हम बाबू तैं छुप छुपाकै सनीमा देखण चले गये थे !
रात को नौ बजे वापस आये तो बाबू लठ्ठ लिये ही म्हारी
बाट देखण लाग रया था ! बाबू नै इस तरियां बैठया देख
कै एक बार तो ताऊ का कलेजा सा ही पाट ग्या ! इब के
करैगा यो बाबू ! बैरी जर्मण लठ्ठ लिये बैठया सै ! भाई
ताऊ तो चुप चाप पिछै तैं निकल कै अपने कमरै मैं बड ग्या !
और इन्तजार करण लाग ग्या के गुरु समीर लालजी और गुरु
डा. अमर कुमार जी के अनमोल बचाव सम्बंधी सुझाव आते
ही होंगे !
सबतै पहले सुझाव आया भाई अनिल पसुडकर जी का ॥
लिखने की तो तारीफ़ कि पर बचने के उपाय सम्बन्धी
उपाय की जगह लिखा कि
aur karo bloggary.badhiya लिखा.....
मतलब बाबू के लठ्ठ खावो !
अगला सुझाव आया मित्र पित्सबर्गिया का..
अरे दुखी क्यों हो रहे हैं, हम सबको तो बाबूजी का
ब्लॉग अच्छा लग रहा है. ऐसा करें एक नया ब्लॉग
सुपर-ताऊनामा के नाम से शुरू कर दें. मुख पृष्ठ पर
एक भीमसेनी लट्ठ की तस्वीर लगा दें. लट्ठ वैसे
जर्मन भी चल जायेगा मगर साथ में बागडी भैंस
ज़रूर दिखनी चाहिए।
उपर उपर से इस सुझाव नै मानण मै किम्मै बुराई तो
नही दिखै थी पर भाई मन्नै दिखै कि यो म्हारा मित्र भी म्हारै
बाबू तैं रल्या मिल्या दिखै सै ! अणकी सलाह मानने का मतलब
सै कि हम बाबू कै साथ या तो गाम (रोह्तक) चले जावैं
या बाबू को यहां शहर मैं रक्खें ! और बाबू को ब्लागरी
करवाएं और हर हाल मै कम तैं कम दो लठ्ठ तो
रोज बाबू तै जरुर खाएं ! के इरादा सै भाई थारा ?
ना भाई मित्र पित्सबर्गिया ! थारी सलाह थम ही राखो !
मेरी लठ्ठ खाण की ताकत कोनी !
अगली सलाह आयी म्हारै अनुज योगिन्द्र मौदगिल की ....
कोए ढंग की बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी॥
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ? कोए ढंग की
बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ?
भाई इत ताऊ कै हाड फ़ूटणै की त्यारी हो री सै त इब ये बागडन
और पलुरे सुण के थम ताऊ नै फ़िर तैं ताई तैं भी कुटवाण की
तैयारी मै दिख रे हो ! बड्डे भाई तैं यो कुणसी दुशमणी निकालण
लाग रे हो ? सहायता करण की बजाए और हाड कुटवा रे हो !
अर एक राम का भाई लीछमण था और एक थम हो ! ना भाई
अपनी हिम्मत ना सै इब और हाड कुट्वाण की !
इसकै बाद एक सलाह .. ना जी सलाह ना आई बल्कि FINAL VERDICT
आया म्हारी बेटी बरगी प्रज्ञा जी का ...
अब कुछ नहीं हो सकता.. अब या तो लठ खाओ या संस्कृत सीखो...
भई ताऊ नै थारा के बिगाड राख्या सै ? इस उम्र मै थम ताऊ
नै संस्कृत सीखने का कह रे हो ! अरे ताऊ नै सीखने की उम्र
मै नही सीखी तै इब के सीखैगा ? ना भाई ना ! पढनै लिखनै स
तो ताऊ की पक्की दुश्मनी सै ! इस करके ही तो ताऊ उसकै
बाबू तैं इब तक पिटता आवै सै ! और रही लठ्ठ खाण की बात
तो इबी तक ताई नै जो लठ्ठ मारे थे उनकी चोट ठीक ना हुई सै !
तो बाबू के लठ्ठ किस तरियां खांवै ! बात किम्मै जची नही !
भई प्रज्ञा जी ताऊ को कुछ बचने की सलाह चाहिये ! पिटने मे
तो ताउ खुद ही माहिर सै ! उसमे आपकी सलाह का क्या काम ?
फ़िर रुक्के महाराज बन्गलोरी की सलाह आई...
ताऊ राम राम ! के हाल सें ?
इब चढ्या नै तू बाबू कै हत्थे !
बोल इब करेगा ब्लागरी ?
सटुपिड...:)
ठीक सै भाई रुक्के ! तैं भी मजे लेले ! तेरे भी दिन सै ! पर याद
रखिये सी. आर. लिखवाण तो तन्नै ताऊ धोरै ही आणा पडैगा !
और ताऊ हरयाणवी तेरे को याद रक्खेगा !
उसकै बाद आये महाभारत वाले अशोक जी.....
