबे रहते हैं। इस इमामबाड़े में एक आसफी मस्जिद भी है.मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं. आसफी या बड़े इमामबाडे के बारे में कुछ और जानकारी श्री प्रकाश गोविन्द जी के द्वारा –: आठवीं एवं नवीं मोहर्रम को इस इमामबाडे में रोशनी की जाती है ! इमामबाडे का प्रकाश और आग का मातम देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं !
कहा जाता है कि इमामबाडे की मोटी-मोटी दीवारों और मेहराबों के पाये भी कुछ खुले हैं, इनमें भी भूलभुलैया का कुछ भाग है ! इसी प्रकार फर्श के नीचे तहखाना और टेढे-मेढ़े मार्ग हैं ! इनमें जो भी व्यक्ति गया वह वापस नहीं आया ! इसी कारण ब्रिटिश काल में इसको बंद कर दिया गया ! दुर्भाग्यवश भुलभुलय्या का नक्शा मौजूद नहीं है ! अगर नक्शा होता तो इमामबाड़े की भूल-भुलैया का रहस्य खुलता और भूमिगत सुरंगों का पता चलता ! इमामबाड़े के निर्माण कार्य पर खर्च होने वाला धन उस समय का डेढ़ करोंड रुपये आँका गया है ! कार्यरत श्रमिकों की संख्या 22000 बतायी जाती है !
कैसे जाएँ-
रेलमार्ग -लखनऊ जंक्शन भारत के प्रमुख शहरों से अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से लखनऊ मेल और शताब्दी एक्सप्रेस, मुम्बई से पुष्पक एक्सप्रेस, कोलकाता से दून और अमृतसर एक्सप्रेस के माध्यम से लखनऊ पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग -राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से दिल्ली से सीधे लखनऊ पहुंचा जा सकता है। लखनऊ का राष्ट्रीय राजमार्ग 2 दिल्ली को आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी और कानपुर के रास्ते कोलकाता को जोडता है.
[राम आसरे के कचोडी -आलू ,बेकरी हट की पेस्ट्री मुझे अब भी याद हैं.]
अच्छा अब अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं, तब तक के लिये अलविदा. -अल्पना वर्मा ( विशेष संपादक ) |
क्या यह सबसे लंबा इंसान है?
इस इंसान को देखिए। इसका कद है आठ फीट और यह दुनिया का सबसे लंबा व्यक्ति बनने जा रहा है। कमाल की बात यह है कि इसे पता ही नहीं था कि यह इतना लंबा है कि इसका नाम गिनीज बुक में शुमार हो सकता है।
चीन के झाओ लियांग 27 साल के हैं। हाल ही बास्केटबॉल प्रशिक्षण के दौरान लगी चोट के बाद उन्हें अस्पताल में ऑपरेशन कराना पड़ा। उस वक्त जब अस्पताल के कर्मचारियों ने जब उनकी माप ली, तो वे ्छादंग रह गए। लियांग का कद 8.07 फीट (2.46 मीटर) है। गौरतलब है कि फिलहाल गिनीज बुक में सबसे लंबे व्यक्ति के रूप में बाओ जिशुन का नाम दर्ज है, जिनका कद केवल 7.9 फीट है।
लियांग की मां वांग केयुन का कहना है कि उसे बहुत भूख लगती है। वह एक बार में तीन आदमियों के बराबर भोजन करता है। वांग को बहू को लेकर बड़ी चिंता है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि इतने लंबे लड़के से कौन शादी करेगा? हालांकि इतने लंबे कद की वजह से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी नहीं है। गिनीज बुक के अधिकारी अब इस दावे की पुष्टि करने की कवायद में लग गए हैं और उम्मीद है कि लियांग अब सबसे लंबे जीवित व्यक्ति के रूप में जाने जाएंगे।
अच्छा अब इजाजत दिजिये. आपका सप्ताह शुभ हो. -आशीष खण्डेलवाल ( तकनीकी संपादक ) |
एक ज्ञानी संत,अपने शिष्यों के साथ बैठे सत्संग कर रहे थे. संत ने अपने शिष्यों से पूछा :- क्या आप लोग जानते हैं कि 'हम गुस्से में इतना क्यों चिल्लाते हैं? क्यों लोग एक दूसरे पर जोर से चिल्लाते हैं?
