बात ऐसी हुई की उन दिनों म्ह ताऊ बेरोजगार घुम्या करै था ! घर म्ह भी किम्मै सामान पतर की तंगाई चल्या करै थी ! हालत किम्मै ज्यादा ही नाजुक हो लिए तो ताऊ नै तय कर लिया की इब आत्महत्या कर ली जावै तो ही घणी आछी बात सै !
सो ताऊ नै ये सोचकै एक मोटा सा रस्सा लिया और अपणा लट्ठ उठाकै चल दिया अपने कुए पर ! ताऊ का प्रोग्राम कुए पर जाकर वहाँ पीपल कै पेड़ तैं लटकने का था ! बस आज ताऊ जीवन लीला समाप्त करण आला था ! क्योंकि ताऊ हर काम मेहनत और इमानदारी से करता था ! फ़िर भी उसकी ये हालत थी तो क्या करता ? वैसे आजकल हर इमानदार और मेहनती आदमी को सिवाए आत्महत्या के कोई चारा नही दीखता !
रास्ते म्ह उसको एक डाकुओं आली हिन्दी पिक्चर की याद आगई ! और ताऊ का दिमाग घूम गया ! ताऊ नै सोची की मरने में कितनी तकलीफ होगी ? और इससे अच्छा तो ये है की अपन तो डकैती शुरू कर देते हैं ! आज कै जमानै म्ह इसतैं बढिया और कोई बिजनस भी ना दिखै ! यो सुसरे सारे ही तो डकैती करण लाग रे सें अगर ताऊ भी टाबरां ( बच्चों ) खातर कर लेगा तो कुण सी आफत आज्यागी ? और ताऊ नै इन की तरियां कोई उम्र भर तो करणी नही सै डकैती ! १० / २० बड़े हाथ मार कै इस धंधे नै जैरामजी की कर देगा ! तो अब ताऊ नै मरणा केंसिल कर दिया और शाम होण का इंतजार करण लाग गया !
जैसे ही थोडा अँधेरा हुवा की , ताऊ तो अपणा लट्ठ उठाकै गाम कै बाहर चल दिया ! शहर की तरफ़ जाण आले रास्ते म्ह उसको गाम का बाणियां मिलग्या ! गाम का बाणियां शहर में अपणा गल्ला आदि बेचकै वापस आवै था ! इब ताऊ और बाणीये
की राम राम श्याम श्याम हुई !
बाणीये नै आश्चर्य तैं पूछ्या -- ताऊ इस बख्त थम इत के करण लाग रे हो ?
इब ताऊ बोल्या - रे बाणीये के , सुन मेरी बात ! मैं बेरोजगारी तैं हो राख्या सूं घणा तंग ! खेताँ म्ह फसल किम्मै हुई नही सै ! सो भूखे मरण की नौबत आ री सै ! सो आज और इब्बी तैं मन्नै इमानदारी तैं डकैती का धंधा शुरू कर दिया सै ! और भाई इब आज शुरुआत थारे तैं ही करणी पड़ री सै ! सो आज मैं तन्नै लुटुन्गा !
इब बाणीये नै ताऊ की बात सुणी तो उसकी तो हवा निकल गई ! क्योंकि वो शहर से गल्ला बेचकर बहुत सारे नोट लाया था ! इब बाणीये चालाक तो होवें ही सै ! उसनै ताऊ को खुशामदी लहजे में कहा -- अरे चौधरी साब ! थम भी के कर रे हो ? अरे ये सारे नोट थारे ही तो सें ! ल्यो थम पकडो इस थैली को ! मैंने राखे या आपने राखे , एक ही बात सै !
इब ताऊ बोल्या-- देख रे बाणीये के ! मेरी बात सुण ! मैं सब काम इमानदारी तैं करया करू सूँ ! तेरी मेरी छोड़ ! और तैयार होज्या लुटण खातर ! और मैं तेरे तैं कोई भीख नही लेन्दा ! समझया नै ? मैं तो हर काम मेहनत और इमानदारी तैं करया करूँ सूं ! इब डकैती का धंधा करया सै तो वो भी इमानदारी तैं ही करूंगा ! और ताऊ नै पहले तो बनिए को उठाकर पटका ! फ़िर उसके सारे नोट छीन लिए ! उसके बाद उठाके ५/७ लट्ठ मारे ! और बोला - देख यो होवे सै डकैती करणा तो !
वो तो वैसे ही दे रहा था सारी रकम...फिर भी मारा..क्या करो..हर धंधे का अपना उसूल है..सही किया..और क्या कहें..वरना ताऊ के दिमाग का क्या भरोसा..हम ही पिट जायें. :)
ReplyDeleteभाई जी, इब के बार तो थमने गज़ब कर डाला! इब डकैती मान कोई दया-धरम सै के न सै?
ReplyDeleteवाह ताऊ मजा आ गया , डकेती भी ईमानदारी से और पुरी मेहनत से
ReplyDeleteउडनतश्तरी की उड़ती उड़ती बातों पर गौर फरमाया जाय
ReplyDeleteओए ताउ, सब कुछ ब्लॉग पे बक दिया....ये भी सच्चे डाकू की निशानी है कि Surrender करने के बाद सच्चा डाकू अपनी पोल खुद ही खोल देता है :)
ReplyDeleteकरग्या घणा कमाल ताऊ
ReplyDeleteरह्या डकैती डाल ताऊ
पर एक बात समझ म्ह नी आई श्रीमान
क्यूक्कर खुली
सरदारों के मोहल्ले म्ह नाई की दुकान
बाप रे बाप, डकैती का धंधा तो वो भी इमानदारी तैं , अरे तो धमकाने से ही काम नीकाल होत्ता ना , बाणीये को मारा किस खातर,ताऊ डकैत का लट्ठ इब और क्या क्या गुल खिलायेगा बेरा कोणी, वैसे हफ्ता वसूली के बारे मे क्या ख्याल है ताऊ जी, म्हणणे तो लग्गे है डकैती से घणा चोखा है ....