ताऊ कौन सा सनीमा देख के आए ? जब आपके पिताश्री को
मालुम पडेगा की चोरी छुपके सनीमा जाते हो तो फ़िर लट्ठ तो
खावोगे ही ! हर समझदार पिता अपनी बिगडैल औलाद को ऐसे
ही सुधारता है ! बाबूजी को बहुत धन्यवाद ! आपका बस चले तो
सबको बिगाड़ दोगे ! बाबू और ताई दोनों को दुश्मन बना लिया !
वाकई आप ताऊ हो ! :)!
ठीक कह रे अशोक जी ! थम भी ताऊ के मजे लेलो ! पर कभी
थारी महाभारत हो जावै तो ताऊ को याद कर लेना ! एक से बढ कर
एक फ़ड्डे देगा थमनै ताऊ ! और हां ॥ थारै ब्लाग पै भी तो कुछ लिखो !
इसकै बाद सलाह आई एडवोकेट रश्मी सौराना जी की...
aapke likhne ka andaj bhut hi nirala hai। jari rhe।
भई रश्मी जी ..इब ताऊ के अन्दाज ही अन्दाज रह गे ! बाकी
तो यार लोगों नै ताऊ के हाड गोडे फ़ुडवा कै धर दिये !
सारा गाम जानै सै ! फ़िर भी आप कह रि हो के... जारी रहे ..!
तो जैसी थारी मर्जी ! इसीलिये ये जारी है !
इब आये सलाह देण वास्ते डाग्दर अनूराग जी.....
इब तो भैय्या घुस गए तो घुस गए यहाँ से निकलना
मुश्किल है ....नू करो ...रिश्तेदारो को भी बुलवा लो ?
अर भई डाग्दर साब शुभ शुभ बोला करो.. एक बाबू ही
बुढापै म भी ताऊ कै लठ्ठ मार मार कै सीधा करदे सै तो
थम दुसरे रिश्तेदारां नै यो रस्ता क्यूं दिखा रे हो ! वो रिश्तेदार
ताऊ नै कितणै लठ्ठ मारैंगे ? और ताऊ की क्या दुर्गति करेंगे ?
जरा इसकी भी कल्पना करिये ! भाई ताऊ नै थारी मदद चाहिये !
ये दुश्मनी निकालण का टेम कोनी ! और थमनै बेरा सै कि ताऊ
थारै तैं किम्मै ज्यादा ही मदद की उम्मीद राखै सै !
बाबू तैं बचने की एक तरकीब प्रथम गुरुदेव समीर जी की आई
बालक, जब पहले समझा रहे थे तो हँसी ठ्ठ्ठा समझे थे
और अब लट्ठ के डर से भाग रहे हो। यही तो होता है
-लट्ठ बड़े बड़े का दिमाग ठिकाने लगवा देता है।
अभी बचवाने का एक ही उपाय है-बाबू जी पुराने ख्याल के हैं,
उनको नारी सश्क्तिकरण वाले सारे ब्लॉग मय टिप्पणी पढ़वा दो,
खुद ही गांव लौट जायेंगे और फिर ब्लॉग की तरफ कभी
झाकेंगे भी नहीं। :)
गुरुदेव समीर जी आपकी सलाह मानकै हमनै सोच्या कै गुरुदेव
बोल रे सैं तो सही ही होगा ! सो आपकी सलाह अनूसार ब्लाग
टटोले तो म्हारा ही माथा घूम ग्या ! भई गुरुदेव ताऊ तो इतनी बडी
रिस्क कोनी ले सकै ! थम म्हारै बाबू नै जाणो कोनी ! लठ्ठ खाणा
मन्जूर पर बाबू को ये ब्लाग मय टिपणी पढवाणा ? ना जी ना !
और भाई दिन भर मजे लेण के बाद सलाह आई म्हारै बडै भाई
और म्हारै ही गाम रोहतक के रहण आले राज भाटिया जी की...
राम राम भाई ईब कुछ ना कुछ तो करना ही पडेगा,
अगर बाबु एक लठ्ठा मारे गा तो ताई दो मारेगी,
रामपुरिया भाई वेसे तो बाप की पिटाई अभी तो दर्द देती हे
बाद मे जि्दगी बना देती हे, भाई जब भी बाबु कथा सुनाये
जेब मे से मोबाईल का बटन दबा कर टेली फ़ोन की घण्टी
बजा दे, बाबु फ़ोन सुनने जाये गा , वहां कोई नही होगा,
ओर फ़िर गुस्से मे आ कर बिना संस्क्रुत सुने ही ....
राम राम भाई
भाई साहब .. ये सारे कर्म तो थारै ही करे धरे सैं ! थमनै पहले
ताई को लठ्ठ दिलवा दिया ! हमको पडवा दिये .. ! कोई बात नही !