चेलो ने अपने अपने हिसाब से अनेक जवाब दिये. मगर संत को संतुष्ट नहीं कर सके.
फिर संत ने दुबारा पूछा : क्या आप बता सकते हैं कि जब दो लोगों में प्यार हो जाता है ? तब वो एक दूसरे पर चिल्लाते नहीं अपितु धीरे, और कोमलता से बात करते हैं क्यों?
अब शिष्यों ने आश्चर्य से पूछा : क्यों गुरुदेव?
संत बोले - क्योंकि प्यार मे उनके दिल बहुत करीब गये हैं. उनके बीच की दूरी बहुत छोटी है ...अब उनको चिलाकर बात करने की जरुरत ही नही रह गई है.
संत बोले : इस दशा मे वे बोलते नहीं केवल बुदबुदाते है और एक दुसरे के दिल के और भी करीब होते जाते हैं. और अंत में उन्हें धीरे धीरे बोलने की भी ज़रूरत नहीं है, वे केवल एक दूसरे को देखते है और एक दुसरे की बात समझ जाते हैं .
तो प्यार मे लोग इतने करीब हो जाते हैं की बिना बोले भी सब समझ जाते हैं. यानि मौन की भाषा भी समझ आने लगती है.
जब कभी आप किसी से बहस करते है इतनी न करे की दिलो मे दुरिया बढ जाये. और ऐसे अपमान जनक शब्दों का इस्तेमाल ना करें की ये दूरियां उस हद तक पहुंच जाएँ जहाँ से वापस आने का कोई रास्ता ही न मिले.
अच्छा तो अब अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं, तब तक के लिये अलविदा. -Seema Gupta संपादक (प्रबंधन) |
हमारी अतिथि संपादक सुश्री विनीता यशश्वी अल्मोडा के दशहरे के बारे मे सचित्र जानकारी दे रही हैं । आईये अब उनसे जानते हैं अल्मोडा के दशहरे के बारे में. नमस्कार, आज मैं आपको अल्मोडा के दशहरे के बारे में बताती हूं.
अल्मोड़ा कुमाऊँ का ऐसा शहर है जहाँ कुमाउंनी संस्कृति का अच्छा मुजाहरा होता है। अल्मोड़ा में दशहरा मनाने का एक अलग ही अंदाज है। वहाँ दशहरा मनाने के लिये अलग -अलग मुहल्लों में रावण से संबंधित सभी राक्षसों के पुतले बनाये जाते हैं।
जिन्हें करीब एक-डेढ़ महीने पहले से बनाना शुरू कर दिया जाता है और दशमी के दिन सुबह सभी मुहल्ले वाले अपने-अपने पुतलों को अपने मुहल्ले के आगे खड़ा कर देते हैं।
दिन के समय सभी पुतलों को एक स्थान पर एकत्रित किया जाता है और शाम को सभी पुतलों की परेड अल्मोड़ा बाजार से निकाली जाती है। इस परेड में लगभग डेढ़ दर्जन पुतले शामिल होते हैं जिन्हें भव्य आयोजन के दौरान अल्मोड़ा स्टेडियम में रात के समय जलाया जाता है।
ऎसा माना जाता है कि अल्मोडा में इस मेले की शुरुआत सन १९०३ से हुई। इस आयोजन में हिन्दु-मुस्लिम सभी आपस में मिलजुल के काम करते हैं। कुछ मुहल्ले तो ऐसे भी हैं जहाँ इन कमेटियों के अध्यक्ष भी मुसलमान हैं और वो पूरे हिन्दू अनुष्ठान के तहत इस आयोजन को सफल बनाने के लिये जुटे रहते हैं।
पहले इन पुतलों की लम्बाई बहुत ही ज्यादा होती थी पर अब थोड़ी कम हो गई है। इन पुतलों में बच्चे भी अपने पुतले बनाते हैं और उन्हें परेड में शामिल करते हैं। अल्मोड़ा में इस दशहरे को देखने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं और अल्मोड़ा के लोगों को तो इसका इंतजार रहता ही है। देर रात तक भी सब इस परेड को देखने के लिये इंतजार करते रहते हैं।
इस दौरान मां दुर्गा की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों को मुहल्लेवार ही बनाया जाता है। जो भी मुहल्ले वाले अपने मुहल्ले की दुर्गा बनाना चाहते हैं। अपने मुहल्ले में इसका आयोजन करते हैं और दशमी के दिन पूरे शहर में इन मूर्तियों को घुमा के अल्मोड़ा के निकट क्वारब में इन मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाता है।
अच्छा अब इजाजत दिजिये.
