राऊंड दो के नौवें अंक की पहेली का सही जवाब थिरुवेल्लुवर स्टेच्यु कन्याकुमारी था. जिसके बारे मे आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
आज हमारा पर्यावरण बहुत नाजुक मोड पर है. बडे बडे काम जब होंगे तब होंगे. पर उनके भरोसे हमे अपने छोटे छोटे प्रयास बंद नही करने चाहिये. जो भी थोडा बहुत हम कर सकें उतना हमको अवश्य करना चाहिये.
अगर हम आज के तीन सुत्रों की बात करें तो मोटे तौर पर हमें इन तीन “ज” सुत्रों पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है. और अपनी अपनी रुचि के अनुसार हम थोडा बहुत योगदान तो अवश्य ही दे सकते हैं. आईये संक्षेप मे इनके बारे मे जानें.
१. जल : आप जानते ही हैं कि हमारी सबसे महती आवश्यकता जल का क्या हाल है? जिस जल को हम प्याऊ लगवाकर प्यासों को पिलवाया करते थे वो अब १२ या १५ रुपया लीटर बिकने लगा है. आज भुमि का जल स्तर अनेक उपायों के बावजूद भी नही बढ रहा है. पानी सरंक्षण के उपाय करें. और जैसे आटे दाल का बजट तय होता है घर मे. उसी तरह जल का भी बजट बनाएं. हर तरह से पानी को संरक्षित किया जाना चाहिये.
२. जंगल : जंगलों को बडी बेरहमी से काट डाला गया है और उसी का खामियाजा हम अब भुगतने लगे हैं. अगर अब भी हम नही चेते तो आने वाली पीढियां हमे कभी माफ़ नही कर पायंगी. जंगलों के अलावा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के पेड भी बडी बेरहमी से विकास के नाम पर साफ़ कर दिये गये हैं.
इन पेडों को हमे अपने बच्चों की तरह ही बचाना होगा. कमसे कम हम प्रण करें कि हम घर मे जितने लोग हैं उतने पेड तो अवश्य ही इस धरती पर हमारे द्वारा लगाकर पाले जान चाहिये. मित्रों छोटे छोटे प्रयास ही एक दिन बहुत वृहद आकार ले लेते हैं
३. जानवर : पशु सम्पदा हमे कितना कुछ देती है. पर अफ़्सोस हम आज भी उतना नही कर पा रहे हैं. गौ सरंक्षण के नाम पर अनेक अभियान चल रहे हैं हम भी अपने स्तर पर उनमे योगदान करें.
पशु पक्षी हमें जीवन के अंतिम क्षणों तक कुछ ना कुछ देते रहते हैं. बदले मे यह हमारा भी कर्तव्य है कि हम भी उनको कुछ लौटायें.
इन कुछ छोटी छोटी बातों मे से अपनी रुची अनुसार आप भी किसी से जुडे. और कुछ नही तो आप पानी का स्वयम का अपव्यय रोक कर ही इसमे योगदान दे सकते हैं. आपके साथ दो और लोगों को जोडे.
एक घंटा अगर हम बिजली बंद करके प्रकृति के साथ रहें तो यह भी बहुत श्रेष्ठ योगदान होगा. इसमे स्वयम की भी बचत है और पर्यावरण की तो है ही. यह धरती हम सब की है. आईये इसकी भी थोडी फ़िक्र पालें.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
भारत के मस्तक पर मुकुट के समान सजे हिमालय के धवल शिखरों पर हमने आप को घुमाया और अब लिए चलते हैं, भारतभूमि के अंतिम छोर पर..अर्थात कन्याकुमारी .छुटपन में जब हम कन्याकुमारी घूमने गए तब बस से उतरते ही अपने जीवन में पहली बार समुन्दर देखा.दूर तक फैली हुई नीली चादर की तरह ,बहुत शांत बहता सा,इतना खूबसूरत लगा था कि वह नज़ारा अब तक आँखों में बसा है. जानिए इस शहर के बारे में- कन्या कुमारी तमिलनाडू प्रान्त के सुदूर दक्षिण तट पर बसा एक शहर है |
सबसे छोटा कलाकार पिछले हफ्ते हमने दुनिया के सबसे लंबे इंसान को देखा था। आज बारी है दुनिया के सबसे छोटे कलाकार के बारे में जानने की। महज ढाई फीट (76 सेंटीमीटर) का यह कलाकार हिंदुस्तानी है और इसका नाम पिछले हफ्ते ही गिनीज बुक ऑफ वल्ड रिकॉर्ड्स में शुमार हुआ है। पढ़िए यह ख़बर.. |
जीवन के मूल्यवान पाठ एक राजा था जो कला का एक बड़ा प्रशंसक था. वह अपने देश में सब से अधिक कलाकारों को प्रोत्साहित किया करता था और उन्हें कीमती उपहार देता था. एक दिन एक कलाकार आया और राजा से कहा, "हे राजा मुझे अपने महल में एक खाली दीवार दो! और मुझे उस पर एक चित्र बनाने दो. चित्र इतना सुंदर होगा जिसे आपने पहले कभी नहीं देखा होगा. मै आपको निराश नहीं करूंगा ये मेरा वादा है. " |