हमनै आपको कुछ नही कहा ! इब थम चाह रे हो कि ताई और
बाबू दोनू मिल कै ताऊ कै लठ्ठ मारैं ! तो भाईसाहब यो थारी बिल्कुल
गलत बात सै ! थम साफ़ साफ़ थारी भौडिया (छोटे भाई की पत्नी ) की
पक्ष ले रहे हो ! ताऊ की इतनी बडी भी गलती नही सै कि थम सारे
घर और गाम आले ताऊ को कुटवाने लाग रे हो !
हां आपकी दुसरी सलाह पर ( घन्टी बजाने की ) जरुर विचार करुंगा !
और फ़िर कुछ और टिपणी कारों ने मजे लिये ! पर ताऊ की
समस्या ज्युं की त्यूं ॥ मौजूद रही !
अचानक शाम को ७ बज कर ३५ मिनट पर एक सलाह म्हारै
द्वितिय गुरुदेव डा. अमर कुमार जी की आई ! सलाह क्या आई ?
बस यो समझ ल्यो के इसीको कहते हैं गुरु होना ! जो सन्कट
मे से चेले को निकाल ले ! आप मे से जिसने भी गीता मे सान्ख्य
योग पढा होगा ! वो जान गये होंगे कि गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ने
गीता ज्ञान देते हुये सान्ख्य योग का स्मरण कराते हुये निम्न सलाह
रुपी टिप्पणी भेजी ॥
ऒऎ ताऊ, इस तरिंयॊं के रो रिया सै ?ऒऎ जाटों का नाँव-गाँव डुबा कोनी ।उधर एक छोरा सबनै पछाड़ के मेडल हड़प रैया,हौर तू जाट कुलकलंकी हरकते दिखाणे लग रैया सै ? जाट मैदान ना छोड़ते॥ ऒऎ बावरे, जाट तो लट्ठ से डरते कोनी !लट्ठ सै॥ तो जाट सै !जाट तो देखणे को भी लट्ठ.. सोच्चते भी लट्ठ...खावैं भी लट्ठ.. हौर मारें भी लट्ठ.. ज़र्मनी से खबर आयी सै के दिमाग ही लट्ठ..
August 21, 2008 7:35 PM
गुरुदेव डा. अमर कुमार जी से सांख्य योग के प्रवचन सुनते ही ताऊ
वैसे ही दहाड़ उठा जैसे शेर के बच्चे को याद दिलाने पर उसको याद
आ गया की वो भेड का मेमना नही बल्कि शेर का बच्चा है !
और वो रिरिंयाना छोड़ कर दहाड उठा था ! ताऊ भी दहाड़ता हुआ
ऊठा और जाकै बाबू कै सामणे खडा हो कै बोल्या ! के बोल्या ?
यो अगली पोस्ट में... !
( मुझे इस ब्लाग की दुनियां मे पहली अनमोल शिक्षा समीर जी से एवम
दुसरी अनमोल शिक्षा डा. अमर कुमार जी से मिली है ! इस लिये ही
इन दोनो को मैं श्र्द्धापुर्वक अपना गुरु मानता हूं ! अगर ये दोनो
मेरा मार्ग दर्शन नही करते तो मैने ये ब्लाग शुरु करने के पहले ही
बंद कर दिया होता ! आभार आपका गुरुदेव समीर जी
एवम आभार आपका गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ! )
पुनश्च:- गुरुदेव डाक्टर अमर कुमार जी आज की आपकी टिपण्णी
सांख्ययोग पर आपका सर्वश्रेष्ठ प्रवचन है ! आपके ऊपर मेरी एक
हजार टिप्पणी बाकी है ! आज पहला अनमोल रत्न आया है !
९९९ बाकी ! जाट आदमी आप जाणो की हिसाब किस तरियां राखै सै
रात को नौ बजे वापस आये तो बाबू लठ्ठ लिये ही म्हारी
बाट देखण लाग रया था ! बाबू नै इस तरियां बैठया देख
कै एक बार तो ताऊ का कलेजा सा ही पाट ग्या ! इब के
करैगा यो बाबू ! बैरी जर्मण लठ्ठ लिये बैठया सै ! भाई
ताऊ तो चुप चाप पिछै तैं निकल कै अपने कमरै मैं बड ग्या !
और इन्तजार करण लाग ग्या के गुरु समीर लालजी और गुरु
डा. अमर कुमार जी के अनमोल बचाव सम्बंधी सुझाव आते
ही होंगे !
सबतै पहले सुझाव आया भाई अनिल पसुडकर जी का ॥
लिखने की तो तारीफ़ कि पर बचने के उपाय सम्बन्धी
उपाय की जगह लिखा कि
aur karo bloggary.badhiya लिखा.....
मतलब बाबू के लठ्ठ खावो !
अगला सुझाव आया मित्र पित्सबर्गिया का..