अतिथि संपादक
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आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
मैं हूं हीरामन
राम राम ! सभी भाईयों और बहनों को.
आज के प्रथम विदूषक का खिताब जाता है श्री नीरज गोस्वामी जी को
April 18, 2009 9:53 AM भाई ताऊ ऐ के कर दिया तमने...सुभा सुभा दिमाग में घमासान चलन लाग री है... घणी जोर की... पूछो क्यूँ...न भी पूछो तो भी बताऊंगा ही...ताऊ एक दिमाग के रया की ये डीग के महल हैं जो भरत पुर के पास है... दूसरा दिमाग इसे लखनऊ का बड़ा इमामबाडा बता रया है...के करूँ...
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द्वितिय स्थान पर हैं :
April 18, 2009 2:18 PM रामप्यारी ये तूने क्या कर दिया ?...मुझे तो दोनों में से कोई भी जवाब नहीं आता था पर ये कैसा क्लू है...तुमने तो क्लू के नाम पर एक पर्चा ही लीक कर दिया..मसीही छायावती न..न..न.. मायावती के राज में मुग़लिया वास्तुकला का ये गम जाने वाला नमूना लखनऊ के इमामबाड़े के अलावा और क्या हो सकता है..., बोनस सवाल भी लीक कर दो न, देखी जायेगी ... मेरी ओर से ढेर सारी चाकलेट (और ताऊ की ओर से डंडा..) और हाँ, एक बात और...तुमने पूछा था कि मुझे कार्टूनों के ऐसे ऐसे आइडिये कहाँ से आते हैं तो, तुम्हारी इस, केवल मेरे लिए प्रायोजित विशेष पहेली का जवाब बस इतना सा है कि मैं भी तुम्हारी ही तरह थोड़ा सा शरारती हूँ इसीलिए मुझे भी ऐसी बदमाशियां सूझती रहती हैं .-:)
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और तृतिय स्थान पर हैं:
April 18, 2009 4:49 PM ताऊ
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और आज का चौथा स्थान जाता है :
April 18, 2009 6:44 AM रामप्यारी तेरे हिंदी वाले सवाल का क्या जबाब दे ताऊ की पहेली का जबाब खोजने में इतना दिमाग खर्च हो गया कि तेरे सवाल का जबाब देने के लिए कुछ बचा ही नहीं ! |
ट्रेलर : - पढिये : गुरुवार ता : २३ अप्रेल २००९ को महाताऊ गौतम राजरिशी से अंतरंग बातचीत
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :- मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
अतिथि संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
पत्रिका सुंदर और ज्ञानवर्धक बनी है। सहेजने लायक हो गई है। पर क्यूँ सहेंजें? यह तो हरदम हाजिर है जाल पर।
ReplyDeleteजानकारी और मनोरंजन से भरा ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अंक १८ बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteरोचक होने के कारण इस अंक की लम्बाई का आभास तब हुआ, जब इसको पूरा पढ़ लिया गया। आशा है आगामी अंक भी ज्ञान, मनोरंजन और रोचकता से परिपूर्ण होंगे।
आपका-प्रतिदिन का एक पाठक।
कृपया भूल सुधार करें -
ReplyDelete१.सारनाथ में चौखन्डी,धमेक तथा धर्मराजिका नामक तीन स्तूप हैं जिसमे सर्वाधिक प्रतिष्ठा धमेक को है और इन स्तूपों से भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन का कोई सम्बन्ध नहीं है ,जैसा कि आपने उल्लेख किया है .
२. लखनऊ को कभी भी शिराज-ए-हिंद के रूप में नहीं जाना गया ,यह उपाधि जौनपुर की थी .
लखनऊ के बारे में अच्छी जानकारी के लिए आपको धन्यवाद .
