राऊंड दो के सातवें अंक की पहेली का सही जवाब नैनीताल था. जिसके बारे मे आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
इस तारतम्य मे हम आपको यशस्वी ब्लाग का विशेष रुप से जिक्र करना चाहेंगे जहां पर आपको नैनीताल और कुमाऊं की बहुत अच्छी जानकारी मिलेगी.
आपने कस्तूरी और कस्तूरी मृग के बारे मे तो अवश्य सुना होगा. और ये दोनों ही हकीकत हैं. कभी यह कस्तूरी मृग हिमालय की ऊंचाईयों, उत्तर भारत, भूटान, नेपाल तिब्बत, उत्तरीबर्मा और दक्षिणी पश्चिमी चीन के इलाकों मे पाया जाता था.
अब यह केवल नेपाल, बर्मा, भारत और चीन के विजन इलाकों मे ही रह गया है.
असल मे नर मॄग अपने अंदर कस्तूरी छिपाये रखता है. संगम काल में इसी कस्तूरी की गंध मादा को आकर्षित करती है. और इन मृगों की हत्या के पीछे इसी कस्तूरी को प्राप्त करना एक मात्र कारण है.
क्योंकि खुशबू के बाजार मे कस्तूरी की बडी भारी मात्रा मे डिमांड रहती है.
एक किलो कस्तूरी के लिये ५० या ६० के करीब मृगों को मार डाला जाता है. इस कस्तूरी की कीमत सोने से भी ज्यादा होती है. अगली बार खुशबू का सामान खरीदते समय इस सुंदर पशु का ख्याल जरुर मन मे रक्खें. शायद हो सकता है ये ख्याल आपको कस्तूरी के उपयोग वाली खुशबू खरीदने से रोके.
चीख निकली तो है होंठों से, मगर मद्धम है,
बंद कमरों को सुनाई नही जाने वाली।
तू परेशान बहुत है, तू परेशान न हो,
इन खुदाओं की खुदाई नही जाने वाली।
-दुष्यंत कुमार
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
नमस्कार, आप सब पिछली पहेली में 'नैना देवी 'को याद कर रहे थे तो हम ने सोचा कि क्यों न उन्हीं के शहर इस बार आप को ले चलें! एक गीत सुना है -'तालों में ताल 'नैनीताल 'बाकि सब तलैय्या!' नैनीताल के प्रसिद्द कवि श्री बल्ली सिंह चीमा के शब्दों में- यहां पल में वहां कब किस पे बरसें क्या खबर , बदलियां भी हैं फरेबी यार नैनीताल की | ताल तल्ली हो कि मल्ली चहकती है हर जगह, मुस्कराती और लजाती शाम नैनीताल की | भारत के उत्तराखंड राज्य में नैनीताल जिला है. यह 'छखाता' /षष्टिखात' परगने में आता है। 'षष्टिखात' का अर्थ है कि इस क्षेत्र में ६० ताल हुआ करते थे.नैनीताल को 'झीलों का शहर' भी कहा जाता है.ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल समुद्रतल से १९३८ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नैनीताल से सम्बंधित पुराणिक कथाएँ- १-पिछली साप्ताहिक पत्रिका में शिव-पार्वती की पौराणिक कहानी हम ने बताई थी..[शक्ति पीठों की स्थापना के विषय में ] .उसी कहानी के अनुसार देवी के नैन जहाँ गिरे थे, वहीं पर नैनादेवी के रुप नन्दा देवी का भव्य स्थान नैनीताल कहलाया. उन नयनो की अश्रु धार ने नैनी -ताल का रुप ले लिया. पुरातन काल से यहाँ लगातार शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रुप में होती है.[ यह समस्त गढ़वाल - कुमाऊँ की एकमात्र इष्ट देवी 'नन्दा' ही हैं ]. २- एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। 