अरे दुखी क्यों हो रहे हैं, हम सबको तो बाबूजी का
ब्लॉग अच्छा लग रहा है. ऐसा करें एक नया ब्लॉग
सुपर-ताऊनामा के नाम से शुरू कर दें. मुख पृष्ठ पर
एक भीमसेनी लट्ठ की तस्वीर लगा दें. लट्ठ वैसे
जर्मन भी चल जायेगा मगर साथ में बागडी भैंस
ज़रूर दिखनी चाहिए।
उपर उपर से इस सुझाव नै मानण मै किम्मै बुराई तो
नही दिखै थी पर भाई मन्नै दिखै कि यो म्हारा मित्र भी म्हारै
बाबू तैं रल्या मिल्या दिखै सै ! अणकी सलाह मानने का मतलब
सै कि हम बाबू कै साथ या तो गाम (रोह्तक) चले जावैं
या बाबू को यहां शहर मैं रक्खें ! और बाबू को ब्लागरी
करवाएं और हर हाल मै कम तैं कम दो लठ्ठ तो
रोज बाबू तै जरुर खाएं ! के इरादा सै भाई थारा ?
ना भाई मित्र पित्सबर्गिया ! थारी सलाह थम ही राखो !
मेरी लठ्ठ खाण की ताकत कोनी !
अगली सलाह आयी म्हारै अनुज योगिन्द्र मौदगिल की ....
कोए ढंग की बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी॥
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ? कोए ढंग की
बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ?
भाई इत ताऊ कै हाड फ़ूटणै की त्यारी हो री सै त इब ये बागडन
और पलुरे सुण के थम ताऊ नै फ़िर तैं ताई तैं भी कुटवाण की
तैयारी मै दिख रे हो ! बड्डे भाई तैं यो कुणसी दुशमणी निकालण
लाग रे हो ? सहायता करण की बजाए और हाड कुटवा रे हो !
अर एक राम का भाई लीछमण था और एक थम हो ! ना भाई
अपनी हिम्मत ना सै इब और हाड कुट्वाण की !
इसकै बाद एक सलाह .. ना जी सलाह ना आई बल्कि FINAL VERDICT
आया म्हारी बेटी बरगी प्रज्ञा जी का ...
अब कुछ नहीं हो सकता.. अब या तो लठ खाओ या संस्कृत सीखो...
भई ताऊ नै थारा के बिगाड राख्या सै ? इस उम्र मै थम ताऊ
नै संस्कृत सीखने का कह रे हो ! अरे ताऊ नै सीखने की उम्र
मै नही सीखी तै इब के सीखैगा ? ना भाई ना ! पढनै लिखनै स
तो ताऊ की पक्की दुश्मनी सै ! इस करके ही तो ताऊ उसकै
बाबू तैं इब तक पिटता आवै सै ! और रही लठ्ठ खाण की बात
तो इबी तक ताई नै जो लठ्ठ मारे थे उनकी चोट ठीक ना हुई सै !
तो बाबू के लठ्ठ किस तरियां खांवै ! बात किम्मै जची नही !
भई प्रज्ञा जी ताऊ को कुछ बचने की सलाह चाहिये ! पिटने मे
तो ताउ खुद ही माहिर सै ! उसमे आपकी सलाह का क्या काम ?
फ़िर रुक्के महाराज बन्गलोरी की सलाह आई...
ताऊ राम राम ! के हाल सें ?
इब चढ्या नै तू बाबू कै हत्थे !
बोल इब करेगा ब्लागरी ?
सटुपिड...:)
ठीक सै भाई रुक्के ! तैं भी मजे लेले ! तेरे भी दिन सै ! पर याद
रखिये सी. आर. लिखवाण तो तन्नै ताऊ धोरै ही आणा पडैगा !
और ताऊ हरयाणवी तेरे को याद रक्खेगा !
उसकै बाद आये महाभारत वाले अशोक जी.....
ताऊ कौन सा सनीमा देख के आए ? जब आपके पिताश्री को
मालुम पडेगा की चोरी छुपके सनीमा जाते हो तो फ़िर लट्ठ तो
खावोगे ही ! हर समझदार पिता अपनी बिगडैल औलाद को ऐसे
ही सुधारता है ! बाबूजी को बहुत धन्यवाद ! आपका बस चले तो
सबको बिगाड़ दोगे ! बाबू और ताई दोनों को दुश्मन बना लिया !
वाकई आप ताऊ हो ! :)!
ठीक कह रे अशोक जी ! थम भी ताऊ के मजे लेलो ! पर कभी
थारी महाभारत हो जावै तो ताऊ को याद कर लेना ! एक से बढ कर
एक फ़ड्डे देगा थमनै ताऊ ! और हां ॥ थारै ब्लाग पै भी तो कुछ लिखो !
इसकै बाद सलाह आई एडवोकेट रश्मी सौराना जी की...
aapke likhne ka andaj bhut hi nirala hai। jari rhe।
भई रश्मी जी ..इब ताऊ के अन्दाज ही अन्दाज रह गे ! बाकी
तो यार लोगों नै ताऊ के हाड गोडे फ़ुडवा कै धर दिये !
सारा गाम जानै सै ! फ़िर भी आप कह रि हो के... जारी रहे ..!
तो जैसी थारी मर्जी ! इसीलिये ये जारी है !
इब आये सलाह देण वास्ते डाग्दर अनूराग जी.....
इब तो भैय्या घुस गए तो घुस गए यहाँ से निकलना
मुश्किल है ....नू करो ...रिश्तेदारो को भी बुलवा लो ?