पत्रिका मनोरंजक और जानकारियों से भरी है हर बार की तरह । मुझे तो झलक देखकर गौतम जी का साक्षात्कार पढ़ने की इच्छा हो रही है अभी ।
ReplyDeleteलखनऊ की उपयोगी जानकारी के लिए अल्पना जी का आभार.....और दुनिया भर की आश्चर्यजनक हकीक़तो से रूबरू करने मे आशीष जी का कोई जवाब नहीं......विनीता जी द्वारा दी गयी जानकारी अल्मोडा के दशहरे बारे मे भी रोचक लगी.... हीरामन जी आपके सभी विदूषक खिताब विजेताओ को बधाई....
ReplyDeleteregards
bahut achhi pratika rahi,lakhnau kabhi gaye nahi,padhna achha laga,lamba aadami,kahani aur kumauni dashera bhi bhaa gaya .
ReplyDeleteबहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी .
ReplyDeleteबहुत कुछ जानने और पढ़ने को मिला
लखनऊ के बारे में दी गई वृहत् जानकारी बहुत ज्ञानवर्द्धक रही.. इसके विशेष संपादक अल्पनाजी का आभार.. प्रबंधन संपादक सीमा जी की एक और सीख को गांठ बांध लिया है.. अतिथि संपादक विनीता जी द्वारा अल्मोड़ा के दशहरे के बारे में दी गई रोचक जानकारी ने यहां एक बार फिर जाने की इच्छा बढ़ा दी है.. ताऊ जी को वादा करता हूं कि मतदान भी अवश्य करूंगा और पानी की एक भी बूंद व्यर्थ नहीं करूंगा.. टिप्पणियों की इतनी शानदार खोज खबर के लिए हीरामन का भी आभार
ReplyDeleteसबसे काम की बात
ReplyDeleteजब कभी आप किसी से बहस करते है इतनी न करे की दिलो मे दुरिया बढ जाये. और ऐसे अपमान जनक शब्दों का इस्तेमाल ना करें की ये दूरियां उस हद तक पहुंच जाएँ जहाँ से वापस आने का कोई रास्ता ही न मिले.बहुत बहुत धन्यवाद सीमा जी..
लखनऊ की सैर लाजवाब ! नवाबी अंदाज में.
ReplyDeleteपहले जरा अपनी पीठ तो थपथपा लूं ....हम्म. :-)
ReplyDeleteअब, दूसरे सभी विजेताओं को भी बधाइयाँ.
मेजर साहब को पढ़ने की प्रतीक्षा रहेगी.
ताऊ साप्ताहिक पत्रिका की अपेक्षा अगर इसे "ज्ञानकोष" नाम दिया जाए तो शायद ज्यादा उचित रहेगा.पूर्णत: मनोरंजन और रोचक जानकारियों से भरपूर अंक के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteबहुत श्रेष्ठ जानकारी दी आपने लखनऊ शहर और खासकर इमामबाडा पर. हम भी वहां चक्करघिन्नी हो चुके हैं भूलभुल्लैया में.
ReplyDeleteसु. सीमा जी, विनिताजी और आशिष जी ने भी बहुत ही लाजवाब और रोचक जानकारी दी. लगता है अल्मोडा कभी दशहरा के समय जाना पडेगा.
आज खासकर सु.सीमाजी की कहानी बहुत ही ज्यादा पसंद आई. समझने लायक बात कही है.
और माता रामप्यारी जी को प्रणाम. और अम्माजी कैसी हो आप?:)
ReplyDeleteसभी का अति उत्तम प्रयास. बहुत बधाई सभी को.
ReplyDeleteघर बैठे ही सु अल्पनाजी ने लखनऊ और विनिता जी ने अल्मोडा की सैर करवा दी. और आशीष जी ने दुनिया के अजूबे से मिलवा दिया. सु सीमाजी की कहानी आज बहुत ही सुंदर लगी. इसी समझ की जरुरत है आज.
ReplyDeleteसभी को धन्यवाद ताऊ, पानी की हकिकत आपने सही बताई. जान से हाथ धोलो पर पानी की बूंद नही है.