'स्कन्द पुराण' के मानस खण्ड में एक समय अत्रि, पुस्त्य और पुलह नाम के ॠषि गर्गाचल की ओर जा रहे थे. मार्ग में उन्हे यह स्थान मिला. इस स्थान की रमणीयता मे वे मुग्ध हो गये परन्तु पानी के अभाव से उनका वहाँ रुकना कठीन हो गया तब तीनों ऋषियों ने अपने - अपने त्रिशुलों से खोद कर इस मानसरोवर का निर्माण किया इस लिए कुछ विद्वान इस ताल को 'त्रिॠषि सरोवर' के नाम से पुकारते हैं. [मगर ,कुछ लोगों यह भी कहते हैं कि इन तीन ॠषियों ने तीन स्थानों पर अलग - अलग तालों का निर्माण किया था। नैनीताल, खुरपाताल और चाफी का मालवा ताल ही वे तीन ताल थे जिन्हे 'त्रिॠषि सरोवर' होने का गौरव प्राप्त है.] गढ़वाल और कुमाऊँ में प्रतिवर्ष नन्दा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की ख़ास पूजा होती है.नन्दा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल - कुमाऊँ में किया जाता है. नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रुप में इस स्थान का महत्व युग - युगों से आंका गया है. यहाँ के लोग इसी रुप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं. यह चित्र पाषाण देवी मंदिर की पाषाण देवी का है. इतिहास से- सन् १७९० से १८१५ तक गोरखाओं ने यहाँ राज्य किया. सन् १८१५ ई से ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया.नैनीताल इलाके के थोकदार सन् १८३९ ई. में ठाकुर नूरसिंह (नरसिंह) थे.सन् १८३९ ई. में एक अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन था जिस ने अपनी नैनीताल यात्रा और नैनी झील की खोज की खबर सन् १८४१ की २४ नवम्बर को, कलकत्ता के 'इंगलिश मैन' नामक अखबार में छपी थी. जब ठाकुर नूर सिंह ने यह इलाका बैरन को बेचने से मना कर दिया तब बेरन ने उन्हें ताल में डुबो देने की धमकी दे कर यह ज़मीन अपने नाम करवा ली.और नया नैनीताल शहर बसाया.सन् १८४२ ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इस के खूब चर्चे हुए. कब जाएँ- यहाँ दो सीज़न मुख्य हैं- १-अप्रैल से जून- : इस मौसम में टेनिस, पोलो, हॉकी, फुटबाल, गॉल्फ, मछली मारने और नौका दौड़ाने के खेलों की प्रतियोगिता और तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं. २- सितम्बर से दिसम्बर -: आसमान साफ़ रहता है पर.ठण्ड जरुर होती है. जनवरी और फरवरी में गिरती बर्फ देखने का आनंद ले सकते हैं. कैसे जाएं - 1-नैनीताल देश के प्रमुख नगरों से रेल व बस सेवा द्वारा जुड़ा है। यह दिल्ली से 310 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काठगोदाम को 'द गेटवे ऑफ कुमाऊं हिल्स' के नाम से भी जाना जाता है। यह नैनीताल से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह नैनीताल से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है। ट्रेन से पहुंचने के बाद उससे आगे का सफर टैक्सी या बस से तय किया जा सकता है। 2-नैनीताल से दिल्ली, लखनऊ, कानपुर जैसे तमाम बड़े शहरों के लिए सीधी बस सेवा है। ३-वायु मार्ग -नैनीताल पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट नई दिल्ली पालम में स्थित है. यहां नैनीताल से 310 किलोमीटर की दूरी पर है. क्या देखें-- १-नैनी झील/नैनी-ताल -नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है,झील का आकार भी आंख के जैसा ही है. .शहर मुख्य रुप से झील के उत्तर और दक्षिण के किनारे पर बसा हैं.उत्तरी हिस्से को मल्लीताल और दक्षिणी हिस्से को तल्लीताल कहते हैं.मल्लीताल में ही नैना देवी का मंदिर है. २-तिब्बती बाजार-इसे भोटिया बाज़ार भी कहते हैं.