अर भई डाग्दर साब शुभ शुभ बोला करो.. एक बाबू ही
बुढापै म भी ताऊ कै लठ्ठ मार मार कै सीधा करदे सै तो
थम दुसरे रिश्तेदारां नै यो रस्ता क्यूं दिखा रे हो ! वो रिश्तेदार
ताऊ नै कितणै लठ्ठ मारैंगे ? और ताऊ की क्या दुर्गति करेंगे ?
जरा इसकी भी कल्पना करिये ! भाई ताऊ नै थारी मदद चाहिये !
ये दुश्मनी निकालण का टेम कोनी ! और थमनै बेरा सै कि ताऊ
थारै तैं किम्मै ज्यादा ही मदद की उम्मीद राखै सै !
बाबू तैं बचने की एक तरकीब प्रथम गुरुदेव समीर जी की आई
बालक, जब पहले समझा रहे थे तो हँसी ठ्ठ्ठा समझे थे
और अब लट्ठ के डर से भाग रहे हो। यही तो होता है
-लट्ठ बड़े बड़े का दिमाग ठिकाने लगवा देता है।
अभी बचवाने का एक ही उपाय है-बाबू जी पुराने ख्याल के हैं,
उनको नारी सश्क्तिकरण वाले सारे ब्लॉग मय टिप्पणी पढ़वा दो,
खुद ही गांव लौट जायेंगे और फिर ब्लॉग की तरफ कभी
झाकेंगे भी नहीं। :)
गुरुदेव समीर जी आपकी सलाह मानकै हमनै सोच्या कै गुरुदेव
बोल रे सैं तो सही ही होगा ! सो आपकी सलाह अनूसार ब्लाग
टटोले तो म्हारा ही माथा घूम ग्या ! भई गुरुदेव ताऊ तो इतनी बडी
रिस्क कोनी ले सकै ! थम म्हारै बाबू नै जाणो कोनी ! लठ्ठ खाणा
मन्जूर पर बाबू को ये ब्लाग मय टिपणी पढवाणा ? ना जी ना !
और भाई दिन भर मजे लेण के बाद सलाह आई म्हारै बडै भाई
और म्हारै ही गाम रोहतक के रहण आले राज भाटिया जी की...
राम राम भाई ईब कुछ ना कुछ तो करना ही पडेगा,
अगर बाबु एक लठ्ठा मारे गा तो ताई दो मारेगी,
रामपुरिया भाई वेसे तो बाप की पिटाई अभी तो दर्द देती हे
बाद मे जि्दगी बना देती हे, भाई जब भी बाबु कथा सुनाये
जेब मे से मोबाईल का बटन दबा कर टेली फ़ोन की घण्टी
बजा दे, बाबु फ़ोन सुनने जाये गा , वहां कोई नही होगा,
ओर फ़िर गुस्से मे आ कर बिना संस्क्रुत सुने ही ....
राम राम भाई
भाई साहब .. ये सारे कर्म तो थारै ही करे धरे सैं ! थमनै पहले
ताई को लठ्ठ दिलवा दिया ! हमको पडवा दिये .. ! कोई बात नही !
हमनै आपको कुछ नही कहा ! इब थम चाह रे हो कि ताई और
बाबू दोनू मिल कै ताऊ कै लठ्ठ मारैं ! तो भाईसाहब यो थारी बिल्कुल
गलत बात सै ! थम साफ़ साफ़ थारी भौडिया (छोटे भाई की पत्नी ) की
पक्ष ले रहे हो ! ताऊ की इतनी बडी भी गलती नही सै कि थम सारे
घर और गाम आले ताऊ को कुटवाने लाग रे हो !
हां आपकी दुसरी सलाह पर ( घन्टी बजाने की ) जरुर विचार करुंगा !
और फ़िर कुछ और टिपणी कारों ने मजे लिये ! पर ताऊ की
समस्या ज्युं की त्यूं ॥ मौजूद रही !
अचानक शाम को ७ बज कर ३५ मिनट पर एक सलाह म्हारै
द्वितिय गुरुदेव डा. अमर कुमार जी की आई ! सलाह क्या आई ?
बस यो समझ ल्यो के इसीको कहते हैं गुरु होना ! जो सन्कट
मे से चेले को निकाल ले ! आप मे से जिसने भी गीता मे सान्ख्य
योग पढा होगा ! वो जान गये होंगे कि गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ने
गीता ज्ञान देते हुये सान्ख्य योग का स्मरण कराते हुये निम्न सलाह
रुपी टिप्पणी भेजी ॥
ऒऎ ताऊ, इस तरिंयॊं के रो रिया सै ?ऒऎ जाटों का नाँव-गाँव डुबा कोनी ।उधर एक छोरा सबनै पछाड़ के मेडल हड़प रैया,हौर तू जाट कुलकलंकी हरकते दिखाणे लग रैया सै ? जाट मैदान ना छोड़ते॥ ऒऎ बावरे, जाट तो लट्ठ से डरते कोनी !लट्ठ सै॥ तो जाट सै !जाट तो देखणे को भी लट्ठ.. सोच्चते भी लट्ठ...खावैं भी लट्ठ.. हौर मारें भी लट्ठ.. ज़र्मनी से खबर आयी सै के दिमाग ही लट्ठ..