आज की पत्रिका रंग बिरंगे विविध रंगों में सराबोर है.एक तरफ ताऊ जी द्वारा मतदान अवश्य करने की सलाह है और पानी बचाने की सीख,पेडों को काटने से रोकना ,सीमा जी द्वारा बताई कहानी में दिलों में दूरी न होने पाए की बहुमूल्य सीख मिल रही है वहीँ दूसरी ओर आश्चर्यजनक हकीकत से रूबरू करते आशीष जी की पोस्ट भी शानदार है.
ReplyDeleteविनीता जी द्वारा अल्मोडा के दशहरे बारे मे जानकरी भी रोचक लगी.... हीरामन और सभी विदूषक खिताब विजेताओ को बधाई.
डॉ.मनोज जी त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया.
हमने सुधार कर लिया गया है..[मैंने जिन ३ साइट्स पर यह जानकारी पढ़ी थी उनके लिंक मेरे पास हैं.अगर आप चाहें तो आप को भिजवा सकती हूँ.ताकि आप उन्हें भी सही करवा दें.]
-गौतम जी के इंटरव्यू की प्रतीक्षा रहेगी
आप सभी का आभार.
सादर प्रणाम ताऊ जी... आपकी पत्रिका पढी... ज्ञान बांटने के लिए धन्यवाद.... मेरी कविता ‘देर हो गई’ पर आपने जो टिप्पणी की है उस बारे में मुझे कुछ कहना था.... आप तो मुझसे बडे है.... आदरणीय है.... कविता का मर्म है कि हम हर काम में देर करते है लेकिन मरने में देर क्यों नहीं करते.... जबकि मृत्यु ही सत्य है.... मृत्यु का संबंध मोक्ष से है.... लेकिन हम स्वार्थ में इतने अंधे हो गये है कि मृत्यु को स्वीकार करने से डरते है भागते फिरते है... और इसलिए कोई नहीं कहता कि मुझे मरने में देर हो गई....
ReplyDeletemai blog me bilkul nayi hun.
ReplyDeletemaine aaj hi prakash govind ji
ke kahne par apna blog banaaya hai.
yaha par aakar bahut acha laga.
ye paheli kya hai
mujhe bhi khelni hai paheli.
par kaise ?
पत्रिका के बहाने आपने तो पूरे ब्लॉगजग को जोड लिया है।
ReplyDelete-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
बहुत रोचक अंक रहा है यह भी हमेशा की तरह ..आशीष जी द्वारा दी गयी जानकारी से मुझे तो बहुत तस्सली मिली :) सीमा जी की कहानी और अल्पना जी का यात्रा विश्लेष्ण सब बढ़िया रहे ..गौतम जी के बारे में पढने की बहुत उत्सुकता से इन्तजार रहेगा शुक्रिया
ReplyDeleteकल ताऊ पत्रिका मे अल्पना वर्मा जी आपका कमेन्ट बोक्स मे एक सन्देस पढा था, उसका उत्तर आज मै यहॉ दे रहा हू।
ReplyDelete.............................
अल्पना वर्मा जी -"-महावीर जी को भी पहेली लखनऊ के 'इमामबाडा 'के स्थान सम्बन्धी जानकारी देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ,ऐसा लगता है काफी जगह घूमें हुए हैं अनुरोध है कि आप ही .इस पहेली राउंड २ के बाद मेरी जगह आप ही इस पहेली के पर्यटन सम्पादक का भार संभालियेगा."
अल्पनाजी, आपका मे शुक्रिया आदा करता हु कि आपने मुझे याद किया। साथ ही मे आपसे नाराज हू कि आपने मुझे पर्यटन सम्पादक के लिऐ कहा, अल्पनाजी हम आपसे वचित नही हो सकते। आपकी लेखनी के सामने हम कही नही ठहरते। आप जैसी महान लेखीका को पढे बिना हमे सन्तुष्टी नही मिलती। विशेषकर अल्पनाजी मै आपके ब्लोग "व्योम के पार" का नियमित पाठक हू। आपका ब्लोग देख कर सबसे पहले मेरे मन मे विचार आया था, कि मै भी अपना ब्लोग बनाऊ।
"दिल की बात" से लेकर "पाती नेह की" आपकी सारी सुन्दर रचनाओ का मै पाढक रह चूका हू। मै जिवन भर आप द्वारा लिखीत रचनाऐ, कविताऐ, सस्मरण पढने कि ईच्छा रखता हू। मेरी शुभकामनाऐ कि आप हमेशा इससे भी कही ज्यादा तरक्की करे, और आप हम नऐ लेखको का मार्गदर्शन करे। कही शब्दो मे, त्रृटी या कही लिखने मे मुझसे गलती हुई हो तो मै सविनय क्षमा-प्रार्थी हू।
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अल्पनाजी!!!!