मल्लीताल के पास के मैदान [फ्लैट]में लगता है . यहाँ खरीदारी करने के लिए आप को मोल-भाव करना आना चाहिये. ३-यहीं फ्लैट पर ही एक स्केटिंग रिंग बना है जहां स्केटिंग सीखी जा सकती है. ४-रोप वे भी मल्लीताल पर है- इस रोप वे से स्नो व्यू तक जाया जा सकता है।ये लगभग २२०० मीटर उंची चोटी है. ५-स्नो व्यू से नैनीताल का पूरा नजारा देख सकते हैं.अगर मौसम साफ़ है तो स्नो व्यू से ही हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ देख सकते हैं.स्नो व्यू शहर से २.५ किलोमीटर दूर है आप चाहें तो पैदल भी ३०-४० मिनट चल कर पहुँच सकते हैं. ६-नैना पीक और चाइना पीक -यह शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी ' नैना पीक '2611 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.दूरबीन से चारों ओर की सुन्दरता को निहार सकते हैं. इस चोटी पर चार कमरे का लकड़ी का एक केबिन है जिसमें एक रेस्तरा भी है. ७-लड़ियाकाँटा २४८१ मीटर की ऊँचाई पर यह पर्वत श्रेणी ,नैनीताल से लगभग साढ़े पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ८-गर्नी हाउस आयरपत्ता पहाड़ी पर यह एक म्यूजियम है, जिसमें जिम कॉर्बेट की तमाम चीजों को बहुत सहेजकर रखा गया है. ९-सेंट जॉन चर्च 1844 में स्थापित यह चर्च नैनी देवी मंदिर से करीब आधा मील की दूरी पर है. १०-टिफिन टॉप और डोरथी सीट - २२९० मीटर की ऊँचाई पर यह चोटी आयरपत्ता जिले में स्थित है.टिफिन टॉप से आप हिमालय का खूबसूरत व्यू देखने के साथ ही आस-पास की खूबसूरत जगहों को भी देख सकते हैं. ११- किलवरी -२५२८ मीटर की ऊँचाई पर दूसरी पर्वत - चोटी है.यह पिकनिक मनाने का सुन्दर स्थान है. यहाँ पर वन विभाग का एक विश्रामगृह भी है.इसका आरक्षण डी. एफ. ओ. नैनीताल के द्वारा होता है. १२-देवपाटा और केमल्सबौग-यह दोनों चोटियाँ साथ - साथ हैं. जिनकी ऊँचाई क्रमशः २४३५ मीटर और २३३३ मीटर है.यहाँ से प्राकृतिक नजारे निहारीये. १३-रानीखेत - यह नैनीताल से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चीड़ के पेड़ों से घिरा एक हिल स्टेशन है। कहा जाता है कि रानी पद्मिनी को यह जगह बेहद भा गई थी और तभी से इसे रानीखेत के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब है 'क्वीन फील्ड'। यह समुद्री तट से 1829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. १४-.मुक्तेश्वर -फलों के बगीचों और घने जंगलों से घिरा मुक्तेश्वर अपने कुदरती सौंदर्य से भरपूर नजारों के लिए जाना जाता है-1893 में ब्रिटिशर्स ने यहां पर रिसर्च व एजुकेशन इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) की स्थापना की थी.यहीं भगवान शिव का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है. इनके अतिरिक्त नैनीताल मैं और इस के आस पास आप वहां देख सकते हैं- चिडियाघर, खुरपा ताल ,Observational Sciences की आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट, राज भवन,जिम कोर्बोर्ट नेशनल पार्क,सुखा ताल के पास केव्स गार्डन,land's end, शीतला माता का मंदिर, आदि. चोटियों पर जाने के लिए घोडे की सवारी करें ,mountaineering,ट्रेक्किंग करें ,बोट लेकर झील में घूमें या यूँ ही पैदल निकल जाएँ...