हमारी संस्कृति संपादक सुश्री विनीता यशश्वी नै्नीताल के नंदा देवी मेले के बारे मे सचित्र जानकारी दे रही हैं । आईये अब उनसे जानते हैं नैनीताल के नंदा देवी मेले के बारे में. नमस्कार, नैनीताल में 1918-19 से प्रति वर्ष नन्दा देवी मेले का आयोजन किया जाता है जो कि 3-4 दिन तक चलता है। मेले के धार्मिक अनुष्ठान पंचमी के दिन से प्रारम्भ हो जाते है। जिसके प्रथम चरण में मूर्तियों का निर्माण होता है। मूर्तियों के निर्माण के लिये केले के वृक्षों का चुनाव किया जाता है। केले के वृक्ष को लाने का भी अनुष्ठान किया जाता है। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
मैं हूं हीरामन राम राम ! सभी भाईयों और बहनों को. आज के प्रथम विदूषक का खिताब जाता है ....... |
ट्रेलर : - पढिये : गुरुवार ता : ३० अप्रेल २००९ को श्री नितिन व्यास से अंतरंग बातचीत
कुछ अंश श्री नितिन व्यास से अंतरंग बात चीत के…..
ताऊ : हां तो नितिन जी, आप भारत मे कहां से हैं?
नितिन जी : फोटो देखकर तो कोई भी कह सकता है कि जंगल के अलावा मैं कहाँ से हो सकता हूँ, लेकिन फिर भी आप पूछ ही रहे हैं तो बताये देता हूँ मेरा जन्म चंद्रशेखर आज़ाद जी के जन्मस्थान भाबरा जिला झाबुआ (म.प्र.) में हुआ। ताऊ : तो फ़िर आप अमेरीका कैसे आगये?
नितिन जी : रोज़ी रोटी कमाने के लिये भारत से अमेरिका आगया । ताऊ : भई बात समझ मे नही आई हमारे? हमने तो सुना था कि श्वेता ( श्रीमती नितिन) पशुओं की डाक्टर हैं?
नितिन जी : आपकी जानकारी सही है ताऊजी. ( हंसते हुये,,) पर मैं भी तो हाथी हूं ना? …… और भी बहुत कुछ धमाकेदार बातें….. |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
पत्रिका का ये अंक बहुत भाया। "ज" से जमीन और जनसंख्या भी हैं जिन पर भी ध्यान देने की जरुरत है।
ReplyDeleteरोचक रही पत्रिका ,बस प्रस्तावना ताऊ खुदै लिखा करो !
ReplyDeleteपत्रिका रोचक तो थी ही अब पत्रिका लगने भी लगी है।
ReplyDeleteजानकारी और मनोरंजन से भरा ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अंक 19 बहुत अच्छा लगा। जानकारीपूर्ण,मनोरंजक ब्लाग है ये....
ReplyDeleteताऊ बहुत सुंदर प्रयास आप सभी का. ये डिजाईन भी बहुत सुंदर लग रहा है. सभी को बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteपत्रिका में आज का विषय बहुत ही महत्वपूंर्ण है। हमें, दूसरों को क्या करना है ये छोङ कर, खुद हम क्या कर सकते हैं पर्यावरण को बचाने के लिए ये सोचना होगा और करना भी होगा।
ReplyDeleteअल्पना जी!
ReplyDeleteआपने बहुत बढ़िया जानकारी उपलब्ध कराई हैं।
तहे दिल से शुक्रिया।
यदि बुरा न मानें तो सुझाव के रूप में स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ‘ज’ के तीन सूत्रों पर नही चार सूत्रों पर विचार करना चाहिए था।
जल, जंगल और जानवर के अतिरिक्त एक सबसे प्रमुख सूत्र जमीन भी है। यदि जमीन नही होगी तो जल, जंगल और जानवर का ठिकाना कहाँ पर होगा? आपके ध्यान से उतर गया होगा इसलिए याद दिला दिया है।
आशा हैं कि ताऊ जी मेरी बात का समर्थन करेंगे। प्रसन्नता है कि रामपुरिया का हरियाणवी ताऊनामा लोकप्रियता की शिखरों को छूता जा रहा है। ताऊ की समस्त टीम को घणी बधाई और राम-राम।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
ReplyDeleteआपके सुझाव का बहुत धन्यवाद. ये "ज" वाले सुत्र मेरे द्वारा दिये गये हैं ना कि सु. अल्पनाजी द्वारा. अत: इनमे जो भी कमी है वह मेरी है ना कि सु. अल्पना जी की.