आपने जो कुछ लिखा यह एक मिशाल है,
आपका व्यक्तित्व ही पुरे चिठे-जगत की ढाल है।
देखना तो यह है मैने क्या किया
आपने यह देख लिया, मेरा जीना निहाल है॥
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आज का बेहतरिन सम्पादकिय लिखने के लिऐ आपको बधाई।
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-आशीष खण्डेलवालजी -Seema Guptaजी, हीरामन अकल का भी आभार ।
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सुश्री विनीता यशश्वीजी अल्मोडा के दशहरे के बारे मे सचित्र जानकारी देने के लिऐ आभार्।
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बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी को प्यार एवम ताऊजी को राम राम्।
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महावीर बी सेमलानी "भारती
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अब अपने बारे में क्या कहूँ ? मूल रुप से हरियाणा का रहने वाला हूँ ! लेखन मेरा पेशा नही है ! थोडा बहुत गाँव की भाषा में सोच लेता हूँ , कुछ पुरानी और वर्त्तमान घटनाओं को अपने आतंरिक सोच की भाषा हरयाणवी में लिखने की कोशीश करता हूँ ! वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है | गम तो यो ही बहुत हैं | हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है | हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं ! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं ! ब्लागिंग का मेरा उद्देश्य चंद उन जिंदा दिल लोगों से संवाद का एक तरीका है जिनकी याद मात्र से रोम रोम खुशी से भर जाता है ! और ऐसे लोगो की उपस्थिति मुझे ऐसी लगती है जैसे ईश्वर ही मेरे पास चल कर आ गया हो ! आप यहाँ आए , मेरे बारे में जानकारी ली ! इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ !....................
ReplyDeleteयो सब कुछ तो ठीक सै....मगर ओ ताऊ...तू मन्नै यो तो बता कि तैंने मेरी ही बातां मिली अपने बारे में कहने के वास्ते.....??....एक काम कर.....इब कुछ अपनै बारै में भी बता.....बाकि तेरी या जो ऊट-पटांग बातां जो है ना.....वो मैन्नै भी बड़ी पसंद आवें सं...........भोत खूब....वाह...वाह....!!
पानी की कमी से क्या क्या हो सकता है..देख लिया.
ReplyDeleteअल्पना जी की सुन्दर जानकारी............सीमा जी और खंडेलवाल जी के खूबसूरत लेख. धन्यवाद इतनी जानकारी के लिए
माननीय महावीर जी,
ReplyDeleteआप का जवाबी कमेन्ट पढ़ा.
आप ने मुझे इतना सम्मान दिया उस के लिए मैं आप की दिल से आभारी हूँ.सच कहूँ तो मैं तो एक बूँद मात्र हूँ हिंदी ब्लॉग्गिंग के हिंदी साहित्य और कला के अथाह सागर में.
और आप के कहे शब्द मेरे लिए एक पुरस्कार की तरह हैं.
अब आते हैं पर्यटन विषय पर..इत्तिफाक से पिछले एक-दो बार आप ने जो अपनी व्यक्तिगत रिपोर्ट जगहों के बारे में दी है वे बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक थीं.कल की रिपोर्ट पढ़ कर भी मैं प्रभावित हुई.वास्तव में किसी भी जगह के बारे में लिखने से पूर्व कई साइट्स पर जा कर पढना पड़ता है और सामग्री एकत्र करनी होती है .कई बार एक final पोस्ट लिखने में काफी समय लग जाता है.
जिस व्यक्ति ने वह जगह देखी हुई हो उस के लिए रिपोर्ट लिखना अपेक्षाकृत आसान होता है.