August 21, 2008 7:35 PM
गुरुदेव डा. अमर कुमार जी से सांख्य योग के प्रवचन सुनते ही ताऊ
वैसे ही दहाड़ उठा जैसे शेर के बच्चे को याद दिलाने पर उसको याद
आ गया की वो भेड का मेमना नही बल्कि शेर का बच्चा है !
और वो रिरिंयाना छोड़ कर दहाड उठा था ! ताऊ भी दहाड़ता हुआ
ऊठा और जाकै बाबू कै सामणे खडा हो कै बोल्या ! के बोल्या ?
यो अगली पोस्ट में... !
( मुझे इस ब्लाग की दुनियां मे पहली अनमोल शिक्षा समीर जी से एवम
दुसरी अनमोल शिक्षा डा. अमर कुमार जी से मिली है ! इस लिये ही
इन दोनो को मैं श्र्द्धापुर्वक अपना गुरु मानता हूं ! अगर ये दोनो
मेरा मार्ग दर्शन नही करते तो मैने ये ब्लाग शुरु करने के पहले ही
बंद कर दिया होता ! आभार आपका गुरुदेव समीर जी
एवम आभार आपका गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ! )
पुनश्च:- गुरुदेव डाक्टर अमर कुमार जी आज की आपकी टिपण्णी
सांख्ययोग पर आपका सर्वश्रेष्ठ प्रवचन है ! आपके ऊपर मेरी एक
हजार टिप्पणी बाकी है ! आज पहला अनमोल रत्न आया है !
९९९ बाकी ! जाट आदमी आप जाणो की हिसाब किस तरियां राखै सै
लट्ठ आप खाएं और मज़े लें सारे पाठक, यह भी कोई बात हुई. वैसे किसी को न बताएं तो कहूं की मज़ा तो हमें भी बहुत आया आपका किस्सा पढ़कर. ऐसे ही लिखते रही लट्ठ से बचकर.
ReplyDeleteDear bloggers,
ReplyDeleteeNewss.com is india blog aggregator and would invite you to join us and submit your hindi blog to our Hindi category. We are 150+ member network and showcause several language blogs.
Best regards
sri
http://www.enewss.com
जय हो भक्त--जियो!!! मेरे ताऊ जियो!!
ReplyDeletemeri salah nahi mani na tau.aur kaoro bloggery,ab agli kya dugli kya tigli kya ,tab tak likhna padega jag tak lath kha-kha ke surat shakal ugly na ho jaye.badhiya likja tau jee ugly nahi agli post ka intezaar me
ReplyDeleteताऊ आज तो चाल्हे काट राखे सें ! इब बाबू
ReplyDeleteथारा के कर लेगा ? पर लिख्या बहुत सुथरा सै !
जय हो ताऊ की |
बहुत अच्छे जा रहे हो ताऊ | तुम्हारे गुरुओं ने
ReplyDeleteआख़िर तुमको बचा ही लिया ! प्रणाम तुमको और
तुम्हारे दोनों गुरुओं को ! आप तो लट्ठ घुमाते रहो
यूँ ही !
ताऊ जी आपका हाल देख कर एक गाना याद आ गया :
ReplyDeleteदोस्त दोस्त ना रहा ,
प्यार प्यार न रहा,
ए ज़िन्दगी हमें तेरा ऐतबार न रहा |
बचने का एक ही तरीका जान पड़ता है -
"If you can't convince him then confuse him"
ताऊ प्रणाम ! हम कुछ सप्ताह के लिए बाहर थे !
ReplyDeleteअब रेग्युलर हो रहे हैं ! आप चिंता मत करो !
मैं आपको एक से बढ़ कर एक फंडा बताउंगा |
अब आप एक काम करो ..बाबू को बोलो.. की
यहाँ से रोहतक के लिए रवानगी डालें ! .. ये बोल
कर मुझे रिपोर्ट करिए .. फ़िर मैं अगला स्टेप
बताउंगा ! :)
और इसी तरह लिखते रहो !
ताऊ राम राम ! आपने हमको लिखने का कहा
ReplyDeleteतो बात यह है की हमको तो फुर्सत नही है !
आपको पढ़ कर और उस पर टिपणी कर के ही
अपना शौक पूरा कर लेते हैं ! पर जब भी समय
मिला तो जरुर आपके आदेश का पालन करेंगे !
आप तो ऐसे ही लिखते रहो ! आपको देख देख कर
हम भी शुरू हो ही जायेंगे !
ये गुरु चेले मिल कर बाबूजी के ख़िलाफ़
ReplyDeleteक्या खिचडी पका रहे हो ? अगर बाबूजी
ने रिपोर्ट करी तो अन्दर कर दूंगा | और
जमानत भी नही होने दूंगा | बाबूजी ने तो
लट्ठ ही मारे है ..पर आगे क्या होगा...?