माल रोड पर घूमने का अपना अलग ही आनंद है. -ठंडी सड़क जाने के रास्ते में पाषाण देवी का मंदिर है.किराए पर घोडे की सवारी करके भी इस मंदिर तक जा सकते हैं. -१९५१ मीटर की ऊँचाई पर नैनीताल से ३.५ किलोमीटर दूर हनुमान गढ़ी से सूर्य अस्त का द्रश्य .मनोरम दिखता है.यहाँ हनुमान मंदिर भी है और विस्तृत जानकारी आपको इस लिंक पर मिल सकती है. http://www.merapahad.com/forum/tourism-places-of-uttarakhand/queen-of-hill-station/ [सभी जानकारी अंतरजाल से ली गयी हैं ,यह संकलन अव्यवसायिक एवम शैक्षिक उद्देश्य से किया गया है.] अगले सप्ताह फ़िर किसी नई जगह के बारे मे जानकारी लेकर मिलते हैं तब तक के लिये नमस्ते. -अल्पना वर्मा ( विशेष संपादक ) |
पिछले हफ्ते हिंदुस्तान के सियासी गलियारों में जूते के खूब चर्चे रहे। मैं भी चाहता था कि विरोध जताने का यह तरीका अपनाऊं, लेकिन क्या करूं मेरे पास इक्के-दुक्के ही जूते हैं। फेंक दिए तो .. आप समझते हैं न.. आखिर मंदी का दौर जो ठहरा। आज मैं आपका परिचय ऐसी राजनीतिक शख्सियत से कराऊंगा, जिसके पास इतने जूते हैं कि उन्हें रखने के लिए कई कमरे चाहिए। नहीं, नहीं मैं जयललिता जी की बात नहीं कर रहा हूं, जिनके बारे में पुलिस ने आरोप लगाया था कि उन्हें छापे की कार्रवाई में उनके घर से 750 से ज्यादा सैंडल या जूते मिले हैं। मैं तो बात कर रहा हूं फिलीपींस की पूर्व प्रथम महिला इमेल्डा मार्कोस की। वे फिलीपींस के पूर्व तानाशाह फेर्निनेंड मार्कोस की विधवा हैं। कहा जाता है कि 1986 के विद्रोह के वक्त जब मार्कोस दम्पती को देश छोड़कर हवाई में शरण लेनी पड़ी, तो महल में इमेल्डा के कमरों से 3400 सैंडल और जूतों की जोड़ियां मिलीं। इसी वजह से उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे ज्यादा जूतों की मालकिन के रूप में दर्ज किया गया है। हालांकि बाद में इमेल्डा ने इस आरोप को गलत बताते हुए कहा कि उनके पास केवल 1060 जोड़ी जूते ही थे। अब बताइए, क्या ये भी कम होते हैं? चलते-चलते ज़रा आप यह वीडियो भी देख लीजिए। इसमें दुनिया के सबसे अजीबोगरीब आकार के जूतों को दिखाया गया है- फिलहाल इजाज़त, आपका दिन शुभ हो... -आशीष खण्डेलवाल ( तकनीकी संपादक ) |
नमस्कार, आईये आज एक कहानी सुनते हैं. एक बहुत ही धनाढ्य और शक्तिशाली राजा था. और यह राजा एक संत के अनुयायी बन गया. राजा को जब भी जरुरत होती या मन बैचेन होता तो गुरुजी के पास चला जाता था. संत बडे सीधे साधे थे. एक दिन उन्होने राजा से कहा कि - सम्राट आपका खजाना देखने की इच्छा हो रही है. मैं भी तो देखूं कि खजाना कैसा होता है? राजा को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई. आखिर आदमी अपने अर्जित धन संपदा का प्रदर्शन करके बडा खुश होता है. और यहां तो साक्षात गुरु ही देखने का कह रहे हैं. राजा बडा खुश होते हुये अपने गुरुजी को अपना खजाना दिखाने लेगया. वहां लेजाकर उसने संत को अपने हीरे जवाहरात के कीमती पत्थर दिखाये. बहुत ही कीमती और नायाब पत्थरों का संग्रह था उसके खजाने में. वहां खजाना देखते हुये गुरुजी ने पुछा - सम्राट तुमने इन पत्थरों से कितना मुनाफा कमाया होगा आज तक? राजा ने कहा "मुनाफा तो कुछ नहीं कमाया . असल में इनकी कड़ी सुरक्षा के लिए ही मुझे करोडो खर्च करने