शायद आपने ध्यान से पढा नही होगा ..जहां प्रस्तावना आलेख खत्म होता है वहां मेरा नाम आजाता है उसके बाद बाक्स मे सु. अल्पना जी का कालम शुरु होता है.
अब शाश्त्री जी "ज" से तो कई सुत्र बन जाते हैं ...जैसे उपर नितिन जी ने उसमे जनसंख्या भी जोड दी है. और भी अनेक जुड जायेंगे..इनमे एक अहम मुद्दा जवान..भी है. जमीन भी बहुत जरुरी मुद्दा है. पर अनावश्यक विस्तार से बचने के लिये हमने ये सिर्फ़ तीन सुत्र ही लिये हैं. हम इनमे से किसी एक का जरा सा भी पालन कर लें तो बहुत है.
पर ये पत्रिका जिन लोगों के बीच जाती है उनमे ज्यादातर लोग नगरों और महानगरों मे रहने वाले लोग हैं तो उनके मतलब की बात ही लिखी गई कि वो अपने स्तर पर जितना कर सकते हैं उतना करें
यह लेख सिर्फ़ लेख लिखने के लिये नही लिखा गया है. बल्कि लोगो मे थोडी बहुत चेतना आये...और लेख का ज्यादा विस्तार ना हो.
आपके सुझावों के लिये धन्यवाद.
पत्रिका का ये बदलाव तारीफ़ के काबिल है , अल्पना जी ने कन्याकुमारी का बहुत सुन्दर चित्रण किया है.....और आशीष जी का दुनिया के अजूबो से रूबरू करने का आभार. हिरामन के विदूषको को ढेरो बधाई.... पर्यावरण पर ताऊ जी के शब्द चिंतनीय हैं और हम सभी को जागरूक होने का संकेत देते हैं.
ReplyDeleteregards
मेरे मन में भी जमीन वाली बात आई थी रामपुरिया जी ..कारन शायद यह है की मैं जंगल -पहाडों की रहने वाली हूँ ...खैर जो भी हो ..पत्रिका रोचक बन पड़ी है.
ReplyDeleteसाप्ताहिक पत्रिका काफी रोचक बनती जा रही है. व्यवस्थित भी हो गयी है. आभार.
ReplyDeleteलगता है पत्रिका अपना विशिष्ठ स्थान बनाएगी.
ReplyDeleteपत्रिका अच्छी लगने लगी है।
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी दी अल्पनाजी ने कन्याकुमारी पर. सीमाजी, विनिताजी और आशीष जी की पोस्ट भी बहुत नायाब रही.
ReplyDeleteपत्रिका अपने रंग मे दिन पर दिन निखार लाती जा रही है. बहुत शुभकामनाएं.
हां एक बात कहना भूल गया कि पहेली के समय मे बदलाव करने की बात पर विचार कि्या जाये तो अच्छा है.
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर और ज्ञानवर्धक प्रयास है. आप सभी को बधाई.
ReplyDeleteरामराम.
नंदा देवी मेले की और कन्याकुमारी की अच्छी जानकारी मिली. बहुत व्यवस्थित मैगजिन लगी.
ReplyDeleteनंदा देवी मेले की और कन्याकुमारी की अच्छी जानकारी मिली. बहुत व्यवस्थित मैगजिन लगी.
ReplyDeleteआप सबका इस महती जानकारी के लिये आभार. सुंदर और मोहक स्वरुप बन गया है पत्रिका का.
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सुंदर प्रयोग है. पत्रिका दिनों दिन रोचक बन रही है. ताऊ यहां भी खूंटा गाडना शुरु करिये. खूंटे की आवृतियां अब कम होने लगी हैं.
ReplyDeleteशुभकामनाए आप सभी को.
बहुत सुंदर प्रयोग है. पत्रिका दिनों दिन रोचक बन रही है. ताऊ यहां भी खूंटा गाडना शुरु करिये. खूंटे की आवृतियां अब कम होने लगी हैं.