सोच लेना | :)
९९९ का फेर है ताऊ......वैसे तैंने सच बतायुं केवल उनकी टिपण्णी को लेकर एक लिख देगा तो घनी अच्छी पोस्ट तैयार हो जागी ....
ReplyDeleteजीओ ताऊ जीओ ! लोगो ख़बर दार !
ReplyDeleteअब ताऊ को ज्ञान प्राप्त हो गया है !
अब ताऊ से संभल कर रहना !
नही तो ताऊ अब तुमको लट्ठ मारेगा !
बहुत बढिया लिखा है ! थोड़े से हिन्दी
ReplyDeleteशब्दों का समावेश ज्यादा हो तो अन्य पाठक
भी और ज्यादा आनंद ले सकेगे ! समझने में
दिक्कत पड़ रही है या तो कुछ शब्दों के मायने
साथ साथ नीचे देते रहिये !
लाठी में गुण बहुत हैं,सदा खाइए आप
ReplyDeleteमुदगिल हैं सो नेक हैं,बंधु आपके बाप
बंधु आपके बाप,दिखाते हैं बस लाठी
दे देते दो चार,अगर वे होते राठी
सारा मामला समझ लिया है। बाबूजी को ब्लॉगरी से दूर रखने की साजिश चल रही है। लेकिन आपलोगों की दाल नहीं गलनेवाली। उन्हें गांव भेज देने पर भी नहीं। मेरी तरह गांव से ही ब्लागरी करेंगे। मैं पूरी तरह से उनकी साइड में हूं। बाबूजी जिन्दाबाद, उनकी लट्ठ भी जिन्दाबाद :)
ReplyDeletechaliye achcha hai is blog ki badaulat aapko do guru to mil gaye....par sambhal ke rahiye, abhi guru dakshina ki demand aati hi hogi.
ReplyDeleteहा हा हा । हास्य व्यंग्य का सुन्दर समायोजन। बधाई ।
ReplyDeleteताऊ, इब क्यु शोर मचा रखा हे, लठ्ठ तो पड लिये, अब अगली बार के लठ्ठ की चिंता मत कर, मे बाबु से समझा दुगां भई छोरा बराबर का हो गया हे , ओर रोज रोज लठ्ठ मत ना मार,अब इस का ठेका ताई ने देदे, ओर तु मजे मे बेठ के blogger बन जा ओर, यहां भी बडी बडी लडाईया हो रही हे , इन सब को भी सीधा कर दे, ओर जगत बाबु बन जा.
ReplyDeleteधन्यवाद ताऊ,
ताऊ जी राम राम।
ReplyDeleteबङा मजेदार लेख लिखा है पढ़कर मजा आ गया।
मैं तो दंग रह गया हूँ आप लोगो के कारनामे देख कर | क्या तो लेखन है ? और क्या शानदार कमेन्ट हैं ? आप लोगो की तो ये दुनिया ही अलग दिखाई दे रही है | आप लोगो का तो इतना मनोरंजन स्वत: ही हो जाता है | आप
ReplyDeleteकृपया मुझे भी बताइये की मैं कैसे ब्लागिंग करूँ ? अभी मुझे कुछ भी नही मालुम ?
अभिमन्यु जी , धन्यवाद आपके द्वारा की गई
ReplyDeleteतारीफ़ और प्रशंसा के लिए ! आपने हिन्दी में
कमेन्ट किया इसका मतलब आप ब्लागरी के
लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं ! आप सिर्फ़ ब्लॉगर डाट
काम पर अपना ब्लॉग बना कर शुरू हो जाइए !
आपको कुछ नही करना पडेगा ! वो तो ये
ब्लागरिए मित्र आपसे करवा लेंगे ! ये ख़ुद ही
आपको ढुन्ढ लेंगे ! मैं भी आपकी तरह ही
फ्रेश माल हूँ ! आप चिंता मत करिए ! पुराने
चावल यहाँ बहुत सहयोगी हैं ! आपका अग्रिम
स्वागत है यहाँ ! शुभकामनाएं !
हाँ तो ताउजी, आप दहाड़ कर खड़े तो हो गए हो बाबूजी का मुकाबला करने के लिए. पर एक बात तो भूल ही गए कि बाबूजी भी जाट हैं और वो भी लट्ठ वाले जाट. उनके पास हक है (आपको लट्ठ मारने का पिता होने के नाते), लट्ठ है, ताईजी का साथ है...... आपके पास क्या है?? (सिवाय दहाड़ के) हइं??
ReplyDeleteताऊ राम राम ! वैसे जर्मन वालों के बारे में प्रसिध्द है कि वो Precision Measure करते हैं यानि उनके नापने जोखने में एक तरह का Perfection होता है और यही उनकी बडी खुबी है.....शायद यही सोच के जर्मन लट्ठ ले के इंतजार हो रहा था।
ReplyDeleteबराबर नाप जोख के साख्य दर्शन करते हुए लठ्ठ खाने के लिये अग्रिम धन्यवाद।
भाई,थारे रोहतक में राठी प्रजाति घणी होवे सै.बापू के कई दोस्त राठी सै.सो लाठी से उनकी यारी घणी ए पुराणी सै.और भाई राठी, लाठी तै जो बचा सकै वो त्रिपाठी होवे सै.