पड़ते हैं. अब गुरुजी बोले - अच्छा, चलो मै इससे भी ज्यादा एक कीमती पत्थर तुम्हे दिखाता हूँ " राजा तो ज्यादा से ज्यादा समय अपने गुरुजी के साथ बिताने मे आनन्द अनुभव करता था. और ये एक अच्छा तरीका मिल गया. गुरुजी और राजा घूमते हुये एक पुराने विधवा के घर के पास पहुंचे . वह विधवा एक पत्थर को पीस कर आटा बना रही थी. वहां पहुंचकर गुरुजी ने मुस्कुराते हुये राजा से पूछने लगे - यह पत्थर बहुत से भूखे लोगों को और इस बूढ़ी औरत को जीवित रखने में मदद करता है . क्या यह आपके सभी पत्थरों से कीमती नहीं है?" इस पर राजा मौन होगया और गुरुजी ने आगे कहा - उपयोगी होने और महंगा होने के बीच एक बड़ा अंतर है. आप के पत्थर कीमती हैं क्योंकि आप सोचते है की महंगा है, उन पत्थरों का अन्यथा कोई मूल्य नहीं है सिर्फ विश्वास है. जबकि यह पुराने बीहड़ का पत्थर कितने ही लोगो की जीविका चला रहा है, वहां आपके पत्थर अपनी सुरक्षा पर अनावश्यक पैसे को बर्बाद कर रहे हैं . -Seema Gupta संपादक (प्रबंधन) |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
आकर भी नही रुकी. भाई बधाई हो आज के एकमात्र विदुषक का खिताब जाता है आपको. |
ट्रेलर
हमारे मेहमान :-
महाताऊ संजय बैंगाणी के साक्षात्कार के अंश :----- ताऊ : भाई इंटर्व्यु लेने आये हैं तो कुछ खोज खबर तो लेकर ही आना पडता है ना. |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :- मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
नैनीताल के बारे में विस्तृत जानकारी मिली पत्रिका से ।
ReplyDeleteसैंडल वीडियो भी जंचा । ताऊ पत्रिका के इस अंक के लिये धन्यवाद ।
सुश्री अल्पना वर्मा जी !
ReplyDeleteआपने लोगों के दिलों में नैनीताल घूमने की चाहत बढ़ा दी है।
आपकी दी हुई सभी जानकारी प्रामाणिक हैं।
ताऊ जी!
आपकी टीम की जितनी प्रशंसा करूँ उतनी ही कम होगी।
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : सुश्री सीमा गुप्ता
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी सभी एक से बढ़कर एक हैं।
आपकी उपमा यदि ब्लाग जगत के धौनी से
करूँ तो अतिश्योक्ति न होगी।
नैनीताल का विवरण अच्छा लगा बाकी फुरसत मिलेगी तो पढेंगें -हां सैंडल और जूता का तो जमाना ही आ गया लगता है !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ,अच्छी कहानी और अच्छा खिताब .
ReplyDeleteअच्छे जूते हैं...जल्लादों को रस्से की जगह ये ही मुहय्या कराये जाने चाहियें
ReplyDeleteनैनीताल के बारे में विस्तृत जानकारी और पाषाण देवी मंदिर की पाषाण देवी के दर्शनों के लिए अल्पना जी का आभार. आशीष जी द्वारा प्रस्तुत सैंडल वीडियो मजेदार रहा.....दुनिया सच में अनोखी है ......और हिरामन जी का विदूषक किताब श्री आलोक सिंह को मुबारक हो .."
ReplyDeleteRegards
nainital ki detail jankari,ajibtarah ke juthe sandal aur kimati pathar ki kahani waah,ye to shandar patrika rahi,sabhi ko badhai jinhone isko banaya.
ReplyDeleteपत्रिका का नया कलेवर धांसू है।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
पत्रिका के संपादन के लिए आप सब की किन शब्दों में तारीफ करूँ समझ नही आता ..आभार रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारिओं का.