ReplyDeleteRegards
ताऊ तो निहंग सरीखा है। वे दक्षिणा मिलने पर चारों ओर तलवार भांजते हैं - यह जताने को कि खैरात नहीं, लड़ कर लिया है माल!
ReplyDeleteअच्छी रचना है ताऊनामे में यह।
डकैती भी ईमानदारी से? ये तो केवल ताऊनामे में ही हो सकता है..
ReplyDeleteजाई हो ताऊ
वाह ताउ वाह क्या खुब करी तैने !! आइन्सटीन के बाद थारे दिमाग मे वैज्ञानिक रिसर्च करेंगे !!
ReplyDeleteah tau maza aa gaya.
ReplyDeleteImandari to sab jagah honi hi chahiye.
ताऊ जी अब समझ में आया कि डकैती कैसे होती है। लेकिन पैसे वो दे रहा था तो बेचारे को स्क्रिप्ट में पिटवाना जरूरी था क्या।
ReplyDeleteवाह ताऊ ! तेरे यह अंदाज़ !
ReplyDeleteभाई ताऊ की बात गाँठ बांधी ली हमने...जो काम करो ईमानदारी से करो...भोत बढ़िया ताऊ...लागे रहो...
ReplyDeleteनीरज
एक खबर हमने सुनी,सच्ची है या ख्वाब
ReplyDeleteताऊ डाकू बन गया,सुनिये आप जनाब
सुनिये आप जनाब,वणिक का धंधा काला
लेकर उसका माल,बानिए को धुन डाला
मोरल ऑफ़ दा स्टोरी क्या रही ताऊ इबके ????डकैतों के वास्ते ??
ReplyDeleteताऊ जी राम-राम
ReplyDeleteआपने इस बार एक बात सिखायी कि जो भी करो ईमानदारी से। बहुत बढ़िया ।
जो भी काम करणों मेहन्त अर ईमान्दारी सूं करणो। ईब दस पांच कर ल्यों। ईनामी हो जाओ। फेर सलेंडर कर चुनाव लड़ल्यों। स्कीम घणी चोखी छे। पुराणो फारमूलो?
ReplyDeletetau ram ram.
ReplyDeleteachchi daketi kari aapne to..
ताऊ डकेत शे यू तो अजे बेरा पाट्या ताऊ नोट धयान से देख ले कही नकली ही ना हो इमानदारी से
ReplyDeleteआपकी लगन व इमानदारी देख कर बड़ा अच्छा लगा
ReplyDeleteवीनस केसरी
ईमानदारी से डकैती करने वाले अभी भी हैं! ये जानकर थोड़ा शुकून मिला कि दुनियाँ इत्ती जल्दी रसातल में नहीं जायेगी. और ऐसी ईमानदारी ताऊ जी ही कर सकते हैं.
ReplyDeleteअजी, ईमानदार डकैत बचे ही कितने हैं दुनियाँ में? दो ही तो हैं. एक ताऊ जी और दूसरे ताऊ जी.....:-)
इमानदारी की मिसाल हम एक दिन बाद देख पा रहे हैं। आपके डाकू बनने का सबूत भी मिल गया है,आपकी ये दुकान चल निकली ताऊ ,देखो फ़ोटो वाली गोरी भी डर के घूंघट काढ ली है।
ReplyDeleteबहुत अच्छे ताऊ ! लगे रहो , बढिया धंधा है ! अगर चल निकले तो
ReplyDeleteहमको भी बुला लेना ! आजकल हमारा धंधा भही कुछ कमजोर ही
चल रहा है !
बहुत जोरदार काम पकडा पर इमानदारी तो सब जगह फलती है ! आप को इमानदारी यहाँ भी फले ! यही शुभ कामना है !
ReplyDeleteमैं तो हर काम मेहनत और इमानदारी तैं करया करूँ सूं ! इब डकैती का धंधा करया सै तो वो भी इमानदारी तैं ही करूंगा ! और ताऊ नै पहले तो बनिए को उठाकर पटका ! फ़िर उसके सारे नोट छीन लिए ! उसके बाद उठाके ५/७ लट्ठ मारे ! और बोला - देख यो होवे सै डकैती करणा तो !
ReplyDeleteअरे ताऊ कुछ तो रहम करो ! पिस्से मिलगे फेर क्यूँकर लट्ठ मारे ? थारी इमानदारी की खातर बिचारे बानिये
के हाथ पैर टूट गे ? ! :)
ताऊ तेरे से दोस्ती कैसे रखे ? कल को तू हमको लूटेगा ? चल कोई बात ना , लूट ले पर इमानदारी से लूटने के चक्कर में तू हमको भी लट्ठ मारेगा ! भई अपनी तेरे से लट्ठ खाने की हिम्मत नही है ! तो इब राम राम ! :)
ReplyDeleteताऊ, आपकी यह कथा पढ़कर मैं तो सीरियस हो गया। मैं सोच रहा हूं कि बिहार के किसान आत्महत्या क्यों नहीं करते? यहां की स्थितियां तो सबसे बुरी हैं, फिर तो यहां आत्महत्याओं की बाढ़ आ जानी चाहिए थी। क्या यहां फल-फूल रहे अपराध व नक्सलवाद के पीछे वही आत्मज्ञान तो नहीं जो आपके कथानायक को हिन्दी पिक्चर की याद आने के बाद हुआ?
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