समयाभाव के चलते मैं एक पहेली राउंड २ के बाद हटने का मन बना रही थी और आप में मैंने एक अच्छे संभावित सफल संपादक को देखा सो आप को सविनय अनुरोध किया.की आप मेरे बाद यह जगह दायित्व संभालें , आप ने अभी मना कर दिया है फिलहाल अगली ३ पहेलियों तक तो मैं हूँ ही..आगे भी जब तक समय साथ देगा ,रहूंगी .
और हाँ,आप के लेखन में कोई त्रुटी नहीं है आप का लेखन प्रभावशाली है.
बस,ऐसे ही सहयोग बनाये रखियेगा.
अन्य सभी पाठकों से भी अनुरोध है की पूछी गयी जगहों से सम्बंधित व्यक्तिगत रोचक घटनाएँ /जानकरियां हम से बांटे.और आप के सुझावों की भी प्रतीक्षा रहेगी.
आभार सहित.
अल्पना
यह खाकसार इमामबाडे जा चुका है मगर अफ़सोस पहचान नहीं सका ! शुक्रिया अल्पना जी आपने तफसील से इसके बारे में बताया !
ReplyDeleteलम्बे इंसान के बारे में बाताने के लिए आशीष को शुक्रिया !
सीमा जी मौन की भाषा समझती हैं इसलिए उनके लिखे पर क्या टिप्पणी !
सुश्री विनीता जी का अल्मोडा के दशहरा की जानकारी रोचक है !
हीरामन की पुछ्ल्लियाँ भी मजेदार रहीं ! मेजर गौतम से मुलाकात की प्रतीक्षा रहेगी !
कुछ छूट तो नहीं गया ?
रोचकता, विविधता और ज्ञानवर्धन का साप्ताहिक पत्रिका में सामंजस्य अनूठा है। चलते चलते ताऊ को खुशखबरी दे दूं कि हमारे यहां मतदान संपन्न हो गया और हमने भी इस यज्ञ में नाखून पर स्याही पुतवाकर पूरे जोश-खरोश के साथ शिरकत की।
ReplyDeleteलखनऊ के इमामबाडे के बारे में बड़ी अच्छी रोचक जानकारी मिली. सीमा जी कि बाते आत्मसात करने योग्य है. आशीष जी ने बढ़िया जानकारी दी. अल्मोरा के बारे में तो विनीता जी पहले भी बता चुकी हैं परन्तु दश हरा जोरदार रहा. आभार.
ReplyDeleteताउजी
ReplyDeleteपहेली के बाद अब ये पत्रिका??
और कौन -कौन से रत्न हैं आपके खजाने में ??:)
पत्रिका का सफ़र बहुत ही शिक्षाप्रद व रोचक रहा
हर पृष्ट का अपना सौंदर्य
बधाई !!!
पत्रिका की रोचकता और दिलचस्पी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है...
ReplyDeleteबहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी....
ReplyDeleteक्या खूब पत्रिका बनी है - सभी के प्रयास १००% ! बहुत आनँद आया और जानकारी भी मिलतीँ हैँ -आप सभी का आभार !
ReplyDelete- लावण्या
बहुत दिलचस्प जानकारियों वाली पत्रिका।
ReplyDeleteहम तो फिदा हैं इस पर...
अल्पना दी द्वारा लखनऊ के बारे में दी गयी जानकारी बहुत रोचक रही. 2 साल पहले ऑफिस के काम से लखनऊ जाने का अवसर मिला था. अल्पना दी ने तो यादें ताजा कर दी.
ReplyDeleteताऊ,
ReplyDeleteपरनाम,
आप के ब्लाग पर पहली बार आया और आकर मैं प्रसन्न हो गया।वाह ! क्या जानकारीपूर्ण,
मनोरंजक ब्लाग है ये....पर आपसे ये
शिकायत है कि आपने मुझे क्यों नहीं बताया?
लगता है ताई से शिकायत करनी पडे़गी....
वैसे जानकारी और मनोरंजन से भरा ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अंक १८ बहुत अच्छा लगा। मुझे भी इस पत्रिका में एक नौकरी चाहिये, मिलेगी क्या?
लखनऊ की उपयोगी जानकारी के लिए अल्पना जी ,
विनीता जी द्वारा अल्मोडा के दशहरे बारे मे दी गयी जानकारी रोचक लगी|बहुत दिलचस्प जानकारियों वाली पत्रिका। इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
ताऊ,मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।