ReplyDeleteनैनिताल के बारे मे अच्छी जानकारी के लिए अभार् और नमस्कारम॥॥।
ReplyDeleteसिमाजी कि शिक्षाप्रद कहानी के लिऐ आभार।
हरीमन भाई आपका क्यो आभार प्रकट करु ? समझ मे नही आ रहा है फिर भी रामप्यारी को पढाने का काम करने के लिए आपका आभार्,
विशेष ताऊ ने जो कस्तुरी प्रोडेक्ट मे एक किलो कस्तूरी के लिये ५० या ६० के करीब मृगों को मार डाला जाता है.कि जानकरी पहली मर्तबा हुई । बडि हृर्दय विदारक घटनाओ से ससार भरा पडा है। ताऊ आपको पत्ता होगा हे प्रभु -हत्या खासकर पशु वध, पैड पोधो का वध के विरोध मे एक साल से जन अभियान चला रखा है लोगो को सजग करने के लिऐ कि आपके ऐशो-आराम और खाने के शोक के कारण मुक पशुओ का वघ घृणा-अमानविय कृतिय है। आपका आभार कि आपने अपने ब्लोग पर यह जानकारी उपलब्ध कराई। राम-राम्॥॥।
आशिष जी शायद आप जयपुर गुलाबी नगरी के है सुना है जयपुर कि महारानी गायत्री देवीजी भी अपने भाण्डारन मे सैकडो दर्जन जुते रखती थी। वैसे बात आपने जयललिता से शुरु हुई तो क्यो न आपके शहर से खत्म करे । आपकी प्रदेश कि पुर्वमुख्यमन्त्री वसुन्धरे राजे ने तो पॉच सालो मे जुतो कि खरीदारी मे सैकडो घण्टे खर्च किऐ। भाई अब चर्चा आपकि मेरी और ताउ कि नही होगी अब तो जुतो -जुतियो के दिन है जी।
आशीष भैया राम श्याम॥॥।
बहुत अच्छी जानकारी .
ReplyDeleteमैं नैनीताल कई बार गया पर इतनी जानकरी मुझे कभी कहीं से नहीं मिली .
कहानी बहुत प्रेरक है . जूते देख कर तो दंग रह गया .
धन्यवाद हिरामन जी जो आपने मुझे एकमात्र विदूषक के खिताब से नवाजा .
(ताऊ टिप्पणी में "छाँट के निकल लो " गलती से लिख गया मै "छाँट के निकाल लो " लिखना चाहता था पर शायद लिखते वक़्त पढ़ा नहीं .अभी देखा तो ध्यान गया )
इमेल्डा मारकोस से तो डरना पड़ेगा। जरनैल के पास तो जूते की एक दो ही जोडि़याँ थीं।
ReplyDeleteदोनों महाताऊओं के इंटर्व्यु का इंतजार रहेगा. सु. अल्पना जी, सीमाजी और आशीष जी द्वारा दी गई जानकारी बहुत ही शानदार रही,
ReplyDeleteमृगों की गाथा काफ़ी दुखी करती है. माताजी रामप्यारी की तबियत कैसी है?
बहुत उपयोगी जानकारी, सभी को बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी, सभी को बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहद तथ्यपुर्ण जानकारी. सभी सम्पादकों को बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteनैनीताल के घर बैठे दर्शन हो गये. पूरी पत्रिका ही शानदार है.
ReplyDeleteनैनीताल की बढिया जानकारी मिली. बहुत आभार आप लोगों का.
ReplyDeleteनैनीताल के बारे में कईं बार यात्रा करने के पश्चात भी हमें इतनी जानकारी थी,जितनी कि आज के अंक मे अल्पना जी के द्वारा घर बैठे प्राप्त हो गई. सीमाजी, आशीष जी और हीरामन ने भी आज तो पत्रिका में चार चांद लगा दिए......सभी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteरोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों का भण्डार.....
ReplyDeleteधन्यवाद ..
सुन्दर व रोचक जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी अल्पना जी द्बारा नैनीताल कि............शिव पारवती की कहानी भी मोहक है. जूतों के दौर में .जूतों कि रोचक जानकारी........... सीमा जी कि कहानी शिक्षा प्रद है.........