ReplyDeleteशुभकामनाए आप सभी को.
वाह्! ताऊ जी, मनोरंजन और जानकारियों से भरपूर पत्रिका का ये अंक बहुत ही बढिया रहा....साथ ही इसके कलेवर में किया गया बदलाव भी सुन्दर है.
ReplyDeleteइसे तो अब डाउनलोड होने वाले पीडीऍफ़ फॉर्मेट में भी रिलीज करना चाहिए !
ReplyDeleteतीन तरफ अथाह पानी ...विवेकानंद रॉक... कन्याकुमारी वास्तव में ही में बहुत सुंदर अनुभूति है...
ReplyDeleteकई साल पहले कुछ मित्रों के साथ, त्रिवेंद्रम से फ़र्लो मार कर मैं भी यहाँ गया था. उस समय, हम लोग त्रिवेंद्रम से २८ किलोमीटर दूर एक आदिवासी-क्षेत्र में, ट्रेनिंग-ट्रेनिंग खेल रहे थे.. त्रिवेंद्रम से यह दूरी करीब ५ घंटे की थी...कन्याकुमारी इस लिए और भी पसंद आया था क्योंकि यहाँ डोसा और इडली भी मिले जो कि हमारे लिए बंगलादेश से भाग कर लन्दन, खाना खाने के लिए जा पहुँचने जैसा अनुभव था. त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी तक की सड़क के दोनों ओर ५ घंटे लगातार आबादी देखने का यह मेरा पहला अनुभव था, सिवाय नागरकोएल के, जहाँ रस्ते में कुछ देर के लिए खुलापन मिला.
ताऊ राम राम
ReplyDeleteघनी सॉलिड बात कही..............पानी, जंगल, जानवर सब का ख्याल रखना चाहिए..............
अल्पना जी की सुन्दर जानकारी, आशीष जी का छोटा इंसान और सीमा जी का ज्ञान.................सभी कुछ न कुछ सुन्दर जानकारी देते हुवे. हीरामन के भी क्या कहने...........सारी की सारी पोस्ट लाजवाब है
सभी को 'अक्षय तृतीया' के इस पावन दिवस /पर्व पर ढेरों मंगल कामनाएं.हिन्दू इसे वैसाखी माह के तीसरे दिन मनाते हैं और परसुराम जी के जन्मदिवस के रूप में भी जानते हैं.यह ऐसा दिन है जिस दिन किया कोई भी काम अच्छा फल देता है.इस दिन को 'अखा तीज के रूप में भी जानते हैं.और दक्षिण भारत में इस दिन स्त्रियाँ सोने के आभूषण आदि की खरीदारी जरुर करती हैं. यहाँ के समाचार पत्र आज 'स्वर्ण ornaments के advertisments से भरे हैं.
ReplyDelete**आज की साप्ताहिक पत्रिका बहुत ही रोचक है.
जहाँ ताऊ जी ने प्रयावरण की सुरक्षा के लिए तीन मुख्य 'ज' के बारे में चेताया है.
[@Arvind ji prastavnaa Taau ji ne hi likhi hai]
-वहीँ आशीष जी,सीमा जी ,और विनीता जी ने अपने स्तंभों में नायाब जानकारी दी है.
hiraman ke vijeta vidushkon ko bhi badhaayee....
dhnywaad.
रोचक पत्रिका...है...
ReplyDeleteअच्छी लगी...
मीत
@हमें इन तीन “ज” सुत्रों पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है. जमीन जल- जंगल : जल अब १२ या १५ रुपया लीटर बिकने लगा है.