ReplyDeleteअच्छी जोड़ तोड़ चल रही है ! लठ भी चल रहे हैं !
ReplyDeleteज़रा पहले समझले की किस के किस से लठ चल रहे हैं ?
हरयाणवी ज़रा धीरे २ समझ आयेगी ! उसके बाद कुछ कमेन्ट करने की स्थिति में आयेंगे !
ताऊ राम राम ! थम तो इक्कल्ले २ ही लठ खाण लाग रे हो | कोई दोस्त बचाण नही आया के ? मन्नै पहले ही बेरा पाटग्या था के मेरे पीछै त तन्नै थारै यो दोस्त पिटवावेन्गे जरुर ! इब एक काम करियो की बाबू अर ताई तैं म्हारी बात करा दियो , फेर थमनै लठ नही खाणे पडेंगे ! मैं समझा दूंगी दोनुआं न ! :)
ReplyDeleteमैं आज शाम कै फोन करूंगी ! कल भी आप नही मिले ! सब समाचार आपको ताई न बता दिया होगा !
मन्ने पुरी बात समझ कोनी आयो फ़ेर थारी हरियाणवी मने घणी भावे !!
ReplyDeleteअरे ताऊ अब कहानी को आगे भी बढावेगा
ReplyDeleteया हमारे प्राण लेगा ? कितने दिन हो गए ?
हम उल्लू की तरह आके चले जाते हैं | ताऊ
अब सीधे सीधे कहानी आगे बढ़ा नही तो मैं
बाबू को और एक नया लट्ठ पकडा दूंगा !
फ़िर रोना मेरे नाम को !
क्या बात है ? ताऊ हम भी हरयाणवी ही हैं !
ReplyDeleteअभी तो आपकी रामायण समझ नही आई है !
पीछे की पोस्ट पढ़नी पड़ेगी ! बहुत रोचक
हरयाणवी मनोरंजन दिख रहा है यहाँ तो !
मजे आरे हैं आड़े त ! :)
सीधे साधे ताऊ का मुकाबला बाबूजी से, और गुरु बना रखें समीर लाल और डॉ अमर कुमार ! समीर लाल तो शायद ही तुम्हे पिटते समय, उड़नतश्तरी से उतर कर बचाने आयें , और डॉ अमर कुमार, अपनी प्रकृति वश, बाबू जी से लड़ने की बात हज़म कर ही नही सकते, ये जरूर तुम्हे सबक सिखाने के चक्कर में हैं, सलाह सोच समझ के मानियो अपने गुरुओं की ! बेचारा भला चेला !
ReplyDeleteभगवान् ही बचाए ताऊ को ! शुभकामनाएं
भाई रामपुरिया
ReplyDeleteहम तो इब तक रामपुरिया चक्कू के बारा में ही सुनता आया था इब देखा की इस नाम का तो जोरदार इंसान भी है...भाई तेरे ब्लॉग पे पेली बार आया और ये केने में संकोच नहीं की घना मजा आया...भाई मन्ने भी तू अपनी बिरादरी का ही समझ...राजस्थानी वैसे भी आधा हरियाणवी तो होवे ही है...
बापू ने परनाम...
नीरज
बमभोले..................
ReplyDeleteताऊ,
के बात सै..?
ब्रेक सी लाग री...
न्यू लाग्गै जणो ताई नै लट्ठ का एक्सपैरीमैंट कर लिया...
हे राम...
सच्ची बता ताऊ अर तावली बता..
हम तो उरी बेठे-बेठे मजे लेलेंगें..
ताऊ बहुत मजा आया ! आप पिटते ही क्यूँ
ReplyDeleteरहते हो ? कभी असली वाली बात भी बता दो !
जबरन ताई को बदनाम कर रखी है ! :)
बहुत मजा आया सच में ! आगे बढाओ कहानी
को ! बिल्कुल देशी शराब वाला मजा आता है
आपकी हरयाणवी में ! धन्यवाद !
ताऊ बहुत ही बढिया हरयाणवी चौपाल
ReplyDeleteहै ये तो ! खूब आनंद आ रहा है ! किस्से
कहानी भी ठेठ देहाती हैं ! चौपाल की
संस्कृति को ऐसे ही जिंदा रखा जा सकता
है ! आप अच्छा काम कर रहे हैं ! आपको
धन्यवाद ! लिखते रहिये !
ताऊ बहुत ही बढिया हरयाणवी चौपाल
ReplyDeleteहै ये तो ! खूब आनंद आ रहा है ! किस्से
कहानी भी ठेठ देहाती हैं ! चौपाल की
संस्कृति को ऐसे ही जिंदा रखा जा सकता
है ! आप अच्छा काम कर रहे हैं ! आपको
धन्यवाद ! लिखते रहिये !