ReplyDeleteऔर तौ.....अगले ट्रेलर तो जोरदार हैं ...........अब पिक्चर देखने कि तमन्ना है
कस्तूरी मृगों की संवेदना के साथ शुरू हुई इस पत्रिका में अल्पना जी की वृहत् जानकारी और सीमा जी की शिक्षाप्रद कहानी ने चार चांद लगा दिए। हीरामन ने चेहरे को खिला दिया, वहीं दो हस्तियों के इंटरव्यू के ट्रेलर ने इनके बारे में और जानने की जिज्ञासा जगा दी।
ReplyDeleteनैनीताल से अपना बड़ा नज़दीकी रिश्ता रहा है फिर भी इस आलेख में कई नई जानकारियाँ मिलीं. कस्तूरी मृग एवं अन्य वन्य-प्राणियों का शोषण एक दुखद प्रवृत्ति है. ऐसी लालची, हृदयहीन और अपराधिक प्रवृत्तियों पर कडाई से अंकुश लगाने की ज़रुरत है. अलबत्ता ऋषियों के नाम में टाइपिंग पर थोडा ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत है. सीमा जी का आलेख हमेशा की तरह शिक्षापूर्ण था. पढ़कर संत कबीर का, "पाहन पूजे हरी मिलै..." याद आ गया.
ReplyDeleteकुल मिलाकर बहुत ही अच्छा आलेख - ताऊ और सभी योगदानकर्ताओं को धन्यवाद.
विवरण अच्छा लगा!!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी, सभी को बहुत धन्यवाद!!
विजेताओं को बधाईयां.
ReplyDeleteसुश्री अल्पनाजी नें क्या गजब कर दिया. कितना सारा विस्तृत वर्णन!!! जय हो!!!
पत्थर पत्थर में फ़रक करना, पत्थर दिल वालों के बस में नहीं. प्रबंधन का मूल मंत्र है, असली हीरे की परख करें.. सीमाजी का धन्यवाद
ReplyDeleteकस्तूरी के बारे में चिंता जायज़ है.यहाँ खाडी देशों में इसकी बहुत डिमांड रहती है.सूडानी महिलाएं भी इस की खुश्बू को पुरुष को आकर्षित करने वाला ही मानती हैं.
ReplyDeleteनैनीताल -रानीखेत मेरा भी घूमा हुआ है..मगर हम तब इतना कुछ नहीं जानते थे..अब जब पोस्ट लिखी तो मालूम हुआ कि कितनी और जगह हमें देखनी रह गयी हैं.
वहां चढाई पर छोटे खोके जैसे ढाबों में जो चाय सुबह सुबह मिलती थी उस का स्वाद अभी तक दोबारा कहीं नहीं मिला.
सीमा जी की कहानी और सीख संग्रहित करने लायक हैं.उनको आभार.
और आशीष जी आप भी जूतों की खोज में निकल गए!हा !हा !हा!बड़ी सामायिक जानकारी दी है.आज कल जूतों के दिन जो फिरे हुए हैं!
यह जानकरी भी बड़ी रोचक है..वैसे इसे सनक ही कहेंगे.
भारत में जयललिता के पास सब से ज्यादा जूते की जोडियाँ हैं यह सुना था.
हीरामन जी आप रामप्यारी को ठीक हो जाने के बाद पढाना शुर करीए.
ट्रेलर तो बहुत जबरदस्त हैं--इंटरव्यू का इंतज़ार रहेगा.यह कोलम अच्छा शुरू किया है.
अलोक जी इतने शहरों के नाम बताने के लिए धन्यवाद और बधाई.
@अनुराज जी - पोस्ट पसंद करने के लिए धन्यवाद.
कौन से ऋषियों का नाम गलत टाइप हो गया कृपया प्रकाश डालें .उस नाम को ठीक कर लिया जायेगा..मेरी ऋषिओं के बारे में कम जानकारी है जैसा नेट पर पढने को मिला वैसा ही लिख दिया.धन्यवाद इस और ध्यान दिलाने हेतु.