ReplyDeleteताऊ पत्रिका ने अपने बढते जनाधार को देख चेतना जगाने जो प्रयास हुआ है वास्तव मे सृष्टि के कल्याण के लिऐ प्रसन्सनिय कार्य है, "हे प्रभु" की ईच्छा है की आप को इस जनपयोगी सन्देस के लिऐ "सैल्यूट' करे
जल- जंगल : जानवर को बचाऐगे तो जमीन तो अपने आप सुरक्षित बन जाती है। क्यो कि जमीन को कोई खा नही सकता, ना ही जमीन एक ईन्च ईधर उधर सकती है। मानव जमीन को मार नही सकता, उठा के जोनपुर, या कोच्ची नही ले सकता। अगर ताऊ- ये तीनो जल- जंगल : जानवर को हम बचा पाऐ तो हमारी सन्तानो को प्रकृति के वे सभी खुबसुरत नाजारे देखने को मिलेगे जो ताऊ पत्रिका मे हर शनिवार कि प्रतियोगिता मे पुछे जाते है। अन्यथा तो भगवान ही मालिक है।
मेरे अपनी फिलोसॉपी- २०५० तक, जिसके पास खुद का पानी का कुआ होगा वो ससार का अमीर व्यक्ती होगा। क्यो कि जनसख्या इतनी बढ जाऐगी कि पानी का ६५% भाग लोगो के पेट मे होगा। या तो प्रकृति अपना काम करेगे,या हमे अच्छे कर्म करने पडेगे। ताऊजी इस पर और लिखने कि जरुरत है आप उपरोक्त विषय को कन्टीन्यू करे, शुभमगल।
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अल्पनाजी आपने बहुत ही विस्तृत प्रकास डाला है क्न्याकुमारी पर, अच्छे सम्पादकिय के लिऐ मै आपका स्वागत करता हू और आभार। मैने दो बार, पढा अच्छा लगा।
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-Seema Guptaजी सुश्री विनीता यशश्वीजी आशीष खण्डेलवालजी मैं हूं हीरामनजी को भी मेरी तरह से मगल भावनाऐ,
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बीनू फ़िरंगी, बेचारा सोमवार को तो दिखता ही नही है फिर ताऊ का लगोटिया यार होने कि वजह से उसे भी याद करे।
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विशेष मस्तीखोर, बक-बक करने वाली, लोगो के कपडे खिचने वाली, ताई कि नाक मे दमकरने वाली, ताऊ कि पोल पट्टी खोलनेवाली, आइसक्रिम चॉकलेट कि दिवानी, स्कुल से गुटली मारने वाली, नटखट मिस. रामप्यारी अब इससे ज्यादा तेरी प्रससा करुगा तो फुल के कुपा हो जाऐगी, ।
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"हे प्रभु यह तेरा-पथ"
"मुम्बई-टाईगर का"
जयजिनेन्द्र।
नमस्कार॥
राम राम॥।
aare waah patrika ka ye roo bahut hi achha laga.saare sthambh bahut hi sarahniya rahe,bahut achhi jankari mili.
ReplyDeleteआपने सही कहा। वक्त आ गया है बचत करने का। चाहे वो पानी हो, बिजली हो, अन्न हो......। हमें इसका मोल समझ लेना चाहिए।
ReplyDeleteअल्पनाजी की जानकारी और सीमा जी की कहानी बहुत शानदार.. विनीता जी.. भारत की संस्कृति और धरोहर को यूं हम तक पहुंचाने के लिए आभार.. ताऊजी आपके ज सूत्र को दिमाग में अच्छे से जकड़ लिया है.. नितिन व्यास जी के इंटरव्यू का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteअल्पनाजी की जानकारी और सीमा जी की कहानी बहुत शानदार.. विनीता जी.. भारत की संस्कृति और धरोहर को यूं हम तक पहुंचाने के लिए आभार.. ताऊजी आपके ज सूत्र को दिमाग में अच्छे से जकड़ लिया है.. नितिन व्यास जी के इंटरव्यू का इंतजार रहेगा
ReplyDelete"गौ सरंक्षण के नाम पर अनेक अभियान चल रहे हैं हम भी अपने स्तर पर उनमे योगदान करें. "
ReplyDeleteताऊजी, मैं आपके कथन का अनुमोदन करता हूँ.
गोमाता से जब तक फायदा मिल सकता है तब तक उसे ले लेने के बाद उसे जो लोग सड्क पर छोड देते हैं ऐसे लोगों के विरुद्ध मातृहत्या का कानून लगना चाहिये.
जहां तक संरक्षण की बात है, इस विषय में मेरा सारा परिवार समर्पित है.
सस्नेह -- शास्त्री
पत्रिका रोचक और प्रेरणा देने वाली रही।..हां हम आजकल हाथी देखकर घबरा जाते हैं!
ReplyDeleteनया डिजाईन बहुत सुन्दर है. जानकारियाँ भी अत्यंत सुन्दर और रोचक हैं.
ReplyDeleteआप सभी को बधाई.
... वैसे ताऊ पहेली के समय के सम्बन्ध में मैं मकरंद जी की बात का समर्थन करता हूँ.
त्ताऊ जी आपकी पूरी सम्पादक टीम के साथ बनी ये पत्रिका बेहद रोचक है -
ReplyDeleteआप सभी की मेहनत और हमेँ इतना लाभ !
बहुत आभार सभी का
स स्नेह,
- लावण्या
पत्रिका निखरती जा रही है ताऊ दिन-ब-दिन...
ReplyDeleteसमस्त टीम को खूब-खूब बधाई